सम्पादकीय

पंजाब में किसान नेता कितने फ्रंट पर लड़ेंगे चुनाव? क्या चुनाव के चलते खत्म हो चुकी है किसान एकता?

Rani Sahu
29 Dec 2021 3:57 PM GMT
पंजाब में किसान नेता कितने फ्रंट पर लड़ेंगे चुनाव? क्या चुनाव के चलते खत्म हो चुकी है किसान एकता?
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पंजाब (Punjab) में इस वक्त सियासी भूचाल आया हुआ है

संयम श्रीवास्तव पंजाब (Punjab) में इस वक्त सियासी भूचाल आया हुआ है. हर दूसरे दिन यहां एक नए दल खड़े हो रहे हैं पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने को. अभी कुछ दिन पहले ही भारतीय किसान यूनियन (Bharatiya Kisan Union) हरियाणा इकाई के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी (Gurnam Singh Charuni) ने 'संयुक्त संघर्ष पार्टी' बनाकर पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. तो वहीं 32 किसान संगठनों में से 22 किसान संगठनों ने बलबीर सिंह राजेवाल (Balbir Singh Rajewal) और हरमीत सिंह कादियान (Harmeet Singh Kadian) के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. हालांकि वहीं दूसरी ओर और किसान संगठन चुनाव लड़ने के खिलाफ हैं. भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने भी अब साफ कर दिया है कि वह पंजाब में किसी भी किसान संगठन के चुनावी सभा में नहीं जाएंगे और ना ही इन संगठनों के लिए या फिर किसान नेताओं के लिए चुनाव में प्रचार प्रसार करेंगे.

