सम्पादकीय

महंगाई

Admin2
22 July 2022 12:55 PM GMT
महंगाई
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अनाज, नून-तेल और दाल-सब्जी के भाव तो पहले ही बढ़ गए थे, अब रसोई गैस की वजह से आपका भोजन एक बार फिर महंगा होने जा रहा है। रसोई गैस सिलेंडर के दाम में 50 रुपये की वृद्धि कर दी गई है। पिछले एक साल से इसकी कीमत लगातार बढ़ रही है। इस दौरान इसके दाम 834 रुपये से बढ़कर 1053 रुपये हो गए हैं। यानी 26 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी। कुछ तो रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण और कुछ कोविड महामारी के अब तक चले आ रहे असर की वजह से विश्व बाजार में पेट्रोल की कीमतें जिस तरह से बढ़ रही हैं, उसका असर देर-सवेर भारतीय उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ना ही था। महंगाई के इस दौर को कुछ अर्थशा्त्रिरयों ने आयातित मुद्रास्फीति भी कहा है, यानी ऐसी महंगाई, जिसका असर घरेलू कारकों से कम, अंतरराष्ट्रीय बाजार के दबाव से ज्यादा हो। ऐसा भी नहीं है कि महंगाई सिर्फ भारत में बढ़ रही है, यह दुनिया भर में बढ़ रही है। विकसित देशों में भले ही इसका प्रतिशत इतना न हो, लेकिन वहां यह पिछले कई बरस के रिकॉर्ड तोड़ रही है। अगर भारत के पड़ोसी देशों को देखें, तो वहां बढ़ती महंगाई राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की हद तक पहंुच गई है।

महंगाई चाहे घरेलू बाजार में पैदा हुई हो या सात समंुदर पार से आई हो, लोगों की कमर वह एक ही तरह से तोड़ती है। कहा जाता है कि जो गरीब टैक्स नहीं दे सकते, महंगाई उन पर थोपा गया टैक्स ही है। इसकी सबसे ज्यादा मार गरीबों पर ही होती है। यह बाकी लोगों की थाली का भोजन महंगा करती है, लेकिन गरीबों की थाली में तो यह भोजन ही कम कर देती है। इससे मध्य वर्ग की परेशानियां भी काफी बढ़ती हैं। बढ़ती महंगाई के बीच जून महीने में 'एक्सिस माई इंडिया' ने उपभोक्ताओं का एक सर्वे किया, तो पाया कि इसकी वजह से 59 फीसदी परिवारों को अपनी खरीदारी में कटौती करनी पड़ी है। कटौती का यह सिलसिला पिछले तीन महीने से लगातार जारी था। इस दौरान बहुत से लोगों ने छुट्िटयों पर बाहर जाने या रेस्तरां में खाने के लिए जाने के कार्यक्रम भी स्थगित कर दिए। जिन लोगों ने खरीदारी में कटौती नहीं की, उनके खर्च काफी बढ़ गए थे। यह भी पाया गया कि लोगों की वास्तविक आमदनी अभी उस स्तर पर नहीं पहंुच सकी है, जहां वह महामारी से पहले थी। कोरोना काल में भी कुछ लोगों की कमाई तो बहुत बढ़ी दिखी, लेकिन इससे पूरे समाज की स्थिति में सुधार नहीं आया है। देश में अरबपतियों की तेजी से बढ़ती संख्या और स्विस बैंक में भारतीयों का बढ़ता काला धन भी गरीबों को परेशान कर रहा है।
भारत के लिए इस समय मुद्रास्फीति या महंगाई ही अकेली समस्या नहीं है। दुनिया के बाजारों का जो हाल है, उसने हमारी जेब को ही नहीं, हमारी मुद्रा को भी हल्का कर दिया है। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत इस समय सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है। महंगाई के कारण जब से अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं, संस्थागत विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकालकर अमेरिका में लगाने लगे हैं, इससे हमारे शेयर बाजार भी गोता लगा रहे हैं और रुपया भी। इस सबके कारण भले ही आयातित हों, लेकिन अंतत: इन मुसीबतों से किसी भी सरकार को घरेलू स्तर पर ही निपटना होता है। उन लोगों की मदद भी सरकार की जिम्मेदारी ही होती है, महंगाई जिनके पोषण स्तर को कम कर देती है। जैसे महामारी भले ही बाहर से आई, उससे घरेलू स्तर पर ही लड़ना पड़ा था, महंगाई से भी हमें वैसे ही निपटना होगा।
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