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- नियानवें का फेर
साधो! कहते हैं नियानवें का फेर का बुरा। सारी दुनिया उलझी ही नियानवें के फेर में है। जो न उलझे, वही साधो। सच्चे-झूठे का सवाल नहीं, सोशल मीडिया का बवाल नहीं। जो सच-झूठ के फेर में उलझे, वह महंत या मुख्य मंत्री तो हो सकता है, साधु नहीं। उँगुलीमाल जब तक नियानवें के फेर में रहा, डाकू ही रहा। उसे नियानवें के फेर से बाहर निकाला बुद्ध ने। इसका मतलब हुआ कि बुद्ध वही, जो नियानवें के फेर में न फंसे। कबीर तभी कबीर हुए, जब नियानवें के फेर में नहीं फंसे। नहीं तो वह छोटी ज़ात की देही में जनमे होने के चलते, काशी के दूसरे पंडों की तरह घाट पर लोगों के माथे पर टीका भी न घिस पाते। मीरा भी नियानवें के फेर से बाहर होने के कारण ही अपने दर्द का बखान कर पाईं। मुरली मनोहर मिले या नहीं, यह तो मीरा ही बता सकती हैं। लेकिन जो यह पता लगाने निकला कि मीरा को मुरली मनोहर मिले या नहीं, नियानवें के फेर में उलझ जाता है। वैसे बुद्ध होने का यह मतलब भी नहीं कि आप सब कुछ छोड़ कर जंगलों में भटकते फिरें। इच्छाओं के जंगल से बाहर आते ही आदमी बुद्ध हो सकता है। दोबारा राष्ट्रपति बनने के मोह से बचे अब्दुल कलाम नियानवें के फेर से आज़ाद रहे।