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- एक ने लिखा, दूसरे ने...
आजादी हमें लाखों कुर्बानियों के बाद मिली है। 63 दिन की सबसे लंबी भूख हड़ताल के बाद जब जतिन दास शहीद हुए तो उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए। तरानों-नारों का भी देशभक्ति की ज्वाला जलाने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दंूगा, जय हिंद, दिल्ली चलो, करो या मरो, इंकलाब जिंदाबाद, अंगे्रजो भारत छोड़ो, दूर हटो ये दुनियावालो, हिमालय की चोटी से आज हमने ललकारा है, ने तो हर भारतीय मेंं जोश भर दिया। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है कितना जोर बाजु-ए-कातिल में है, ने तो आंदोलन को बुलंदियों पर पहंुचा दिया। यह तराना एक तरह से देशभक्ति का पर्याय बन गया। इन अमर व महान पंक्तियों को किसने लिखा, इसे बहुत से लोग नहीं जानते हैं। इसे बिस्मिल ने लिखा था। बिस्मिल भी दो थे। एक हैं बिस्मिल अजीमाबादी व दूसरे हैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल। इस नगमे को बिस्मिल अजीमाबादी ने लिखा है। फांसी पर झूलने से पहले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने इसे अपने साथियों के साथ गाया था। शहीद होने के बाद तो यह गाना बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया। उल्लेखनीय है कि 19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अपने साथियों के साथ गोरखपुर जेल में देश पर कुर्बान हो गए थे। आज सौ साल बाद भी ये पंक्तियां सदाबहार व तरोताजा हैं। बिस्मिल अजीमाबादी का जन्म 1901 को बिहार के हरदसाबीघा में हुआ था। उनका नाम सैयद शाह मोहमद हसन रखा गया। अभी छोटे ही थे कि उनके वकील पिता का देहांत हो गया।