सम्पादकीय

जासूसी की पुरानी दोधारी तलवार

Rani Sahu
26 July 2021 6:45 PM GMT
जासूसी की पुरानी दोधारी तलवार
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मनुष्य की सबसे पुरानी गतिविधियों में शरीक जासूसी, एक ग्रीक पौराणिक चरित्र पेगासस के चलते हमारे विमर्श के केंद्र में आ गई है

विभूति नारायण राय | मनुष्य की सबसे पुरानी गतिविधियों में शरीक जासूसी, एक ग्रीक पौराणिक चरित्र पेगासस के चलते हमारे विमर्श के केंद्र में आ गई है। किसी ने नहीं सोचा था कि एक बार बोतल से बाहर आने के बाद जिन्न किन-किन के कंधों पर बैठेगा। यह तो पाखंड होगा कि कोई जासूसी की जरूरत या उसकी व्यापकता को सिरे से ही नकार दे, लेकिन इस बार अपने भी सकपकाए हुए हैं। न उगलते बन रहा है, न निगलते। हमारी आज की दुनिया में जासूसीके दो तरीके सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। पहला, 'ह्यूम इंट' यानी इंसानों के जरिये जासूसी और दूसरा, 'इलेक्ट इंट' यानी संवाद प्रेषित करने या प्राप्त करने के उपकरणों में सेंध लगाकर मतलब की सूचनाएं हासिल करना। यदि सरल भाषा में कहना हो, तो पेगासस दूसरी श्रेणी में आएगा, पर यह इतना आसान भी नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण उन लोगों का चयन है, जिन्हें जासूसी के लिए चुना गया था। यहां यह याद रखना होगा कि इजरायली कंपनी एनएसओ द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर पेगासस को वहां की सरकार ने 'युद्ध के हथियार' के रूप में घोषित कर रखा है। 'युद्ध का हथियार' घोषित उत्पाद की बिक्री सरकारी नियंत्रण में आ जाती है। भारतीय नागरिकों के लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल जरूर होगा, क्योंकि हमारे यहां अभी तक ऐसी सामग्री सार्वजनिक क्षेत्र में ही निर्मित होती है, लेकिन हाल में फ्रांसीसी युद्धक विमान राफेल की खरीद से इसे समझा जा सकता है। राफेल को एक निजी फ्रेंच कंपनी ने बनाया जरूर है, पर वह इसे किसी देश को बेचेगी तभी, जब उसे अपनी सरकार की इजाजत मिल जाए। एनएसओ के लिए भी जरूरी है कि वह पेगासस इजरायल सरकार की अनुमति से ही किसी ऐसी सरकार को बेचे, जिसका मनवाधिकारों का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा हो। इसे किसी गैर-सरकारी संघटन को नहीं बेचा जा सकता।

