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- औकात में नहीं पानी
हिमाचल का पानी शराफत से पेश नहीं आता, तो इसकी हिफाजत कैसे होगी। पानी यहां अपनी औकात नहीं वसूल पा रहा, क्योंकि न इसके बहने का सलीका है और न ही इस्तेमाल का कोई ढंग पैदा हुआ। बरसात में तौबा और गर्मियों में सौदा बनते हुए भी पानी के प्रबंधन पर प्रदेश ने खुद को मजबूर ही रखा। ऐसा क्यों है कि जलापूर्ति विभागीय मजबूरी बन कर आम जनता के आगे गिड़गिड़ाती है। प्रदेश के हर छोटे-बड़े शहर-कस्बे और गांव के साथ-साथ राजधानी शिमला की औकात में पानी इतना घट गया है कि जनता जलापूर्ति की दर्शनार्थी बन कर कृपालु विभाग से अपनी बारी का इंतजार करती है। पानी अक्खड़ है, बदतमीज है, लेकिन जल शक्ति विभाग तो यह तहजीब ही भूल गया कि उसका काम मोटी पाइपों के ढेर लगाना नहीं, बल्कि आधी इंच की पाइप से चंद बूंदें अमृत जल की हलक तक गुजारना है। आश्चर्य यह कि उसी बरसात पर सूखे का दोषारोपण जो आगे चलकर जब झमाझम बरसेगी, तो फिर तोहमत यह होगी कि अधिक बरस कर पाइपें तोड़ दीं। प्रचंड गर्मी की अधिकतम जरूरत का पानी अगर विभागीय परियोजनाओं के बूते से बाहर है, तो विभाग की वर्तमान शैली और जल प्रबंधन के तौर तरीकों पर अफसोस करना होगा।
सोर्स - Divyahimachal