सम्पादकीय

एक ने लिखा, दूसरे ने अमर कर दिया

Rani Sahu
19 Dec 2021 6:41 PM GMT
एक ने लिखा, दूसरे ने अमर कर दिया
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आजादी हमें लाखों कुर्बानियों के बाद मिली है

आजादी हमें लाखों कुर्बानियों के बाद मिली है। 63 दिन की सबसे लंबी भूख हड़ताल के बाद जब जतिन दास शहीद हुए तो उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए। तरानों-नारों का भी देशभक्ति की ज्वाला जलाने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दंूगा, जय हिंद, दिल्ली चलो, करो या मरो, इंकलाब जिंदाबाद, अंगे्रजो भारत छोड़ो, दूर हटो ये दुनियावालो, हिमालय की चोटी से आज हमने ललकारा है, ने तो हर भारतीय मेंं जोश भर दिया। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है कितना जोर बाजु-ए-कातिल में है, ने तो आंदोलन को बुलंदियों पर पहंुचा दिया। यह तराना एक तरह से देशभक्ति का पर्याय बन गया। इन अमर व महान पंक्तियों को किसने लिखा, इसे बहुत से लोग नहीं जानते हैं। इसे बिस्मिल ने लिखा था। बिस्मिल भी दो थे। एक हैं बिस्मिल अजीमाबादी व दूसरे हैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल। इस नगमे को बिस्मिल अजीमाबादी ने लिखा है। फांसी पर झूलने से पहले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने इसे अपने साथियों के साथ गाया था। शहीद होने के बाद तो यह गाना बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया। उल्लेखनीय है कि 19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अपने साथियों के साथ गोरखपुर जेल में देश पर कुर्बान हो गए थे। आज सौ साल बाद भी ये पंक्तियां सदाबहार व तरोताजा हैं। बिस्मिल अजीमाबादी का जन्म 1901 को बिहार के हरदसाबीघा में हुआ था। उनका नाम सैयद शाह मोहमद हसन रखा गया। अभी छोटे ही थे कि उनके वकील पिता का देहांत हो गया।

इसके बाद इन्हें ननिहाल लाया गया। उनके नाना-मामा शायरी के बड़े शौकीन थे व वहीद इलाहाबादी के शिष्य थे। ऐसे में बिस्मिल को शायरी घुट्टी में ही मिल गईं। समय के साथ यह शौक इतना चर्राया कि परवान चढ़ गया। बाद में उन्होंने अपने नाम के साथ तखल्लुस बिस्मिल जोड़ दिया। बिस्मिल का अर्थ होता है घायल-बेचैन। उनकी कलम के चर्चे चारों ओर होने लगे। उनके गुरु का नाम खान बहादुर शाद अजीमाबादी था। संभवतया अपने गुरु को मान-सम्मान देने के लिए उन्होंने अपने नाम के साथ अजीमाबादी जोड़ दिया। इस तरह वे बिस्मिल अजीमाबादी बन गए। उनके 5 बेटे व 3 बेटियां थी। 20 जून 1978 को उनका निधन हो गया व पटना से 72 किमी दूर कुरथा में उन्हें दफनाया गया। बिहार सरकार उनके नाम पर पुरस्कार देती है। युवावस्था में ही वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। 'सरफरोशी की तमन्ना' सबसे पहले कांगे्रस के कोलकाता सम्मेलन में 1920 में गाया गया । इसके बाद 1921 में दिल्ली से प्रकाशित उर्दू दैनिक सबाह के संपादक काजी अब्दुल गफार ने इसे छापा था। दशकांे बाद 1957 में खुद बिस्मिल अजीमाबादी ने अपनी आत्मकथा याराना-ए-मयकदा में खुलासा किया था कि गजल उन्होंने ही लिखी है। शहीद, सरफरोश, भगत सिंह, रंग दे बंसती चोला, गुलाल आदि फिल्मों में इस गीत को गाया गया है। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के खिरनीबाग में मुरलीधर-मूलमती के घर 17 जून 1897 को हुआ था। उनके बड़े भाई का जन्म के बाद देहांत हो गया था। हाथों को देखकर ज्योतिषियों ने कहा था कि अगर यह बालक ज्यादा उम्र तक जीवित रहा तो चक्रवर्ती राजा बनेगा। उनके सुझाव पर 'र' अक्षर पर नाम रखा गया पंडित राम प्रसाद। मां राम समान बेटा चाहती थी। तभी यह नाम रखा गया।
उनके चार भाई व 5 बहनें थी। बचपन में बहुत उद्दंड थे। स्वामी सोम देव के मार्गदर्शन में सुधरे। स्वामी दयानंद सरस्वती की सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिखी। किताबें बेचकर वे हथियार खरीदते थे। अज्ञात, राम के नाम से भी लिखते थे। मेरा रंग दे बसंती चोला लिखकर तो वे अमर हो गए। भगत सिंह व लाखांे युवाओं का यह प्रिय गीत था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल कहते थे कि मुझे विश्वास है, मैं दोबारा जन्म लंूगा एक बार फिर मातृभूमि की सेवा करने के लिए। मैनपुरी-काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र नाथ लहरी व ठाकुर रोशन सिंह को फांसी पर लटकाया गया। राजेंद्रनाथ लहरी को तो दो दिन पहले यानी 17 दिसंबर को ही फांसी पर लटका दिया था। काकोरी कांड में 20 देशभक्तों पर केस चला था। कुछ को कालापानी का आजीवन कारावास व कुछ को चार साल की सजा हुई थी। मेरा रंग दे बसंती चोला लिखने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल व उनके साथी हमेशा देशवासियों के दिल मंे रहेंगे। अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्तूबर 1900 को शाहजहांपुर में हुआ था। काकोरी लखनऊ से आठ मील दूर है। काकोरी कांड को यूपी सरकार ने काकोरी ट्रेन एक्शन नाम दिया है। राजंेद्र नाथ लहरी ने ट्रेन की चेन खींची थी ताकि हथियारों के लिए अंग्रेजों का खजाना लूटा जा सके। नौ अगस्त 1925 को डकैती में जर्मन के चार पिस्तौल प्रयोग में लाए गए थे। इस कांड में योगेशचंद्र चटर्जी, प्रेमकृष्ण खन्ना, मुकंदी लाल, विष्णु शरण, सुरेशचंद्र भटाचार्य, रामकृष्ण खत्री, मंथन नाथ गुप्त, राजकुमार सिन्हा, गोविंद शरण, रामदुलारे त्रिवेदी, रामनाथ पांडेय, सचिंद्र नाथ सान्याल, भूपेंद्र नाथ सान्याल, प्रणवेश कुमार चटर्जी, चंद्रशेखर आजाद नामजद थे। तीस वर्ष की आयु में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल व 27 साल की आयु में अशफाक शहीद हो गए थे। दोनों की दोस्ती बेजोड़ थी।
बलराज सकलानी
लेखक सरकाघाट से हैं


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