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By: divyahimachal
विपक्षी एकता का धारावाहिक बीते कई महीनों से जारी है। मुख्य भूमिका में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, लेकिन अभी तक कोई भी निश्चित आकार सामने नहीं आया है। एकता का विरोध किसी भी नेता ने नहीं किया है। उसके बावजूद न्यूनतम साझा कार्यक्रम की प्रस्तावना तक लिखी नहीं जा सकी है। न्यूनतम साझा कार्यक्रमों के आधार पर गठबंधन सरकारें बनी हैं और अब भी बन सकती है, लेकिन न्यूनतम साझा बातचीत और मुलाकात की ठोस स्थितियां भी बन नहीं पा रही हैं। अपने-अपने अहंकार, जनाधार की हेकड़ी और आपसी गंभीर विरोधाभासों में ही विपक्षी दल फंसे हैं। नीतीश कुमार की हिम्मत और सहिष्णुता की दाद देनी पड़ेगी कि वह व्यापक देशहित में विपक्षी एकता के सूत्रधार बने हैं। व्यापक देशहित में मौजूदा मोदी सरकार, खासकर प्रधानमंत्री मोदी, को तभी सत्ता के बाहर करना संभव होगा, जब विपक्ष पूरी मजबूती, एकता और ईमानदार लामबंदी के साथ भाजपा का मुकाबला करेगा। उसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी को हराने का कोई विकल्प नहीं है। नीतीश के साथ बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कोलकाता जाकर बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात की। फिर लखनऊ आकर वे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मिले। ममता ने बेहद महत्त्वपूर्ण बात कही कि जिस तरह जयप्रकाश नारायण ने अपना आंदोलन बिहार से शुरू किया था, उसी तर्ज पर नीतीश कुमार विपक्षी नेताओं की बैठक पटना में बुलाएं। सभी साझा मुद्दों पर विमर्श किया जाए और फिर एक निश्चित विजन बने। यकीनन यह ममता बनर्जी की राजनीति का बड़ा बदलाव है। उन्होंने यह भी इच्छा जाहिर की कि हमें यह संदेश देना जरूरी है कि हम सब एक हैं। हमें भाजपा को ‘जीरो’ बनाना है।
वह सिर्फ झूठ बोल कर, फेक वीडियो बनाकर, गुंडागर्दी कर, मीडिया के जरिए ‘हीरो’ बनती रही है। नीतीश जी जो प्रयास कर रहे हैं, उसे हम भी जारी रखेंगे और दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेताओं से भी बात करेंगे। मेरा कोई व्यक्तिगत अहम नहीं है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की भी सोच लगभग यही है। नीतीश इसी माह दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े समेत राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल और वामपंथी नेताओं से भी मुलाकात और विपक्षी एकता के सरोकारों पर बातचीत कर चुके हैं। वह निकट भविष्य में हैदराबाद में बीआरएस प्रमुख एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव और भुवनेश्वर में ओडिशा के मुख्यमंत्री एवं बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक से भी मुलाकात कर सकते हैं। नीतीश कुमार वरिष्ठतम विपक्षी नेता हैं और बार-बार साफ कर चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। सिर्फ देश, लोकतंत्र, संविधान को बचाने की दिशा में वह प्रयास कर रहे हैं कि विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़े। नीतीश के साथ संवाद का स्वागत सभी पक्ष करेंगे, लेकिन विपक्षी एकता के लिए इतना ही काफी नहीं है। बीते दिनों लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने एक बयान दिया कि तृणमूल कांग्रेस ने जांच एजेंसियों से बचने के लिए प्रधानमंत्री मोदी से सैटिंग कर ली है। टीवी चैनलों की बहस में कांग्रेस प्रवक्ता अक्सर तृणमूल के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं और पुराने मसलों को कुरेदते रहते हैं। तृणमूल प्रवक्ता भी कांग्रेस की दोगली राजनीति के मुखर आलोचक रहते हैं। दोनों ही पक्षों के तेवर जैसे दिखाई दे रहे हैं, उनके मद्देनजर विपक्षी एकता के मंच पर वे साथ-साथ कैसे आ सकते हैं। विपक्ष के साझा चेहरे और विजन के मुद्दे तो अभी नेपथ्य में हैं। फिलहाल यह धारावाहिक चलता रहेगा।
Rani Sahu
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