सम्पादकीय

प्रतिस्पर्धा का नया मोर्चा

Gulabi Jagat
15 Sep 2022 2:20 PM GMT
प्रतिस्पर्धा का नया मोर्चा
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By NI Editorial
चीन ने अब कर्ज संकट में फंसे देशों को अल्पकालिक कर्ज भी देने लगा है। उसने अरबों डॉलर के ऐसे कर्ज दिए हैँ। उसके इस कदम को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को दी गई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिका के नेतृत्व में पूरी दुनिया पर पश्चिम के वित्तीय वर्चस्व को सुनिश्चित करने वाले दो संस्थान वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ रहे हैँ। विश्व बैंक विकास परियोजनाओं से संबंधित ऋण गरीब और विकासशील देशों को देता है। आईएमएफ अंदरूनी वित्तीय और आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए कर्ज मुहैया करता रहा है। चीन ने पहले विश्व बैंक को चुनौती दी। 2013 में उसने बेल्ट एंड रोड इनशिएटिव (बीआरआई) शुरू किया। उसके तहत वह विभिन्न देशों में अब तक 900 बिलियन डॉलर का कर्ज दे चुका है। अब खबर आई है कि चीन ने हाल के वर्षों में कर्ज संकट में फंसे देशों को आपातकालीन और अल्पकालिक कर्ज भी देने लगा है। उसने अरबों डॉलर के ऐसे कर्ज दिए हैँ। उसके इस कदम को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को दी गई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि ऐसे चीन कर्ज का पहले किसी को अनुमान नहीं था। चीन ने 2017 से आपात ऋण देने की शुरुआत की है।
इसके तहत श्रीलंका, पाकिस्तान और अर्जेंटीना सहित कई देशों को लाभ मिला है। इन देशों को अलग-अलग कितनी रकम दी गई है, उसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ समय पहले विश्व बैंक के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा था कि चीन कर्ज देने के मामलों में पूरी गोपनीयता बरतता है। इसलिए 2017 में उसने जो शुरुआत की, उसकी जानकारी अब मीडिया रिपोर्ट से सामने आई है। चीन ने इस पहल के साथ तमाम देशों को यह संदेश दिया है कि उनके पास ऐसे कर्ज के लिए आईएमएफ के अलावा भी अब एक स्रोत मौजूद है। जानकारों के मुताबिक चीनी कर्ज संकटग्रस्त देशों को इसलिए आकर्षक लगता है चीन कोई शर्त नहीं लगाता। वह बिना आर्थिक अनुशासन बरतने या दूसरे देशों के कर्ज को रिस्ट्रक्चर की मांग किए कर्ज जारी कर देता है। तो कर्जदार देशों को आईएमएफ की शर्तों जैसी आर्थिक सुधार की पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता। लेकिन कर्जदार देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चीन का समर्थन करने को मजबूर हो जाते हैँ। जब पश्चिम से कड़ी होड़ चल रही है, तो ऐसे समर्थन चीन के लिए बड़े फायदे की बात हैं।
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