सम्पादकीय

विपक्षी एकजुटता की कवायद

Rani Sahu
20 Aug 2021 6:25 PM GMT
विपक्षी एकजुटता की कवायद
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देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती के दिन कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के बुलावे पर विपक्षी नेताओं का एक साथ दिखाई देना तस्वीर में यूं तो अच्छा लगता है

विजय त्रिवेदी। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती के दिन कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के बुलावे पर विपक्षी नेताओं का एक साथ दिखाई देना तस्वीर में यूं तो अच्छा लगता है, लेकिन तस्वीरें अक्सर पूरा सच नहीं दिखातीं। इसका मायने यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि विपक्षी नेताओं के इकट्ठे होने का कोई मतलब ही नहीं। दरअसल विपक्षी एकता का यह गिलास आधा भरा हुआ है, यानी कुछ के लिए आधा खाली भी है, तो क्या अब उसे पूरा भरने की ईमानदार कोशिश शुरू हो गई है? न जाने क्यों, यहां मुझे बचपन की वह कहानी याद आने लगी है, जिसमें एक राजा गांव के तालाब के उद्घाटन के लिए गांव वालों से एक रात पहले हर घर से एक गिलास दूध तालाब में डालने की मुनादी करवाता है, लेकिन सवेरे तालाब में एक बूंद भी दूध नहीं है, वह पानी से भरा हुआ है, क्योंकि हर गांव वाला यह सोचकर घर से निकला ही नहीं कि केवल उसके एक गिलास दूध न डालने से क्या फर्क पड़ेगा? कमोबेश यही हाल मोदी विरोधी नेताओं और राजनीतिक दलों का लगता है, जो समझते हैं कि एकता की यह जिम्मेदारी दूसरे दलों और नेताओं की है।

सपने देखना किसको अच्छा नहीं लगता, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम कहा करते थे कि सपने नींद में नहीं आते, सपने वो होते हैं, जो नींद नहीं आने देते, तो क्या विपक्षी नेताओं को मोदी को हटाने के सपने की शिद्दत यह है कि अब इसे पूरा करने के लिए उन्हें नींद नहीं आ रही? क्या उन्होंने अपने स्वार्थों, अहंकार और अपनी-अपनी ताकत के गलत अनुमानों को दूर रखने की कोशिशें शुरू कर दी हैं? ऐसा नहीं है कि इस रास्ते पर चलना शुरू नहीं किया गया है, पिछले छह महीनों में बहुत से लंच, ब्रेकफास्ट और डिनर मीटिंग हो गई हैं। कोलकाता में बड़ी रैली भी हो गई। संसद में कई बार सबको साथ दिखाने की औपचारिकता भी पूरी की गई है। कुछ दिनों पहले मैंने पूर्व वित्त मंत्री और अब टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा से पूछा था कि विपक्षी एकता के लिए क्या अभी जयप्रकाश नारायण जैसा लोकप्रिय और सम्मानित नेता या वीपी सिंह जैसी ईमानदारी छवि का लीडर या फिर हरकिशन सिंह सुरजीत जैसा रणनीतिकार है, जो सबको साथ लाने की ताकत और सम्मान रखता हो? यशवंत सिन्हा का जवाब 'ना' में था, तब कैसे सब साथ आएंगे? कुछ दिनों पहले एक पत्रिका के सर्वे में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिरना बताया गया है, लेकिन साथ ही, यह भी बताया गया कि उनकी लोकप्रियता तीन बड़े विपक्षी नेताओं, यानी राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की कुल लोकप्रियता के बराबर है या फिर कांग्रेस के तीन नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की कुल लोकप्रियता से ज्यादा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अब कुछ नहीं हो सकता, इस विपक्षी राजनीति के अंधेरे में रोशनी की उस किरण को देखिए, जिसमें साल 2019 में करीब 62 फीसदी वोट देश भर में ऐसा था, जो मोदी या भाजपा के खिलाफ दिया गया था, क्या उस तिनके-तिनके को साथ कर जोड़ा नहीं जा सकता? बीजेपी को पिछले चुनाव में 38 फीसद वोट मिला, जबकि कांग्रेस को उससे करीब आधा 20 फीसद वोट मिले, लेकिन मोटे तौर पर विपक्षी एकता में शामिल होने वाले ज्यादातर दलों का कुल वोट भी 20 फीसद तक नहीं पहुंच पाया है, यानी अब भी कांग्रेस ही सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर सामने है।


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