सम्पादकीय

बंधन नहीं, मुक्ति चाहिए : हिजाब पर छिड़ी बहस, क्या बांग्लादेश के लोग धार्मिक नहीं थे?

Neha Dani
8 Oct 2022 3:21 AM GMT
बंधन नहीं, मुक्ति चाहिए : हिजाब पर छिड़ी बहस, क्या बांग्लादेश के लोग धार्मिक नहीं थे?
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ईरान की लड़कियों की आजादी के पक्ष में खड़े होने और एकजुट होने की जरूरत है।
वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान की कट्टरवादी सरकार ने महिलाओं के लिए हिजाब और ढीली पोशाकें अनिवार्य कर दी है। उससे पहले ईरान की महिलाएं क्या हिजाब ओढ़ती थीं? इस्लामी क्रांति से पहले जिसे इच्छा होती, सिर्फ वही हिजाब ओढ़ती थी। तब वहां की महिलाएं समुद्र तट पर बिकिनी में अधलेटी रहती थीं, स्कर्ट पहनकर सड़कों पर निकलती थीं। लेकिन वहां कट्टरवादियों ने सत्ता में आने के बाद महिलाओं की आजादी खत्म कर दी।
इस्लामी कट्टरवादी जहां भी सत्ता में आते हैं, सबसे पहले महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकार खत्म करते हैं। वे महिलाओं को यौन वस्तु, पुरुषों की दासी और संतान पैदा करने की मशीन के रूप में देखते हैं। उल्लेखनीय है कि लंबे समय से बांग्लादेश की महिलाओं को भी हिजाब ओढ़ाने का अभियान चल रहा है। बीती सदी के सातवें-आठवें दशक के और आज के बांग्लादेश में जमीन-आसमान का फर्क है। अब वहां की लड़कियों-महिलाओं को काले कपड़ों और हिजाब के पर्दे से जैसे ढक दिया जा रहा है।
पिछली सदी में बांग्लादेश के लोग क्या धार्मिक नहीं थे? जाहिर है कि तब वे आज की तुलना में कम धार्मिक नहीं थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि महिलाओं की पोशाकों में इतने व्यापक बदलाव लाने की जरूरत पड़ गई? इस बदलाव की वजह दरअसल धार्मिक है। आज का इस्लाम धार्मिक इस्लाम नहीं, बल्कि राजनीतिक इस्लाम है। मस्जिदों और मदरसों में जिस इस्लाम का प्रचार किया जाता है, वह राजनीतिक इस्लाम है। हालांकि बांग्लादेश के कुछ मौलवियों का कहना है कि हिजाब पर जोर नहीं है, यह ऐच्छिक है।
जाहिर है, जिस दिन वहां के कट्टरवादियों को लगेगा, उस दिन वे हिजाब को ऐच्छिक के बजाय अनिवार्य बता देंगे, जैसा कि ईरान में इन दिनों हो रहा है। शिया और सुन्नी के बीच फर्क व विरोध है, लेकिन उनकी कट्टरवादी सोच में कोई फर्क नहीं है। स्त्री दोनों के ही निशाने पर है। स्त्रियों को हराना, उनकी शिक्षा में बाधा पैदा करना, उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनने देना, और उन्हें आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान के साथ न जीने देना-यही इन दोनों का उद्देश्य है। ईरान की लड़कियां कई वर्षों से हिजाब की अनिवार्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं।
कुछ साल पहले ईरान में एक लड़की ने सड़क के किनारे रखे यूटिलिटी बॉक्स के ऊपर खड़े होकर अपने सिर से सफेद स्कार्फ खोलकर उसे एक लाठी में लपेटकर हिलाते हुए सड़क से चलते लोगों को दिखाया था। पुरुष वर्चस्ववाद को चुनौती देता वह दृश्य देखते-देखते इतना लोकप्रिय हुआ कि ईरान के दूसरे शहरों में भी लड़कियों ने यही काम किया। कुछ दुस्साहसी लड़कियों ने तो मस्जिदों के गुंबज पर चढ़कर अपने सिर से हिजाब खोलकर हवा में लहराया था।
