सम्पादकीय

गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष

Rani Sahu
21 Oct 2022 10:23 AM GMT
गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष
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By: divyahimachal
मल्लिकार्जुन खडग़े का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय था, लिहाजा वह चुन लिए गए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। उन्हें कांग्रेस नेतृत्व, गांधी परिवार और पार्टी के वरिष्ठ-बुजुर्ग नेताओं का अघोषित और स्पष्ट समर्थन हासिल था। करीब 24 साल बाद, सीताराम केसरी के बाद, कोई गैर-गांधी नेता कांग्रेस अध्यक्ष बना है। करीब 51 साल बाद कोई दलित नेता कांग्रेस अध्यक्ष के आसन पर बैठेगा। बाबू जगजीवन राम 1970-71 में दलित अध्यक्ष थे। कर्नाटक से निजलिंगप्पा 1968-69 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे। खडग़े दूसरे कन्नड़ नेता हैं। दक्षिण भारत से कांग्रेस प्रमुख बनने वाले खडग़े 7वें नेता हैं। बेशक मल्लिकार्जुन खडग़े कर्नाटक के कद्दावर दलित नेता रहे हैं, जो 9 बार विधायक और 2 बार लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए। खडग़े अब भी राज्यसभा सांसद हैं। संसद के दोनों सदनों में उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का दायित्व भी संभाला। कांग्रेस में इतना कद्दावर नेता होने के साथ, कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर, उनकी ताजपोशी और कालखंड बेहद चुनौतीपूर्ण रहेंगे। औसत कांग्रेस कार्यकर्ता निराश है और पार्टी में बिखराव और बदहाली की स्थिति है, क्योंकि पार्टी लगातार चुनाव हार रही है।
देश के 17 राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है, जबकि 11 राज्य ऐसे हैं, जहां मात्र 1-1 सांसद है। आधा दर्जन राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में मात्र 2 विधायक और सोनिया गांधी इकलौती लोकसभा सांसद हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी और चुनाव जीतना नए कांग्रेस अध्यक्ष के सामने 'हिमालय-सी चुनौती' है। नवंबर में हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं। उनके बाद 2023 में कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा आदि कई राज्यों में चुनाव होने हैं। 2024 में आम चुनाव हैं, जो कांग्रेस के लिए 'अग्नि-परीक्षा' से कम नहीं हैं। बेशक खडग़े कर्नाटक के बड़े नेता हैं, लेकिन समूचे दक्षिण और बेहद महत्त्वपूर्ण हिंदी पट्टी में वह कतई अप्रासंगिक नेता हैं। कांग्रेस को 'दलित कार्ड' का भी अपेक्षित चुनावी लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि राज्यों में दलितों की अपनी-अपनी पार्टियां और नेता स्थापित हो चुके हैं। दलित जनाधार का एक मोटा हिस्सा भाजपा की ओर भी ध्रुवीकृत हुआ है। चुनावों में तो पूरी कांग्रेस पार्टी अपनी ताकत और क्षमता झोंक सकती है। खडग़े और उनकी टीम रणनीति तैयार कर सकती है, लिहाजा सवाल यह भी होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर खडग़े गांधी परिवार की ही 'रबड़ स्टाम्प' साबित होंगे या मजबूर अध्यक्ष बने रहेंगे अथवा मजबूत अध्यक्ष भी बन सकते हैं। चूंकि पार्टी में नए अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद जश्न और जीत का माहौल है, लेकिन कांग्रेस के युवा कार्यकर्ता अब भी 'राहुल गांधी जि़ंदाबाद' के नारे लगा रहे हैं। सवाल है कि अंतत: 'कांग्रेस आलाकमान' कौन होगा? बहरहाल अध्यक्ष के चुनाव में खडग़े को 7897 वोट मिले और शशि थरूर को 1072 प्रतिनिधियों ने वोट दिए। थरूर को जो समर्थन मिला है, वह अध्यक्ष के चुनावों में शरद पवार, राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद को मिले मतों से कई मायनों में सार्थक और व्यापक है।
थरूर युवा कांग्रेसियों के प्रतीक नेता हैं। उनकी बौद्धिकता पर कोई सवाल नहीं, लेकिन इतने कांग्रेसजनों ने वोट देकर साफ कर दिया है कि कांग्रेस में सुधार और बदलाव होने चाहिए। तभी पार्टी का पुनरोद्धार हो सकता है। खडग़े थरूर की पार्टी में सक्रियता को नकार नहीं सकेंगे, लिहाजा उन्हें सर्वोच्च कार्यसमिति में लिया जा सकता है। जिन नेताओं को अभी तक जी-23 के तहत असंतुष्ट करार दिया जाता रहा है, उन्हें भी अपने हिस्से की धूप चाहिए, क्योंकि उन्होंने थरूर के बजाय खडग़े का समर्थन किया था। ऐसे कई संतुलन बनाने की चुनौती भी खडग़े के लिए आसान नहीं होगी। बहरहाल खडग़े 26 अक्तूबर को कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार संभालेंगे। उससे पहले उन्होंने खुलासा किया है कि महंगाई, बढ़ती बेरोजग़ारी, अमीर-गरीब की चौड़ी होती खाई, नफरत, रुपए का अवमूल्यन, फासीवाद और संविधान पर मंडराते खतरों को लेकर कांग्रेस अलग-अलग जन-आंदोलन खड़े करने की कोशिश करेगी। देश को तानाशाही की भेंट नहीं चढऩे दिया जा सकता। ये जुमले कांग्रेस के पुराने जुमले हैं, जो 2014 से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। इन जुमलों पर देश की कांग्रेस के प्रति स्वीकार्यता को देखना शेष है। तभी खडग़े नेतृत्व के दौर का विश्लेषण किया जा सकेगा।
Rani Sahu

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