- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- समाज को कुछ वापस...
x
टीवी पर बार-बार दिखाए जा रहे उन झकझोर देने वाले दृश्यों को कौन भूल सकता है
एन. रघुरामन। टीवी पर बार-बार दिखाए जा रहे उन झकझोर देने वाले दृश्यों को कौन भूल सकता है, जिसमें सैकड़ों अफगान किसी भी कीमत पर अपने देश से निकलने की कोशिश में अमेरिकी एयर फोर्स के बड़े-से कार्गो प्लेन के साथ-साथ दौड़ रहे थे। जब अमेरिका, सिएटल की डॉक्टर थुई डो ने ये क्लिप देखी तो उन्हें चार दशक पुरानी तस्वीरें याद आ गईं। तब वियतनाम से भाग रहे रिफ्यूजी से खचाखच भरे हेलिकॉप्टर में वह खुद भी छोटी बच्ची के रूप में थीं, अब वह अमेरिका में सेटल हैं।
क्लिप देखने के बाद पति के साथ लिविंग रूम में बैठकर उन्होंने बात की कि वे कैसे मदद कर सकते हैं। उनके अंदर से कुछ आवाज़ आई, 'अब ये तुम्हारा लौटाने का वक्त है।' उनके आरामदायक लिविंग रूम से हजारों किलोमीटर दूर अब्दुल मतिन कादिरी उन चंद लोगों में से थे, जिन्हें सबसे पहले पता चला था कि तालिबान काबुल मेें घुस रहा है, वह अमेरिकी सेना के साथ मैकेनिक थे।
वह किसी तरह अपनी पत्नी, चार बच्चों को काबुल एयरपोर्ट लाने में कामयाब रहे और लगातार दो रातों तक बचाव विमान का बेसब्री से इंतजार करते रहे। उसके बाद के महीनों में उदारता व गहरी समझ के दौर के बीच डॉ. डो और मैकेनिक अब्दुल के रास्ते अमेरिका में मिल गए। अमेरिकी सेना ने 83 हजार लोगों को वहां से निकाला। उनमें से 36 हजार की सही कानूनी कागजी कार्रवाई अब तक हो चुकी।
बाकी फिलहाल अमेरिकी रक्षाविभाग की देखरेख में है। प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन ने एक पायलट प्रोजेक्ट की घोषणा की है, जिसके अनुसार सख्त जांच के बाद कम से कम पांच लोग मिलकर पुनर्वास एजेंसियों की मदद के लिए 'स्पॉन्सर सर्किल' बना सकते हैं। स्पॉन्सर सर्किल में 'विएत्स फॉर अफगान्स' है। वियतनाम के रिफ्यूजी और रिफ्यूजी के बच्चों ने मिलकर जमीन से जुड़ा यह समूह बनाया है, उद्देश्य है कि विस्थापित अफगानियों की वैसी ही मदद करें जैसी 1975 में उन्हें और उनके परिवारों को मिली थी।
नए देश में अनजान लोगों की उदारता और चंद संसाधनों व विकल्पों के बीच जीवनयापन की स्मृतियों और संघर्ष की कहानियों से वे आपस में जुड़े हैं। उनमें से हरेक के रिश्तेदार नावों के जरिए भागे थे, उस सबसे बड़े मानवीय संकट में दो दशकों के दौरान 8 लाख वियतनामी भागे थे। वापस भारत चलते हैं, ऊपर बताए घटनाक्रम के आसपास हाल में किसी और वाक्ये ने मेरा दिल छुआ है, तो वह मुंबई में जोमैटो के डिलीवरी बॉय हसन शेख(32) हैं, जिन्हें डिलीवरी के लिए पार्सल उठाने के रास्ते में गंभीर हालत में एक स्ट्रे डॉग मिला।
वह सड़क पर दर्द से कराह रहा था, उन्होंने बॉम्बे एनिमल राइट्स (बार) को फोन करके उसके लिए एंबुलेस भेजने को कहा। चूंकि एंबुलेंस आसानी से उपलब्ध नहीं थी, बार अधिकारियों ने उसे ही कुत्ते को अस्पताल पहुंचाने के लिए कहा। उसने कई ऑटोवालों से पूछा और एडवांस पैसे का भी वादा किया पर सबने मना कर दिया। और तब हसन ने तय किया कि कंपनी को फोन करके छुट्टी लेगा।
उसने डॉग को प्यार से उठाया, फूड डिलीवरी बैग में रखा और किसी भी एंबुलेंस से तेज वह कुत्ते को लेकर अस्पताल पहुंच गया। हसन की कहानी सुनकर बार ने उसकी एक दिन की कमाई के नुकसान और बैग को सैनिटाइज करने के लिए उसे 1500 रु. दिए। हालांकि कुछ लौटाने को कभी भी पैसों से नहीं तौल सकते।
फंडा यह है कि समाज को कुछ वापस लौटाने के लिए किसी ठोस योजना की जरूरत नहीं है। किसी भी नए हालात में आप आगे आकर मदद कर सकते हैं, चाहे मामला राजनीतिक हो या सामाजिक।
Next Story