हिजाब के उस प्रतीकात्मक विरोध का अर्थ यह था कि जो महिलाएं हिजाब ओढ़ना चाहती हैं, वे शौक से ओढ़ें, लेकिन सभी स्त्रियों को हिजाब ओढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। लेकिन कट्टरवादी राष्ट्र ईरान महिलाओं को हिजाब के मामले में छूट देने के लिए राजी नहीं है। उसने एक के बाद एक विद्रोही लड़की को गिरफ्तार किया है और उस पर कार्रवाई की है। महसा आमिनी नाम की बाईस साल की एक लड़की को तो सिर्फ इसलिए हिरासत में लिया गया, और बाद में पिटाई से उसकी मौत हो गई, क्योंकि उसके हिजाब की चौड़ाई कम थी!
महसा की मौत के बाद हजारों स्त्री-पुरुष ईरान की सड़कों पर उतर गए। नतीजतन वहां हिजाब की अनिवार्यता के खिलाफ फिर से जोरदार आवाजें उठने लगी हैं। बहुत सारी लड़कियों ने पुलिस और शासन को चुनौती देते हुए खुली सड़क पर अपने हिजाब खोलकर हवा में लहराए। कुछ लड़कियों ने हिजाब में आग लगा दी, तो कुछ ने सड़क पर ही अपने बाल काट लिए। और हिजाब के खिलाफ यह आंदोलन अब सिर्फ ईरान केंद्रित ही नहीं है।
दुनिया के अलग-अलग देशों के वे लोग भी हिजाब के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, जो स्त्री स्वतंत्रता के पक्षधर हैं। इस बीच कट्टरवादी समाज के अनेक लोग हिजाब की अनिवार्यता के पक्ष में भी तर्क दे रहे हैं। ऐसे लोगों को ईरान में हिजाब का विरोध करने वाली महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर० भी नजर रखनी चाहिए। ऐसी लड़कियों को गिरफ्तार कर थाने में ले जाकर उन पर जुल्म ढाए जाते हैं, उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ता है और कैद में भी रहना पड़ता है।
इस उपमहाद्वीप के बांग्लादेश और पाकिस्तान में कट्टरवाद का जैसा उभार हुआ है और महिलाओं ने हिजाब और बुर्का को व्यापकता में अपनाकर राजनीतिक इस्लाम का रास्ता जिस तरह सुगम कर दिया है, उस पृष्ठभूमि में इन दो देशों में भी आने वाले दिनों में महिलाओं के लिए बुर्का और हिजाब को अनिवार्य कर दिया जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा। बांग्लादेश के मदरसों में पढ़ने वाली लड़कियों को बुर्का पहनने के लिए कट्टरवादी लोग बाध्य करते हैं।
अब ऐसे तत्व कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं पर भी बुर्का पहनने का दबाव बना रहे हैं। बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय की छवि एक प्रख्यात धर्मनिरपेक्ष शिक्षा संस्थान की रही है, जहां मानवाधिकार के पक्ष में छात्र आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है। कट्टरवादी लोग अगर ऐसे एक चर्चित उच्च शिक्षा संस्थान की एक खास धार्मिक पहचान गढ़ने में सफल हो जाते हैं, तो राजनीतिक इस्लाम की वह एक बड़ी जीत होगी।
हर लड़की के लिए हिजाब अनिवार्य करना कट्टरवादियों का षड्यंत्र है। इस षड्यंत्र के सफल होने से पहले ही बांग्लादेश की लड़कियों ने हिजाब और दुपट्टे के बगैर सैफ फुटबॉल चैंपियनशिप जीतकर देश को गौरवान्वित किया है। जिन कट्टरवादियों का अब वहां बोलबाला है, देश को गौरवान्वित करने में उनका कोई योगदान नहीं। साफ है कि बुर्के और हिजाब में जकड़ने से लड़कियों का कल्याण नहीं होने वाला।
बेहतर हो कि लड़कियों को आगे बढ़ने दिया जाए, उन्हें खाने, पहनने-ओढ़ने की आजादी दी जाए, उन्हें जीवन में उनकी पसंद का क्षेत्र चुनने दिया जाए। इस 21वीं सदी में लड़कियों-महिलाओं को हिजाब और बुर्के में घेरकर रखने की कोशिश पर सिर्फ तरस ही खाया जा सकता है। ईरान की लड़कियों की आजादी के पक्ष में खड़े होने और एकजुट होने की जरूरत है।

सोर्स: अमर उजाल

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