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भाजपा की रीति-नीति से बेचैन विपक्ष
संजय गुप्त। काशी में विश्वनाथ धाम परियोजना के लोकार्पण के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से की गई इस टिप्पणी के राजनीतिक अर्थ भी निकाले गए कि जब-जब कोई औरंगजेब आया तब-तब शिवाजी उठ खड़े हुए। विपक्षी दलों को यह नहीं सूझ रहा कि वह भाजपा की ओर से हिंदू समाज के गौरव के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनका किस तरह जवाब दें। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत पर हमले कर हिंदुओं पर घोर अत्याचार किए और तलवार के बल पर इस्लाम फैलाया। उन्होंने करीब आठ सदी तक देश के विभिन्न हिस्सों में राज किया। इसी दौरान न जाने कितने मंदिर तोड़े और लूटे गए। बाबर के समय अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़ा गया तो औरंगजेब ने काशी के विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तोड़ कर वहां मस्जिदों का निर्माण कराया। मुगल शासन के दौरान व्यापार करने की आड़ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर कब्जा किया। बाद में इसे इंग्लैंड की सरकार ने अपने अधीन कर लिया।
आदिकाल से मानव के जीवन में धर्म एक प्रमुख पहलू रहा है। लोग जिनकी भी पूजा करते थे, उनके स्थलों को बचाने के लिए कोई कसर नहीं उठा रखते थे। ईसाइयत और इस्लाम के अनुयायियों ने अपने मजहब का प्रचार करने के लिए तलवार का सहारा लिया। ये दोनों मजहब अपने वर्चस्व के लिए एक-दूसरे से टकराते भी रहे। इन दोनों मजहबों के विपरीत हिंदुओं ने सनातन धर्म के प्रचार के लिए कभी भी जोर-जबरदस्ती का सहारा नहीं लिया। हिंदुओं ने अन्य उपासना पद्धति वालों को कभी विधर्मी नहीं कहा। उलटे उन्हें भी अपना जैसा माना और यही कहा कि सभी को अपने-अपने विश्वास के अनुसार अपने इष्ट की आराधना करने का अधिकार है। इसी सोच के कारण हिंदुओं ने अन्य उपासना पद्धति वालों का आदर किया और यहां तक कि जब वे शरण लेने आए तो उनका सत्कार किया। इनमें ईसाई भी थे, यहूदी भी और पारसी भी।
इस्लाम मुख्यत: आतंक के बल पर भारत में आया। इस्लाम को मानने वाले आक्रमणकारियों ने भारत पर हमले के दौरान बड़ी संख्या में मंदिरों, मठों, बौद्ध विहारों को निशाना बनाया। इन आक्रमणकारियों के ऐसे ही रवैये के कारण हिंदुओं ने उन्हें अपने शत्रु के रूप में देखा और उनसे लगातार संघर्ष किया। इस्लामी हमलावरों की ओर से भारत में मंदिरों में बड़े पैमाने पर जो तोड़फोड़ की गई, उसके कारण ही हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक खाई पैदा हुई। अंग्रेजों ने अपना हित साधने के लिए इस खाई को और चौड़ा किया। इसी खाई के कारण भारत का विभाजन हुआ।
आजादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रही कांग्रेस तमाम प्रयासों के बाद भी भारत विभाजन के पैरोकार जिन्ना सरीखे नेताओं को संतुष्ट नहीं कर सकी। परिणाम यह हुआ कि भारत को अंग्रेजों से आजादी तो मिली, लेकिन मजहब के आधार पर देश के त्रसद विभाजन के साथ। इस विभाजन के बाद भी तमाम मुसलमान भारत में ही रहे। वे अपने भविष्य को लेकर आशंकित थे। उनकी आशंका दूर करने के नाम पर सेक्युलरिज्म के बहाने उनका तुष्टीकरण शुरू हो गया। जब यह हद से ज्यादा बढ़ गया और एक तरह से मुस्लिमपरस्ती में तब्दील हो गया तो हिंदू समाज असहज होने लगा।
