सम्पादकीय

तमिलनाडु में गैर ब्राह्मणों को पुजारी बनाने का विरोध क्या महंगा पड़ने वाला है BJP को?

Tara Tandi
21 Jun 2021 12:24 PM GMT
तमिलनाडु में गैर ब्राह्मणों को पुजारी बनाने का विरोध क्या महंगा पड़ने वाला है BJP को?
x
तमिलनाडु में हमेशा से सियासी जंग केवल दो ही राजनीतिक पार्टियों के बीच होती आई है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संयम श्रीवास्तव | तमिलनाडु (Tamil Nadu) में हमेशा से सियासी जंग केवल दो ही राजनीतिक पार्टियों के बीच होती आई है. पहली एआईएडीएमके (AIADMK) और दूसरी डीएमके (DMK). 2021 के विधानसभा चुनाव (2021 Assembly Election) में एआईएडीएमके को हराकर एमके स्टालिन (MK Stalin) की डीएमके सरकार में आई और एम के स्टालिन मुख्यमंत्री बन गए. इसके साथ ही एम के स्टालिन ने उन कार्यों को करना शुरू कर दिया, जो उन्होंने चुनाव के वक्त जनता से वादे किए थे. इसमें से एक वादा था कि तमिलनाडु के तमाम लगभग 36,000 मंदिरों में अब गैर ब्राह्मणों को भी पुजारी बनाया जाएगा. दरअसल एम के स्टालिन की इस रणनीति के पीछे है उनकी वोट बैंक की राजनीति, क्योंकि तमिलनाडु में हमेशा से अगड़े और पिछड़े की जंग चलती आ रही है. डीएमके जहां पिछड़े और दलित वर्ग की राजनीति करती है, वहीं एआईएडीएमके ब्राह्मणों और ऊंची जाति के लोगों की राजनीति करती है.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस फैसले से तमिलनाडु में एम के स्टालिन की पकड़ दलित और पिछड़ों के वोट बैंक पर और ज्यादा मजबूत होगी. लेकिन इस मुद्दे ने तमिलनाडु में अपने अस्तित्व को स्थापित करने वाली बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर दी है. दरअसल भारतीय जनता पार्टी (BJP) तमिलनाडु में दलितों और सवर्णों को एक साथ लेकर नई राजनीति करने की कोशिश कर रही है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रदेश अध्यक्ष भी एक दलित चेहरा एल मुरुगन (L. Murugan) को बनाया. लेकिन अब इस मंदिरों में गैर ब्राम्हण पुजारियों के मुद्दे ने बीजेपी के अंदर ही मतभेद पैदा कर दिए हैं. एक तरफ जहां बीजेपी के दलित नेता इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के सवर्ण नेता और तमिलनाडु बीजेपी के उपाध्यक्ष केटी राघवन ( K. T. Raghavan) इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. जो बीजेपी अभी तमिलनाडु में पैर पसारना शुरू ही की है अगर ऐसे ही उस में फूट पड़ गई तो पार्टी का अस्तित्व ज्यादा दिनों तक तमिलनाडु में बनाए रहना मुश्किल हो जाएगा.

बीजेपी अगड़े और पिछड़े के बीच फंसी

तमिलनाडु में लगभग 3 फ़ीसदी आबादी ब्राह्मणों की है, जबकि 70 फ़ीसदी आबादी ओबीसी वर्ग की है. जबकि 19 फ़ीसदी आबादी दलित वर्ग की है. बीजेपी इन तीनों वर्गों को मिलाकर तमिलनाडु में एक नई राजनीति को जन्म देने की कोशिश कर रही है. जिसकी वजह से वह राष्ट्रवाद के नाम पर वहां अपने आप को स्थापित कर सकें. यही वजह है कि बीजेपी ने अपनी पार्टी में हर वर्ग के नेताओं को जगह दी है. लेकिन एम के स्टालिन की इस चाल ने बीजेपी की सोच को कहीं ना कहीं मात दे दिया है. बीजेपी के अंदर ही अब दो धड़े खड़े हो गए हैं, जो इस मुद्दे पर आमने-सामने हैं. हालांकि बीजेपी इस मुद्दे को अब एक नया रंग दे रही है और कह रही है कि एम के स्टालिन सरकार जो शुरू से ही गैर हिंदूवादी रही है वह तमिलनाडु में हिंदुओं को तोड़ने के लिए इस तरह के चाल चल रही है. भारतीय जनता पार्टी भले ही ऊपर से यह कहकर की स्टालिन सरकार हिंदुओं को तोड़ने की बात कर रही है इस मुद्दे को भटका रही हो, लेकिन अंदर ही अंदर उसे भी पता है कि अगर यह विवाद बढ़ता है तो बीजेपी के अंदर ही अगड़ा वर्सेज पिछडा की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. जो बीजेपी की नई राजनीति के लिए घातक साबित होगी.

