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सत्तर के दशक की शुरुआत में एक युवा पत्रकार के रूप में मैंने पी एन ओक नामक एक शख्स का इंटरव्यू लिया
बिक्रम वोहरा
सत्तर के दशक की शुरुआत में एक युवा पत्रकार के रूप में मैंने पी एन ओक नामक एक शख्स का इंटरव्यू लिया. उनके नाम से मैंने निष्कर्ष निकाला कि वे भारत को चाहने वाले उन अंग्रेजों में से एक होंगे जिन्हें रस्किन बॉन्ड की तरह ही ब्रिटेन यहीं छोड़ गया. लेकिन वह भ्रम तब टूट गया जब ओक ने मुझे सूचित किया कि ताजमहल की छत पर ओम अक्षर अंकित है और यहां के शिल्प में हिन्दू उत्पत्ति के सभी सबूत नजर आते हैं. उन्होंने कहा कि वहां के जंगलों या सलाखों की डिजाइन भी मूल रूप से हिन्दू शिल्प है. वे इस बात पर अड़े रहे कि यह एक शिव मंदिर है जिसका मुख दूसरे शिव मंदिरों की तरह पूर्व की ओर नहीं है.
किसी ने वास्तव में इसे गंभीरता से नहीं लिया और सुभाष चंद्र बोस की सेना में इस पूर्व लेफ्टिनेंट के साथ सभी के दोस्ताना संबंध रहे. मैंने उनके कुछ लेख भी छापे क्योंकि वह पढ़ने में मजेदार और विचित्र थे. इसके अलावा, उन दिनों भारत इस तरह की विवेचना के प्रति अति संवेदनशील भी नहीं था. विडंबना यह रही कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ताजमहल पर लिखी लेफ्टिनेंट ओक की इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया, मगर लेफ्टिनेंट ओक अपने सिद्धांत सभी के साथ साझा करते रहे.
करीब पचास साल बाद यह मुद्दा एक बार फिर से सामने आया
अब करीब पचास साल बाद यह मुद्दा एक बार फिर से और अधिक असहिष्णु रूप में सामने आया है. ईश्वर में विश्वास नहीं रखने वाले एक भारतीय के रूप में मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि अगर ताजमहल के दो तलों पर मौजूद 20 कमरों के ताले खोल दिए जाने पर विवाद क्यों बन आया है. सबसे पहला प्रश्न तो यही उठता है कि उन्हें तालों में रखा क्यों गया है? इससे सुरक्षा में कौन सी चूक हो सकती थी? इसी बात को आगे बढ़ाएं तो इन कमरों में जो भी बेशकीमती चीजें हैं वह शुद्ध इतिहास का खजाना हैं. इन्हें तालों में बंद रखना एक अपराध जैसा है क्योंकि इन बेशकीमती चीजों में जंग, रिसाव, फफुंदी वगैरह लग सकती हैं. वहां लकड़ियों में जरूर कुकुरमुत्ते उग आए होंगे.
क्या है 22 कमरों का राज?
इन 22 कमरों को खोलने पर ताजमहल पर पड़ने वाले बुरे असर पर वास्तुकार मनोज राठौड़ से बात हुई. वे कहते हैं, "अगर आप सिर्फ दरवाजे खोल रहे हैं और जांच कर रहे हैं कि अंदर क्या है तो कोई खतरा नहीं है. लेकिन अगर आप अंदर बड़े पैमाने पर लोगों और मशीनों को लाएंगे और इसके दीवारों और खंभों को गिराते हैं तो संभव है कि ताजमहल के ढांचे पर असर पड़ जाए." मगर कोई केवल दस्तावेजों, चर्मपत्रों, घंटियों, आभूषणों, मूर्तियों, पेंटिंग्स, फर्नीचर की जांच के अलावा यहां पर और क्या करेगा? यह सब बेदाग इतिहास है जिसे जानने का हक सभी को है. क्या खुदाई इन्हीं चीजों के पुरातात्विक महत्व को जानने के लिए नहीं की जाती? कल क्या हुआ यह जानने की इच्छा मानव डीएनए में ही मौजूद है. धार्मिक प्रतिद्वंद्विता को लेकर वहां पर क्या मिलता है यह पूरी तरह से अप्रासंगिक है क्योंकि वहां पर जो कुछ भी है उसको लेकर हममें न तो विजय की खुशी होनी चाहिए न ही हार की निराशा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका
एक याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच से इस उलझे हुए मामले को सुलझाने के लिए उन बंद कमरों को खुलवाने की मांग की गई है. ताला जड़ने से पहले किसी ने इन कमरों में मौजूद सामग्री की सूची तैयार करने के बारे में नहीं सोचा और उनका संरक्षण भी सुनिश्चित नहीं किया. सबसे अजीब बात यह है कि इस बात का कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि इन कमरों को कब बंद किया गया. इसको लेकर हमारे पास दशकों पहले के बस कुछ अस्पष्ट संदर्भ हैं जो मामले को और भी पेचीदा बना देता है. अब बेहतर होगा हम आगे बढ़ें और देखें कि पी एन ओक ने जो कहा उसमें कोई सच्चाई है या ये रूम खाली हैं और किसी ने वर्षों पहले अंदर का सामान चोरी कर लिया हो. हो सकता है चोरी करने के बाद इन कमरों में ताले जड़ दिये गए हों क्योंकि इसका मास्टरमाइंड जानता हो कि वर्षों बीत जाने के बाद किसी को यहां पर कोई सुराग नहीं मिलेगा.
Rani Sahu
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