वह तब और असहज हुआ, जब अपने पर हुए जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उसे धिक्कारा जाने लगा। यह काम वामपंथी दलों ने शुरू किया। धीरे-धीरे इसे कांग्रेस समेत अन्य कथित सेक्युलर दलों ने भी अपना लिया। आहत हिंदू समाज को संबल देने के लिए पहले जनसंघ आगे आई, फिर उसने भाजपा के रूप में यही काम करना शुरू किया। उसने राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में आवाज उठानी शुरू की। इस आंदोलन से जुड़ने के बाद उसे राजनीतिक तौर पर ऐसी सफलता मिली कि उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है।
आज अगर भाजपा हिंदुओं की अस्मिता और गौरव के लिए कार्य कर रही है तो इसका कारण उसका अपना राजनीतिक डीएनए है। भाजपा पर जब-तब यह आरोप लगता रहता है कि चुनाव के समय ही उसे हिंदू अस्मिता की बात याद आती है, लेकिन सच तो यह है कि वह सदैव हिंदू समाज के गौरव की बात करती रही है। विश्वनाथ धाम परियोजना की शुरुआत कोई उत्तर प्रदेश के चुनावों को ध्यान में रखकर नहीं की गई। यह तो प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प का हिस्सा थी। आज अगर बनारस के साथ पूरा देश इस परियोजना से प्रसन्न है तो वह स्वाभाविक रूप से इसके लिए भाजपा और प्रधानमंत्री की सराहना कर रहा है।
मुस्लिम कार्ड खेलने वाले कांग्रेस समेत अन्य दल भाजपा की रीति-नीति से किस तरह बेचैन हैं, इसका प्रमाण उनकी ओर से खुद को हिंदू साबित करने की कोशिश से मिलता है। राहुल गांधी कभी जनेऊ धारण करते हैं और कभी खुद को कश्मीरी ब्राह्मण कहते हैं। इसी तरह ममता बनर्जी भी चंडी पाठ करती हैं और अखिलेश यादव अपने कार्यकाल में हिंदू तीर्थ स्थलों में कराए गए विकास कार्यो का उल्लेख करते हैं। इसका मकसद खुद को हिंदू हितैषी साबित करना है। ऐसे नेता यह भूल रहे हैं कि जहां भाजपा का डीएनए ही हिंदूवादी है, वहीं वे सेक्युलरवाद के नाम पर मुस्लिमपरस्ती करते हैं। राहुल गांधी जब यह कहते हैं कि हिंदू अलग हैं और हिंदुत्ववादी अलग, तब खुद को हिंदूवादी साबित करने की उनकी कोशिश नाकाम ही होती है।
उन्होंने जयपुर की रैली में अजीबोगरीब ढंग से यह समझाने की कोशिश की कि उन्हें हिंदुओं से कोई परहेज नहीं, पर वह हिंदुत्ववादियों को गलत मानते हैं। वह क्या कहना चाहते थे, यह वही बता सकते हैं। उनकी समझ से तो ऐसा लगता है कि हिंदू वही है, जो अपने पर हुए अत्याचारों की बात न करे। कुछ ऐसा ही नजरिया अन्य विपक्षी नेताओं का भी है, लेकिन अब हिंदू समाज चुप नहीं बैठने वाला। हिंदू समाज यह स्वीकार करने वाला नहीं कि उसे अलग नजरिये से देखा जाए और अन्य समुदायों और विशेष रूप से मुस्लिम समाज को अलग नजर से। हिंदू समाज को राष्ट्रवाद की ऐसी परिभाषा भी स्वीकार नहीं कि उनके ऊपर जो अत्याचार हुए, उन पर वह मौन रहे। विपक्षी नेता भी यह ध्यान रखें तो बेहतर। उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत के विचार और उसकी अस्मिता हिंदू धर्म में ही समाहित है।
(लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं)
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