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उप चुनाव मध्य प्रदेश में क्यों हैं चुनौती पूर्ण
एक साल के भीतर ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सामने फिर उप चुनाव चुनौती के तौर पर खड़े हुए हैं. पिछले साल सत्ता गंवाने के बाद 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाई थी. दमोह विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों से भारतीय जनता पार्टी पर जो दबाव बना, उसने कांग्रेस को अतिविश्वास से भर दिया. अब एक लोकसभा सहित तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव की तारीखें घोषित हो गई हैं, लेकिन, कांग्रेस के नेता मैदान में दिखाई नहीं दे रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की अनुपस्थिति कांग्रेसियों को भी खल रही है.
खंडवा में लोकसभा सीट का उपचुनाव होना है. जबकि जोबट, पृथ्वीपुर और रैगांव में विधानसभा के उपचुनाव हैं. चारों सीटों पर उप चुनाव की स्थिति मौजूदा सांसद और विधायकों के निधन के कारण बनी है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खंडवा सीट पर भाजपा के नंदकुमार चौहान निर्वाचित हुए थे. जोबट और पृथ्वीपुर की विधानसभा की सीट कांग्रेस के कब्जे वाली सीट है. जोबट की विधायक कलावती भूरिया और पृथ्वीपुर के विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर का निधन कोरोना संक्रमण के कारण हो गया था. रैगांव की सीट से भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी का निधन भी कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ जाने के कारण हुआ था. जिन तीन सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव हो रहे हैं, वे राज्य के अलग-अलग अंचल वाली हैं. पृथ्वीपुर की सीट बुंदेलखंड क्षेत्र में आती है. जबकि रैगांव विंध्य प्रदेश में हैं. जोबट विधानसभा और खंडवा लोकसभा की सीट मालवा-निमाड़ का हिस्सा है. विधानसभा का पिछला उप चुनाव दमोह की सीट पर हुआ था. यह सीट बुंदेलखंड की है. 2018 के आम चुनाव और अप्रैल 2021 में हुए उप चुनाव में दमोह की सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. दमोह में उप चुनाव की स्थिति दलबदल के कारण बनी थी. कांग्रेस के राहुल लोधी ने भाजपा में शामिल होने के बाद विधायक से इस्तीफा दे दिया था. दमोह में कांग्रेस की जीत के पीछे भाजपा कार्यकर्ताओं की उम्मीदवार से नाराजगी मुख्य वजह रही. भाजपा ने दलबदल कर आए राहुल लोधी को ही उम्मीदवार बनाया था.
हर सीट पर कमलनाथ के लिए अलग चुनौती
तीन विधानसभा सीट और एक लोकसभा की सीट पर कांग्रेस के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं. हर सीट की चुनौती अलग है. मुख्यतः: दो चुनौतियां कांग्रेस के सामने हैं. पहली चुनौती गुटबाजी की है. दूसरी बड़ी चुनौती पार्टी के नेतृत्व को लेकर है. पिछले साढ़े तीन साल से कमलनाथ राज्य में कांग्रेस को अपने हिसाब से चल रहे हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पंद्रह साल बाद सत्ता में वापस लौटी तो कमलनाथ ने इसे अपनी रणनीति की जीत के तौर पर लिया. कांग्रेस के दिग्गज नेता मसलन ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह तथा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव सरकार बनने के बाद हाशिए पर डाल दिए गए. सिंधिया, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. अजय सिंह और अरुण यादव अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. अजय सिंह के पिता स्वर्गीय अर्जुन सिंह कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता रहे हैं. जबकि अरुण यादव के पिता स्वर्गीय सुभाष यादव दिग्विजय सिंह सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे हैं. बड़े किसान नेता माने जाते थे. कमलनाथ से पहले अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस के साढ़े चार साल तक अध्यक्ष रहे हैं. केन्द्र में मंत्री भी रहे. हाल ही में कमलनाथ के करीबी पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने अरुण यादव के खिलाफ तीखी टिप्पणी की थी. उन्होंने तंज कसा था कि -उनके कई कॉलेज और हजार एकड़ कृषि जमीन है. पूर्व मंत्री का अपनी पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष पर यह तंज इस बात को लेकर था क्योंकि वे उप चुनाव की बैठक में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे थे. सज्जन सिंह वर्मा, उस कमेटी के समन्वयक हैं, जो चार सीटों के उप चुनाव के लिए बनाई गई है. इससे पहले कमलनाथ ने खंडवा सीट पर अरुण यादव की दावेदारी पर कहा था कि -"मेरी जानकारी में उनकी दावेदारी नहीं है."
अजय-अरुण की भूमिका पर टिकी हैं निगाहें
पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के लिए अजय सिंह और अरुण यादव को साधना वक्त की जरूरत है. दोनों ही नेताओं के प्रभाव वाले क्षेत्रों में उपचुनाव हैं. खंडवा सीट पर अरुण यादव की दावेदारी को नकारना भी जोखिम भरा हो सकता है. प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में यादव ओबीसी चेहरा हैं. निमाड़ के ओबीसी वोटर में उनकी अच्छी पैठ है. अजय सिंह के प्रभाव वाले सतना जिले की रैगांव सीट पर विधानसभा के उपचुनाव हैं. यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. जुगल किशोर बागरी इस सीट पर चुनाव जीतते रहे हैं. अजय सिंह की उपेक्षा कर कांग्रेस के लिए उप चुनाव जीतना मुश्किल भरा है. यही कारण है कि पिछले दिनों जब अजय सिंह का जन्म दिन आया तो उनके घर बधाई देने पहुंचने वालों राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी थे. इन मुलाकातों के बाद अजय सिंह के पार्टी छोड़ने की चर्चाएं भी चल निकलीं. इन चर्चाओं पर अजय सिंह ने कहा कि मैं कांग्रेसी था और रहूंगा. इसी तरह के चर्चाएं पूर्व में अरुण यादव की भी चलती रही हैं. निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर सीट के समीकरण कमलनाथ के अनकुल बनते दिखाई दे रहे हैं. जबकि जोबट में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को एक बार फिर अपना वर्चस्व सिद्ध करना पड़ रहा है.
क्या कमलनाथ का चेहरा बनेगा चुनावी मुद्दा
राज्य में उप चुनाव हैं और कमलनाथ मैदान में नहीं हैं. राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि उस सेना की बात ही क्या करना जिसका सेनापति सामने नहीं है. कांग्रेस प्रवक्ता जेपी धनोपिया के अनुसार कमलनाथ अपने स्वास्थ्यगत कारणें से देश से बाहर हैं. वे दो अक्टूबर से भोपाल में ही रहेंगे. कांग्रेस के नेताओं के मैदान में न होने का पूरा लाभ भाजपा उठाने में लगी हुई है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा लगातार उप चुनाव वाले क्षेत्रों के दौरे कर रहे हैं. इन दौरों में कमलनाथ की अनुपस्थिति को भी बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश चल रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सवाल कर रहे हैं कि कांग्रेस किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी अभी यही नहीं पता. पार्टी अध्यक्ष वीडी शर्मा का सवाल है कि क्या दिग्विजय सिंह चुनाव का नेतृत्व करेंगे?
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
दिनेश गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.
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