अब सवाल उठते हैं कि अगर किसान संगठनों में ही विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर दो फाड़ हो गई है तो फिर यह संगठन क्या वाकई में पंजाब विधानसभा चुनाव में कुछ परिवर्तन ला सकेंगे. वहीं दूसरी ओर एक सवाल और उठता है कि यह किसान संगठन जो पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार हैं, वह किस राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाएंगे और किस राजनीतिक पार्टी को नुकसान पहुंचाएंगे. क्योंकि पंजाब के सियासी मैदान में इस वक्त इतने खिलाड़ी हैं कि प्रत्याशियों के लिए एक-एक वोट मायने रखेगा. ऐसे में अगर कोई दल या संगठन वोट कटवा का काम करते हैं तो फिर पंजाब के सियासी समीकरण बदल सकते हैं.
पंजाब चुनाव में किसान संगठन कितने दमदार
जब देश में नए कृषि कानून केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए थे तो इनके विरोध में यह संगठन एक हो गए थे. और उस वक्त इन संगठनों को पूरे पंजाब का समर्थन हासिल था. हालांकि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और कैप्टन अमरिंदर सिंह जो कल तक किसान आंदोलन को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी से गठबंधन करने की बात की तब से पंजाब के लोग खास तौर से शहरी इलाकों में बीजेपी को लेकर अपना रुख नरम किए हुए हैं. किसान संगठन भी कुछ हद तक बीजेपी के कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से खुश नजर आते हैं.
चाहे चढ़ूनी हों या फिर अन्य किसान संगठन अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इनकी राजनीतिक ताकत ग्रामीण इलाकों में है. हालांकि कोई भी संगठन फिलहाल इतना मजबूत नहीं नजर आता है कि वह पंजाब विधानसभा चुनाव में किसी सीट को प्रभावित कर सकें. हालांकि यह किसान संगठन कांग्रेस पार्टी, आप और अकाली दल को नुकसान जरूर पहुंचाएंगे. क्योंकि बीजेपी को पहले से ही पंजाब में एक शहरी पार्टी का दर्जा मिला है और जहां तक रही कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी लोक कांग्रेस पार्टी की बात तो यह उसका पहला चुनाव है और इस पार्टी को जो भी वोट मिलेगा वो कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे पर मिलेगा.
आप के साथ गठबंधन कितना करेगा कमाल
पंजाब के किसान संगठनों ने अपने यूनाइटेड फ्रंट का सीएम चेहरा बलबीर सिंह राजेवाल को घोषित किया है. खबर है कि ये किसान संगठन चुनाव से पहले या चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर के सरकार बनाना चाहते हैं. इन 22 किसान संगठनों ने अपनी पार्टी का नाम 'संयुक्त समाज मोर्चा' रखा है जो गठबंधन ना होने की सूरत में राज्य की कुल 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं. इंडिया टुडे में छपी एक खबर के मुताबिक पंजाब के मालवा बेल्ट के एक किसान युवा नेता ने कहा है कि 'आप' से सीटों को लेकर बातचीत चल रही है.
किसान संगठन 35 से 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, हालांकि आप की तरफ से अभी तक इस पर कोई भी आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन आप के नेता राघव चड्ढा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि बातचीत अभी शुरुआती दौर में है और आम आदमी पार्टी हमेशा किसानों के साथ खड़ी रही है. हालांकि यह बात सच है कि अगर आप ने इन किसान संगठनों से चुनाव से पहले गठबंधन कर लिया तो ग्रामीण इलाकों में आप और भी ज्यादा मजबूत होगी. एबीपी के सी वोटर सर्वे के अनुसार भी इस वक्त पंजाब में आप मजबूत है और 32 फीसदी लोग राज्य में आप की सरकार चाहते हैं.
आपसी फूट से कमजोर होंगे किसान संगठन
जो किसान संगठन एक साथ कृषि कानूनों के विरोध में एक मंच पर खड़े थे, आज चुनाव को लेकर उनमें दो फाड़ हो गई है. राकेश टिकैत जो किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे, उन्होंने किसान संगठनों के चुनाव लड़ने को लेकर कहा है कि इससे संयुक्त किसान मोर्चा को कोई लेना-देना नहीं है. चुनाव लड़ने का फैसला किसान नेताओं का निजी फैसला है. उधर किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संगठन एसकेएस ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी. और संगठन ने चुनाव लड़ने वालो किसान नेताओं को चेताया भी है कि वह अपने किसी चुनावी सभा में संयुक्त किसान मोर्चा के नाम का इस्तेमाल नहीं करें.
दर्शनपाल की क्रांतिकारी किसान यूनियन, जगजीत डल्लेवाल की BKU सिद्धुपुर, सुरजीत फूल की BKU क्रांतिकारी, हरपाल संघा की आजाद किसान कमेटी दोआबा, गुरबख्श बरनाला की जय किसान आंदोलन, इंद्रजीत कोटबुधा की किसान संघर्ष कमेटी पंजाब, सुखपाल की दसूहा गन्ना संघर्ष कमेटी, बलदेव सिरसा की लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसाइटी और हरदेव संधू की कीर्ति किसान यूनियन किसान संगठनों के चुनाव लड़ने के विरोध में हैं.
किसान संगठनों पर आरोप भी लगेंगे
किसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव से पहले गठबंधन करने और विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर इन किसान संगठनों पर आरोप भी लगने शुरू हो गए हैं. बीजेपी और अकाली दल कह रही है कि इन किसान संगठनों का मुख्य उद्देश्य सियासत ही थी. किसान आंदोलन को भी इन लोगों ने राजनीतिक पार्टियों के प्रभाव में खड़ा किया था. अकाली दल के नेता विरसा सिंह वल्टोहा ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए इन किसान संगठनों पर आरोप लगा दिया है कि ये संगठन किसान आंदोलन में इकट्ठा हुए पैसों से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने मीडिया से कहा कि वह इन किसान नेताओं से हिसाब मांगेंगे कि किसान आंदोलन के वक्त जो पैसा इकट्ठा हुआ था उसका क्या हुआ? उनका कहना है कि जो NRI लोगों से फंड इकट्ठा हुआ उसका किसी के पास कोई हिसाब नहीं है. हालांकि किसान संगठनों ने पहले ही साफ कर दिया है कि आंदोलन के दौरान उन्हें लगभग 6 करोड़ का फंड मिला था, जिसमें से 5 करोड़ खर्च हो गए हैं.
Rani Sahu

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