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पारिस्थितिकी तंत्र और कृषि क्षेत्र में मधुमक्खियों की भूमिका को नकार पाना नामुमकिन है। मधुमक्खियों के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ‘यदि पृथ्वी से मधुमक्खियां विलुप्त हो जाएं तो मानव जाति मात्र चार वर्षों तक ही जीवित रह पाएगी।’ मधुमक्खियों के महत्व तथा सतत विकास में इनके योगदान को रेखांकित करने के लिए सयुंक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2017 में प्रति वर्ष 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी। 20 मई की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि यह वो दिन था जिस दिन आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रदूत एंटोन जानसा (1734-1773) का जन्म हुआ था। जानसा स्लोवेनिया में मधुमक्खी पालकों के एक परिवार से संबंध रखते थे। यह परिवार पारंपरिक तरीके से मधुमक्खियों का रखरखाव करता था। लेकिन जानसा द्वारा आधुनिक मौनपालन की विधि को अपनाया गया जिसके चलते उन्हें स्कूल में मौनपालन शिक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था।
वर्ष 2018 में पहला विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया गया। वर्ष 2023 में इस दिवस को ‘बी इंगेज्ड इन पॉलिनेटर-फ्रेंडली एग्रीकल्चर प्रोडक्शन’ विषय के अंतर्गत मनाया जा रहा है। मधुमक्खियां परागणकर्ता के रूप में दुनिया के 35 प्रतिशत फसल उत्पादन को प्रभावित करती हैं तथा दुनिया भर की 87 प्रमुख खाद्य फसलों के उत्पादन में वृद्धि करती हैं। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मधुमक्खियों द्वारा की गई सेवाओं की कीमत प्रति वर्ष 15000 से 20000 करोड़ रुपए आंकी गई है। कृषि व बागवानी के क्षेत्र में किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ करने में मधुमक्खियों का अहम योगदान रहता है। विश्व भर में मधुमक्खियों की लगभग 20000 प्रजातियां पाई जाती हैं। मधुमक्खी पालन व्यवसाय से किसान अच्छी आय अर्जित कर रहा है। यह एक वैश्विक गतिविधि है, जिससे लाखों मधुमक्खी पालक अपनी आजीविका के लिए मधुमक्खियों पर निर्भर हैं। विश्व भर में लगभग 18.8 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया जाता है, जबकि भारत में 1.08 लाख मीट्रिक टन शहद उत्पादित किया जाता है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में भारत से 61333 मीट्रिक टन शहद निर्यात किया गया जिसकी कुल कीमत 1489.81 करोड़ रुपए थी। औषधीय गुणों से भरपूर शहद का आयुर्वेद में विशिष्ट स्थान रहा है। इसे लगभग 600 प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन विडंबना यह है कि आयुर्वेद के जनक भारत देश में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष मात्र 50 ग्राम शहद का उपभोग किया जाता है, जबकि विश्व में यह 250 से 300 ग्राम है। सबसे अधिक जर्मनी में यह प्रति व्यक्ति 2 किलोग्राम प्रति वर्ष है। मधुमक्खी से हमें शहद के अलावा अन्य पदार्थ भी प्राप्त होते हैं, जिसमें रॉयल जैली, पोलन, मोम, प्रोपोलिस व जहर शामिल हैं। मधुमक्खी के विष को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिसकी कीमत बाजार में एक करोड़ रुपए प्रति किलोग्राम है। गठिया, कैंसर, पार्किंसन, अल्जेमर आदि रोगों के उपचार हेतु इसे प्रभावशाली माना गया है। रॉयल जैली, प्रोपोलिस और मोम का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन व औषधि उद्योग में किया जाता है। इन उत्पादों के अतिरिक्त मौन पालक मक्खियों को प्रजनन के माध्यम से नई रानी तैयार करके अथवा मौन वंशों को विभाजित कर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। हिमाचल के सेब बहुल क्षेत्रों में फूलों के खिलने के समय परागण के उद्देश्य से मधुमक्खियों के डिब्बों को बागीचे में रखा जाता है। मौन पालक इन डिब्बों को किराए पर देते हैं, जिससे बागीचों की फल उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है।
मधुमक्खियां नर फूलों से परागण एकत्रित कर जब मादा फूल पर भ्रमण करती हैं तो उनके शरीर से चिपके परागकण फूल के मादा भाग के संपर्क में आकर परागण प्रक्रिया को पूरा करते हैं। इनसान के बेबुनियादी हस्तक्षेप के कारण आज मधुमक्खियों का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है, जिससे इनकी बहुत सी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। हाल के दशकों में मौसम परिवर्तन व कृषि में रसायनों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण मधुमक्खियों की आबादी विश्व स्तर पर कम होती जा रही है। मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार द्वारा ‘मीठी क्रांति’ के नाम से एक पहल की गई जिसके अंतर्गत वर्ष 2021-23 तक 500 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया। उधर, हिमाचल सरकार द्वारा प्रदेश के किसानों को इस व्यवसाय के प्रति प्रोत्साहित करने हेतु मुख्यमंत्री मधु विकास योजना चलाई जा रही है। इसमें समय-समय पर किसानों के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन भी किया जाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया भर में उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों का एक-तिहाई अर्थात भोजन का हर एक तीसरा चम्मच परागण पर निर्भर करता है। अत: मधुमक्खियों के विलुप्त होने से न केवल एक प्रजाति दुनिया से खत्म हो जाएगी, अपितु पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अत: इनका संरक्षण जरूरी है।
By: divyahimachal
Rani Sahu
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