सम्पादकीय

निजता का खुलेआम हनन

Gulabi Jagat
2 April 2022 5:12 AM
निजता का खुलेआम हनन
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सुप्रीम कोर्ट निजता को भारत के नागरिकों का मूल अधिकार घोषित कर चुका है
By NI Editorial
इस बिल के दायरे में अभियुक्त भी हैं। यानी जिनका अपराध सिद्ध नहीं हुआ है और जिन्हें अपराधी नहीं कहा जा सकता, उन पर भी प्रस्तावित कानून लागू होगा। जबकि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत यह है कि जब तक कोई व्यक्ति अपराधी साबित ना हो जाए, उसे सामान्य नागरिक माना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट निजता (प्राइवेसी) को भारत के नागरिकों का मूल अधिकार घोषित कर चुका है। लेकिन क्या भारत सरकार उसका सम्मान करती है, यह एक गंभीर प्रश्न है। यह सवाल पहले भी कई मौकों पर कई मामलों में उठा है। अब यह फिर से लोकसभा में पेश दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 के कारण चर्चा में है। इस बिल में प्रावधान है कि किसी अपराध के मामले में गिरफ्तार और दोषसिद्ध अपराधियों का रिकॉर्ड रखने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकेगा। यहां ये बात गौरतलब है कि इस बिल के दायरे में अभियुक्त भी हैं। यानी जिनका अपराध सिद्ध नहीं हुआ है और जिन्हें किसी परिभाषा के आधार पर अपराधी नहीं कहा जा सकता, उन पर भी प्रस्तावित कानून लागू होगा। जबकि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत यह है कि जब तक कोई व्यक्ति अपराधी साबित ना हो जाए, उसे सामान्य नागरिक माना जाता है। उसे उसके मूलभूत अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। लेकिन इस बिल ने अभियुक्त और सजायाफ्ता अपराधी का फर्क मिटा दिया है। विधेयक को हाल में केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी थी।
विधेयक पेश करते हुए गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि अभी मौजूद कानून में सिर्फ उंगली के निशान और पांव के निशान लेने की अनुमति है। अब जबकि अब नई प्रौद्योगिकी आ गई है, तो इस कानून में संशोधन की जरूरत पड़ी है। सरकार का कहना है कि संशोधन से जांच एजेंसियों को मदद मिलेगी और दोषसिद्धि भी बढ़ेगी। वहीं इस विधेयक के विरोध में लोकसभा में विपक्षी सांसदों ने कहा कि यह अनुच्छेद 20 और 21 का उल्लंघन है। उन्होंने उचित ही कहा कि यह बिल निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। विधेयक के पारित होने के बाद पुलिस के पास यह अधिकार आ जाएगा कि वह आरोपी या सजायाफ्ता लोगों के शारीरिक और जैविक नमूने ले सकेगी। पुलिस आंखों की पुतलियों की पहचान, हथेली-पैरों की छाप, फोटो और लिखावट के नमूने भी ले सकेगी। बिल पुलिस थाना प्रभारी या हेड कांस्टेबल रैंक के पुलिसकर्मी को आरोपियों के नमूने लेने का अधिकार देता है। इन मापों के रिकॉर्ड संग्रह की तारीख से 75 वर्षों तक बनाए रखा जाएगा। यह बिल अपराधियों की पहचान अधिनियम 1920 को खत्म कर नया कानून बनाने के लिए लाया गया है।
Gulabi Jagat

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