डीएमके के लिए यह पहली बार नहीं है

यह मुद्दा सबसे पहले 1970 में पेरियार ने उठाया था. इसके बाद उस वक्त के द्रमुक सरकार ने मंदिरों में गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति के आदेश दिए थे. हालांकि 1972 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी. इसके 10 साल बाद जब एमजी रामचंद्रन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने एक आयोग का गठन किया, 'जस्टिस महाराजन आयोग' इसमें सभी जातियों के व्यक्तियों को पुजारी बनने के लिए प्रशिक्षण दिया गया और उनके नियुक्ति की सिफारिश की गई. हालांकि इस आयोग की सिफारिशों को अमल में लाने में लगभग 25 साल लग गए. 2006 में तत्कालीन डीएमके सरकार ने फिर गैर ब्राम्हण पुजारियों को मंदिर में नियुक्ति करने के आदेश दिए इसके बाद 2007 में इसे लेकर 1 साल का कोर्स शुरू किया गया जिसे 206 लोगों ने किया. लेकिन 2011 में डीएमके की सरकार तमिलनाडु में जैसे ही आई उसने इस कोर्स को बंद कर दिया.

हालांकि 2018 में एआईएडीएमके सरकार ने मदुरै जिले के तल्लाकुलम में और अय्यप्पन मंदिर में पहले गैर ब्राह्मण पुजारी मरीचामी की नियुक्ति की. इसके 2 साल बाद त्यागराजन को नागमलाई पुदुकोत्तई के सिद्धिविनायक मंदिर में भी नियुक्त किया गया. पुजारियों को 4000 रुपए का मासिक वेतन मिलता है और त्योहारों के समय में उनकी तनख्वाह 10000 रुपए प्रतिमा हो जाती है.

बीजेपी के लिए यह देशव्यापी नुकसान होगा

भारतीय जनता पार्टी के राजनीति की नींव ही हिंदुत्व और सनातन परंपराओं की रक्षा पर टिकी हुई है, लेकिन अब जब तमिलनाडु में एम के स्टालिन ने गैर ब्राह्मणों को मंदिरों में पुजारी नियुक्त करने की बात की है तब बीजेपी का खुलकर इसका विरोध ना करना कहीं ना कहीं पूरे देश में यह संदेश देगा कि भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर अब मुखरता से सामने नहीं आ रही है. खासतौर से बीजेपी के पास जो एक साधु संतों का समर्थन है वह भी इससे कट सकता है. बीजेपी की स्थिति ऐसी हो गई है कि आगे कुआं पीछे खाई जाए तो जाए कहां.

अगर भारतीय जनता पार्टी इस फैसले का मुखरता से विरोध करती है तो पूरे देश का दलित समाज उससे नाराज हो जाएगा और अगर इसका समर्थन करती है तो पूरे देश में साधु संत और ब्राह्मण समाज बीजेपी से नाराज हो जाएंगे. यही वजह है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व फिलहाल इस मुद्दे पर मौन साधे हुए है और खुलकर कोई बयान बाजी किसी के पक्ष में नहीं कर रहा है. हालांकि तमिलनाडु में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बीच जरूर दो अलग-अलग विचार चल रहे हैं. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व अभी फिलहाल इस मुद्दे पर कुछ बोलने से बच रहा है.

Next Story