पेगासस अपनी श्रेणी में अब तक का सबसे घातक सॉफ्टवेयर है। इसे किसी भी मोबाइल फोन, कंप्यूटर या लैपटॉप में बिना उससे शारीरिक संपर्क किए डाला जा सकता है। यहां तक कि काफी हद तक सुरक्षित समझी जाने वाली एपल की मशीनें भी इसके निशाने से नहीं बच सकतीं। केवल एक निर्दोष सा संदेश पढे़ जाते ही यह सॉफ्टवेयर किसी भी उपकरण में ऐसे वायरस का प्रवेश करा देगा, जिससे उस उपकरण की सारी गतिविधियों तक उसके हैंडलर की पहुंच मुमकिन हो जाएगी। यह वायरस उपकरण में उपलब्ध कैमरा, वायस रिकॉर्डर, मेल, भौगोलिक उपस्थिति या कोई भी दूसरा एप, जिसे डाउनलोड किया गया होगा, अपने हैंडलर को सुलभ करा देगा। इसमें यह भी सलाहियत है कि पकडे़ जाने का खतरा होने पर या गलती से किसी दूसरे सिमकार्ड से संपर्क हो जाने पर यह खुद को नष्ट भी कर सकता है। शायद उसकी इन्हीं क्षमताओं के कारण निर्माता कंपनी पर रोक है कि वह इस उत्पाद को किसी गैर-सरकारी संघटन को नहीं बेचेगी।
दुनिया की तो छोडे़, ऐसा भी नहीं कि भारत में पहली बार अपने विरोधियों की जासूसी कोई सरकार करा रही थी। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार इस आरोप पर गिर गई थी कि खुफिया एजेंसी के लोग राजीव गांधी के घर की निगरानी कर रहे थे। सभी जानते हैं कि एक निश्चित प्रक्रिया के तहत सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेकर किसी के टेलीफोन सुनना एक वैध कार्रवाई है, फिर क्या वजह है कि इस बार इतना शोर-शराबा हो रहा है? इसके दो परेशान करने वाले कारण हैं। एक तो यह सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को बेचा जा सकता है और दूसरा, शिकार हुए लोगों की जो सूची एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जारी की है, वह बड़ी विविधतापूर्ण है।
इस सूची में राहुल गांधी या ममता बनर्जी के करीबियों के नाम तो हैं ही, इसमें सत्ता पार्टी के एक वर्तमान और एक भावी मंत्री का नाम भी है। पत्रकारों और ऐक्टिविस्टों से होती हुई आपकी निगाहें एक नाम पर अटक जाती हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय की एक कनिष्ठ महिलाकर्मी का है। न सिर्फ उसका, बल्कि उसके पति समेत कई रिश्तेदारों के टेलीफोन नंबर इस फेहरिस्त में हैं। इस कर्मी ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न की एक शिकायत दर्ज कराई थी। फोन की निगरानी और महिलाकर्मी की शिकायत का समय एक ही है, इसलिए स्वाभाविक रूप से कुछ गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं।
नीतिगत कारणों से भारत में पेगासस किसी गैर-सरकारी संस्था के पास नहीं हो सकता, इसलिए और जरूरी है कि सरकार स्पष्ट करे कि उसने यह सॉफ्टवेयर खरीदा था या नहीं? मात्र इतना बयान देने से कि उसकी किसी एजेंसी ने फोन जासूसी नहीं की है, काम नहीं चलेगा। वैसे भी, यह मानवाधिकारों से जुड़ा मामला है और दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भारत का रिकॉर्ड खराब हुआ है। अगले हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्री नई दिल्ली आ रहे हैं और उनके प्रस्तावित एजेंडे में मानवाधिकार एक मुद्दा है। बहुत संभावना है कि पेगासस का मामला भी उठे।
एनएसओ ने विवाद बढ़ने के बाद अपनी सफाई में कहा है कि पेगासस के कारण करोड़ों लोग दुनिया में चैन की नींद ले पाते हैं। बात सही हो सकती है, अगर इसका उपयोग माफिया या आतंकी गुटों के खिलाफ किया जाए। पहली बार इस सॉफ्टवेयर का सफल इस्तेमाल मैक्सिको में ड्रग माफिया के खिलाफ किया गया और तभी दुनिया का ध्यान इसकी तरफ गया भी। हमारे देश में, जहां आतंकवाद या संगठित अपराधों के सामने कई बार राज्य बौना लगने लगता है, इसका प्रभावी इस्तेमाल हो सकता है। पर यह एक दोधारी तलवार की तरह है। यह याद रहे, अभी भी लोकतंत्र भारतीय समाज में बहुत पवित्र मूल्य नहीं बन पाया है, इसलिए सरकारों की स्वाभाविक इच्छा हो सकती है कि वे अपने विरोधियों की जासूसी कराएं। ऐसे में, पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर का निरंकुश प्रयोग सारी संस्थाओं के लिए, जिनमें स्वतंत्र न्यायपालिका व निर्भीक पत्रकारिता भी शरीक हैं, खतरा है। कोई शक नहीं कि देश में फोन टैपिंग के लिए एक निर्धारित कानूनी प्रक्रिया है, पर पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर तो बिना किसी मान्य कायदे-कानून के उपयोग में लाए जा सकते हैं। ये अपने पीछे कोई निशान नहीं छोड़ते, इसलिए बाद में दोषी का पता लगाना भी लगभग असंभव होता है। खतरा जितना बड़ा है, उसमें गणतंत्र की सारी संस्थाओं को सिर गड़ाकर एक साथ विचार करना होगा और इससे निपटने के लिए मिलकर रणनीति बनानी ही होगी, तभी लोकतंत्र सुरक्षित रह सकेगा।


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