सम्पादकीय

सियासत की नई प्रश्नमाला

Rani Sahu
3 April 2022 7:05 PM GMT
सियासत की नई प्रश्नमाला
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दिल्ली-पंजाब की हवाओं के बाद हिमाचल में राजनीति का नया सीजन ढूंढ रही आप पार्टी के लिए छह अप्रैल महज एक रैली का उद्घोष नहीं, बल्कि हिमाचली मुद्दों की बिसात को बदलना भी है

दिल्ली-पंजाब की हवाओं के बाद हिमाचल में राजनीति का नया सीजन ढूंढ रही आप पार्टी के लिए छह अप्रैल महज एक रैली का उद्घोष नहीं, बल्कि हिमाचली मुद्दों की बिसात को बदलना भी है। हिमाचल रिजनल अलायंस का गठजोड़ खड़ा कर रहे डा. राजन सुशांत भी पिछले काफी समय से चुनावी घोड़ों के लिए मुद्दों की काठियां बना रहे हैं, लेकिन केजरीवाल की दो टूक सियासत का सामना करने के लिए उन्हें भी अब नई प्रश्नमाला खड़ी करनी पड़ेगी। राजनीति अब तक अपनी वर्णमाला पर चल रही थी, लेकिन अब नई प्रश्नमाला के जरिए आमना-सामना होगा। दिल्ली के बाहर और पंजाब के भीतर पहुंची आप के लिए हिमाचल एक नई सियासी चरागाह है, तो इसके साथ संयुक्त पंजाब के कई प्रश्न मुंहबाए खड़े हैं। इसी का हवाला देते हुए सुशांत बीबीएमबी का मसला उठा रहे हैं। पंजाब पुनर्गठन की लेनदारी में वह केजरीवाल से पंद्रह हजार करोड़ मांग रहे हैं, हालांकि इससे कहीं अलग मुख्यमंत्री भगवंत मान पहले ही कंेद्र के पास झोली फैला कर विशेष पैकेज मांग चुके हैं।

आप के लिए दिल्ली से पंजाब तक राजनीति के मुद्दे भले ही सुशासन के मॉडल का वर्णन करते रहे हों, लेकिन हिमाचल का दिल जीतने के लिए शीर्षासन करना होगा। बेशक विधायकों की पेंशन को एक सूत्र में पिरो कर आप ने जनता के मन में खनक पैदा की है और अगर राजनीतिक व सत्ता की फिजूलखर्चियों पर नकेल डाली जाती है, तो पंजाब के फैसले इस तरफ भी हलचल मचाएंगे। आने से पहले हिमाचल के खरे खोटे अनुभवों से पंजाब की भूमिका को बड़े भाई के अंदाज में पेश करना केजरीवाल की चुनौती है। आप अगर संयुक्त पंजाब के मोर्चे पर हिमाचल को माप रही है, तो इसका रिश्ता कल हरियाणा से भी जुड़ेगा। दिल्ली के साथ-साथ पंजाब, हिमाचल व हरियाणा के कई सेतु जुड़ते हैं और इसी के परिप्रेक्ष्य में आप से उम्मीदों का क्षेत्रीय जाल बुना जा सकता है। सर्वप्रथम पंजाब पुनर्गठन के बावजूद अनसुलझे मुद्दों में रेखांकित राजनीति को एकमुश्त सुधारना होगा। क्या केजरीवाल दिल्ली-पंजाब से जुड़ी अपनी अभिलाषा का विस्तार करते हुए संयुक्त पंजाब के भी तार जोड़ देंगे। बीबीएमबी, चंडीगढ़ पर तीनों राज्यों की हिस्सेदारी, चंडीगढ़ में राजधानी व हाईकोर्ट के अलावा जोड़ नहर परियोजना के मसले पर अगर आप की राजनीतिक शुचिता दिखाई देती है, तो अलग तरह की बिसात बिछेगी।
यह इतना आसान नहीं है कि मुद्दों के ध्रुवीकरण से क्षेत्रीय सहमति का वातावरण बन जाए। हालांकि इन राज्यों के बीच क्षेत्रीय समन्वय स्थापित होता है, तो आर्थिकी के कई रुके हुए रास्ते फिर से आबाद हो सकते हैं। दिल्ली के साथ हिमाचल की सड़क कनेक्टिविटी का आलम पंजाब व हरियाणा के सहयोग के साथ पूरा होता है, तो रेल नेटवर्क की आरजू भी पूरी हो सकती है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब व हिमाचल के लिए मेट्रो परियोजनाएं, क्षेत्रीय परिवहन व हवाई सेवाएं, रज्जु मार्ग, धार्मिक व सामान्य पर्यटन की कई संभावनाएं अंतरराज्यीय तौर पर मुकम्मल हो सकती हैं। हिमाचल की जल व विद्युत क्षमता को अगर तीनों राज्य अंगीकार करें, तो न इन क्षेत्रों के खेत सूखे रहेंगे और न ही बिजली का कोई संकट आएगा। रेत, बजरी व नशे के माफिया पर जिस समन्वित कार्रवाई की जरूरत है, उसके लिए क्षेत्रीय तौर पर विश्वास का नया संकल्प चाहिए। अगर दिल्ली में केंद्रीय सरकार हिमाचल को डबल इंजन से चलाने का वादा कर सकती है, तो एक साथ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व हिमाचल के आने से क्षेत्रीय आर्थिकी के कई इंजन स्थापित हो सकते हैं और ये राज्य सरकारें किफायती तौर पर एक साथ चलने के कई नए आर्थिक मार्ग स्थापित कर सकती हैं। देखना यह होगा कि तीसरा मोर्चा पेश कर रहे केजरीवाल हिमाचल और हिमाचलियों की बेहतरी के लिए नया मॉडल किस तरह बनाते हैं। हिमाचल इतना भी सहज नहीं कि किसी नए आधार पर अपने पुराने सियासी तंत्र को एकदम खारिज कर दे।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

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