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- चौधरी हरिराम के बहाने
राजनीति की उखड़ी सड़क पर और नेताओं की भीड़ में एक जयंती खामोश गुज़र गई। न कोई संदेश छपा और न ही विमर्श की कोई जगह दिखी। चौधरी हरिराम के पथ पर बिखरे सन्नाटे का एक अर्थ कांग्रेस से जुड़ता है, तो दूसरा पिछड़ा वर्ग से। एक तीसरा पक्ष भी है जो कांगड़ा की सियासत को खुद में खुद को खोने का एहसास है। भले ही चौधरी हरिराम का जन्म आज के भौगोलिक आधार पर ऊना के खड्ड-पंजावर में देखा जाए, लेकिन वह कांगड़ा की विशालता में एक सशक्त व सर्वमान्य चेहरा रहे। आज कांगड़ा की राजनीतिक विडंबना यह है कि यहां सर्वमान्य होने के लक्षण खंडित किए जाते हैं, वरना अतीत में राहें पंडित सालिग राम, पंडित संत राम या सत महाजन के कद के मुताबिक सर्वमान्य रास्ता अख्तियार करतीं या पिछले चुनाव आते-आते जीएस बाली तथा सुधीर शर्मा को आपसी मतभेदों का शिकार न होना पड़ता। बहरहाल हरिराम में यह करिश्मा रहा कि वह वाईएस परमार के मंत्रिमंडल में कांगड़ा के हर पहलू को बांध सके और यह शोहरत उनके नाम रही कि वह शोषित, वंचित, दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ समाज के उच्च व निम्न वर्ग के बीच सर्वमान्य रहे।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल