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आदित्य चोपड़ा: भारत के नये प्रधान न्यायाधीश श्री डी.वाई. चन्द्रचूड़ होंगे। इस खबर से करोड़ों देशवासियों में भारत की न्याय व्यवस्था के प्रति आदर और विश्वास का भाव जगेगा क्योंकि न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में जितने भी प्रमुख निर्णय दिये हैं, उनमें आधुनिक भारत की अपेक्षाओं का प्रतिबिम्ब नजर आता है। वह फिलहाल मुख्य न्यायाधीश श्री यू.यू. ललित के बाद सबसे वरिष्ठ हैं और भारत के नये प्रधान न्यायाधीश चुनने की जो प्रणाली है उसमें नये प्रधान न्यायाधीश का फैसला भी सरकार कार्यरत मुख्य न्यायाधीश की सलाह से ही करती है। न्यायापालिका को हमारे संविधान निर्माताओं ने सरकार का अंग न बनाकर इसे स्वतन्त्र व स्वायत्त इसीलिए रखा था जिससे भारत की राजनैतिक दलगत प्रशासन व्यवस्था पर लगातार संविधान का पालन करने का दबाव बना रहे और सर्वोच्च न्यायालय लगातार देश में संविधान के शासन की समीक्षा करने की स्थिति में रहे। स्वतन्त्र भारत में ऐसे कई मौके आये जब न्यायपालिका ने अपनी निष्पक्षता व स्वतन्त्रता के बूते पर पूरे देश में लोकतन्त्र व कानून का शासन होने की प्रणाली को कसौटी पर कसा और पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट साख कायम की। (बेशक इमरजेंसी के 18 महीनों को अपवाद समझा जा सकता है)। राजनैतिक प्रणाली की शासन व्यवस्था के दौरान न्यायपालिका का पूरी तरह अराजनैतिक व निरपेक्ष रहना भारत के लोकतन्त्र की ऐसी ताकत है जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। अतः भारत दुनिया के सबसे बड़े संसदीय लोकतन्त्र होने में इसकी न्यायपालिका की भूमिका को भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश श्री यू.यू. ललित आगामी 8 नवम्बर को रिटायर हो रहे हैं और इसके तुरन्त बाद यह पद भरा जाना जरूरी है क्योंकि भारत की जो व्यवस्था है उसमें प्रधान न्यायाधीश तो देश के सर्वोच्च संविधान संरक्षक पद 'राष्ट्रपति' के अस्थायी स्थानापन्न हो सकते हैं, मगर प्रधान न्यायाधीश का कोई स्थानापन्न नहीं हो सकता। पूर्व में ऐसा हुआ है कि प्रधान न्यायाधीश को राष्ट्रपति का कार्यभार भी कुछ समय के लिए संभालना पड़ा है। 1969 में जब स्व. हिदायतुल्लाह प्रधान न्यायाधीश थे तो उन्हें तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी ने स्वयं राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जबकि राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन की पद पर रहते ही मृत्यु हो गई थी। श्री गिरी नये राष्ट्रपति के चुने जाने तक के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे मगर जब वह स्वयं उम्मीदवार बन गये तो उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस सूरत में प्रधान न्यायाधीश श्री हिदायतुल्लाह ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला था।भारत का संविधान ऐसी शास्त्रीय कसीदाकारी से भरा पड़ा है कि पूरी दुनिया इस पर आश्चर्य करती है और इसे बनाने वालों की बुद्धिमत्ता पर तो कभी-कभी रश्क भी करती है। अतः इस संविधान की व्याख्या करने वाले प्रधान न्यायाधीश की जिम्मेदारी की कल्पना हम आसानी से कर सकते हैं। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ संयोग से ऐसे पिता की सन्तान हैं जो स्वयं भारत के प्रधान न्यायाधीश रहे थे। न्यायपालिका के इतिहास में वह सबसे लम्बे समय सात वर्ष 1978 से 85 तक इस पद पर रहे थे और उनका नाम वाई.वी. चन्द्रचूड़ था। उन्हीं के सुपुत्र न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ न्यायिक व विधि क्षेत्र के विविध संभागों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी रहे और अतिरिक्त महाधिवक्ता भी। वह पूरे दो वर्ष तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर रहेंगे और 2024 नवम्बर में रिटायर होंगे जबकि उनकी आयु 65 वर्ष की हो जायेगी। श्री चन्द्रचूड़ मई 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने थे और तब से लेकर अब तक उन्होंने बहुत से एेसे फैसलों में साझेदारी की है जिनका प्रभाव बहुत दूरगामी और सामाजिक प्रगति की रफ्तार को आगे बढ़ाने वाला और भारत के लोकतन्त्र को पुख्ता करने वाला रहा है। वह नौ सदस्यीय उस संवैधानिक पीठ के सदस्य थे जिसने नागरिक की 'निजता' के अधिकार को मूलभूत अधिकारों में से एक माना था। परन्तु उन्होंने 2016 के आधार कानून पर पांच सदस्यीय पीठ के बहुमत फैसले से अपना अलग फैसला दिया था और लिखा था कि आधार कार्ड कानून को संसद में एक वित्त विधेयक (मनी बिल) के रूप में पारित किया गया जो कि अवैध है। वहीं उन्होंने समलैंगिक सम्बन्धों को अवैध बताने वाले फौजदारी कानून की दफा 377 को भी निरस्त करने के पक्ष में फैसला दिया। सीबीआई अदालत के जज बी.एच. लोया की मृत्यु के बारे में पैदा की गई शंकाओं का निवारण भी उन्होंने तीन सदस्यीय पीठ का सदस्य रहते हुए किया और लिखा कि उनकी मृत्यु अक्समात् कारणों से हुई जिसके पीछे किसी साजिश का तार नजर नहीं आता है। मगर पिछले महीने सितम्बर में उनकी अगुवाई में गठित न्यायिक पीठ ने ऐतिहासिक फैसला दिया जिसमें अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात कराने का अधिकार दिया गया परन्तु गर्भ 24 सप्ताह से ज्यादा का न हो। अयोध्या मसले पर बनी पांच सदस्यीय पीठ के भी वह सदस्य थे जिसने राम जन्मभूमि विवाद पर अन्तिम फैसला दिया था। इनके अलावा ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जिन्हें श्री चन्द्रचूड़ की न्यायप्रियता के बेलौस अन्दाज के बारे में रखा जा सकता है परन्तु वह न्यायपालिका में भी पारदर्शिता लाने के प्रबल पक्षधर माने जाते हैं। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठों की सुनवाई सीधे टीवी पर दिखाने के हक में राय व्यक्त की थी।