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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : पत्रकारिता एक आधुनिक विधा है, लेकिन भारत में यह परंपरागत साहित्य की विरासतों को ढोने के लिए मजबूर है। हिंदी पट्टी में साहित्य अभी तक खुद को राजनीति के आगे चलने वाली मशाल समझने की खुशफहमी पाले बैठा है तो पत्रकारिता के तथ्य पर राजनीति के कथ्य हावी हो रहे हैं। एक पत्रकार के लिए तथ्यों से ज्यादा अहम उसका हिंदू और मुसलमान होना हो जाता है। कथित गोदी और स्वयंभू गैर-गोदी पत्रकारों के बीच बंटी पत्रकारिता इतनी उग्र हो चुकी है कि अब बीच का रास्ता ही बंद हो गया है। पत्रकार को या तो इस पार रहना होगा या उस पार। अगर वह तथ्यों के बीच खड़ा होकर गढ़े गए कथ्य को नकारेगा तो उस पर पक्षधरता का बुलडोजर चलना लाजिम है। कोई पत्रकार उत्तर प्रदेश में योगी की जीत को 'हमारी हार' बता रहा है तो कोई बुलडोजर को इंसाफ का पंजा करार दे रहा है। हिंदू-मुसलमान की पहचानों में बंटे पत्रकारों पर बेबाक बोल।