सम्पादकीय

तेल के दाम

Subhi
11 May 2022 5:37 AM GMT
तेल के दाम
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घरेलू गैस के दाम में एकमुश्त पचास रुपए की वृद्धि से देश के कई शहरों में घरेलू एलपीजी की कीमत अब एक हजार रुपए से अधिक हो गई है। इस तरह देश के करोड़ों गैस उपभोक्ताओं को करारा झटका लगा है।

Written by जनसत्ता; घरेलू गैस के दाम में एकमुश्त पचास रुपए की वृद्धि से देश के कई शहरों में घरेलू एलपीजी की कीमत अब एक हजार रुपए से अधिक हो गई है। इस तरह देश के करोड़ों गैस उपभोक्ताओं को करारा झटका लगा है। पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से गैस के मूल्य लगातार बढ़ रहे हैं। डीजल पेट्रोल के दामों में भी आग लगी हुई है। पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय के अनुसार लगभग तीस करोड़ गैस उपभोक्ताओं पर इस मूल्यवृद्धि का असर होगा।

मूल्य वृद्धि के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि मई, 2020 से अभी तक पेट्रोल और डीजल के भावों में क्रमश: 35.82 और 34.38 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही घरेलू एलपीजी के भाव भी 481 रुपए बढ़े हैं। इस बढ़ोतरी से कई चीजों के भाव अपने आप बढ़ गए हैं। खुदरा महंगाई दर करीब सात फीसद है। लंबे खिंचते रूस यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल के साथ अनाज और खाद्य तेल भी महंगे होते जा रहे हैं। चौतरफा बढ़ती महंगाई के समाधान के लिए सरकार को तुरंत जमीनी प्रयास करने होंगे।

संविधान (छियासीवां) संशोधन कर भारत के छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मौलिक अधिकार के रूप में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 21-ए शामिल किया गया। अब इसे दरकिनार करते हुए शिक्षा के निजीकरण का बड़े पैमाने में प्रयास शुरू हो चुका है। सिर्फ एक वर्ष का आंकड़ा बताता है कि सितंबर 2018 से सितंबर 2019 के बीच देश में सरकारी स्कूलों की संख्या इक्यावन हजार कम हो गई।

इसी अवधि में निजी स्कूलों की संख्या ग्यारह हजार सात सौ बढ़ गई। मतलब जिन सरकारी स्कूलों पर दायित्व था शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने का, उनमें ताला लटक गया। जिन निजी स्कूलों ने इसे व्यापार के रूप में चलाया है, उनकी संख्या में जबरदस्त उछाल आया है।

हम सोचते थे कि केवल कल-कारखाने, खदान और वित्तीय प्रतिष्ठानों को बेचा जा रहा है, लेकिन शिक्षा को भी व्यापारियों के हाथों सौंप कर, गरीबों को शिक्षा से दूर करने का प्रण लिया जा चुका है। एक तरफ नई शिक्षा निति से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने की बात की जा रही है, दूसरी ओर इसे सौदागरों के हाथों में सौंपा जा रहा है। यह कैसा विरोधाभास है?

केंद्र सरकार ने गरीबों को परंपरागत र्इंधन से छुटकारा दिलाने के लिए उज्ज्वला योजना शुरू की थी। शुरुआती दौर में इस योजना का समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ा, लेकिन रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने उन सभी गृहणियों को अपने परंपरागत र्इंधन की ओर लौटने पर विवश कर दिया है।

आज आम नागरिक सरकार से महंगाई से राहत पहुंचाने की उम्मीद कर रहा है, लेकिन सरकार ने रसोई गैस सिलिंडर पर पचास रुपए की बढ़ोतरी कर लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। सिलेंडर की यह कीमत गरीब गृहणियों की पहुंच से बाहर हो चुकी है। सरकार को प्राथमिकता के आधार पर आम जनता को महंगाई से राहत पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।

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