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‘अरै नीरज नै तो चाला ही पाड़ दिया। उसका भाला तो मेडलां खातर ही बना है भाई’
By: divyahimachal
'अरै नीरज नै तो चाला ही पाड़ दिया। उसका भाला तो मेडलां खातर ही बना है भाई।' हरियाणवी के ऐसे बोल आजकल वहां सुने जा सकते हैं, जहां हरियाणा बसता हो। बेशक वह नेता हो या खेल विशेषज्ञ अथवा हरियाणा का आम छोरा-छोरी हो, आजकल ऐसी टिप्पणियां सुनाई दे रही हैं, क्योंकि पानीपत के एक गांव के छोरे नीरज चोपड़ा के भाले ने एक विश्व-इतिहास रचा है। विश्व एथलेटिक्स के 39 साला इतिहास में नीरज पहले भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्होंने रजत पदक हासिल किया है, लेकिन वह किसी 'स्वर्ण' से कमतर नहीं है। वैसे 2003 में भारत की ही अंजू बॉबी जॉर्ज ने ऊंची-लंबी कूद चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। तब भी करीब दो दशकों के 'पदकीय सूखे' के बाद यह उपलब्धि भारत के हिस्से आई है। नीरज टोक्यो ओलिंपिक के 'स्वर्णिम चैम्पियन' हैं। उसमें भी नीरज अकेले ही भारतीय हैं, वैसे बीजिंग ओलिंपिक में अभिनव बिन्द्रा ने निशानेबाजी में 'स्वर्ण' जीत कर भारत और तिरंगे को गौरवान्वित किया था, लेकिन हम एथलेटिक्स की बात कर रहे हैं। यही नहीं, अंडर-20 विश्व चैम्पियनशिप, एशियाड, 2018 के राष्ट्रमंडल, 2017 की एशियन चैम्पियनशिप और दक्षिण एशियाई खेल में भी नीरज के भाले ने 'स्वर्णिम उपलब्धियां' हासिल की हैं। अधिकतर प्रतियोगिताओं में नीरज भारत के 'इकलौते पदकवीर' रहे हैं। इससे ज्यादा उपलब्धियां और क्या होंगी? फिलहाल नीरज ही भारत में 'भाला फेंक' खेल के सूत्रधार और प्रणेता हैं, जिनका अनुसरण कर नौजवानों की एक पीढ़ी ने इस खेल को 'राष्ट्रीय' बना दिया है। वह पीढ़ी भी तैयार हो रही है। नीरज ने विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता से एकदम पहले 'स्कॉटहोम डायमंड लीग' में 89.94 मीटर भाला फेंक कर दुनिया को हैरान कर दिया था। विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता के दौरान हवाओं की दिशा विपरीत थी, लगातार दो फाउल हो चुके थे, नीरज के चेहरे पर कुछ तनाव था, क्योंकि पदक फिसलता हुआ लग रहा था, लेकिन नीरज को अपने हुनर और प्रशिक्षण पर पूरा भरोसा था और दीर्घा में बैठे उनके कोच ने कुछ इशारा किया, अंतत: 88.13 मीटर भाला फेंक कर नीरज ने रजत पदक सुनिश्चित कर लिया। विपरीत परिस्थितियों की यह सफलता किसी 'स्वर्णिम पदक' से कमतर नहीं है। नीरज फिलहाल रजत पदक से संतुष्ट है, लेकिन उसके भीतर स्वर्ण पदक की आग अब भी प्रज्वलित है। ऐसा खुद उसी ने कहा है। हालांकि नीरज ने ओलिंपिक से ज्यादा दूर भाला फेंका है, लेकिन वह खुद अपने लिए चुनौती बने हैं, क्योंकि इससे ज्यादा दूरी तक वह कई बार भाला फेंक चुके हैं। वैसे नीरज 2016 से लगातार 90 मीटर भाला फेंकने का अभ्यास करता रहा है और लक्ष्य के बेहद करीब है। ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स नीरज के लिए साक्षात चुनौती हैं, जिन्होंने 90.54 मीटर भाला फेंक कर स्वर्ण पदक जीता है और अपने खिताब की रक्षा की है। पीटर्स ने पहले प्रयास में ही 90 मीटर से अधिक की दूरी नाप कर प्रतियोगिता का मापदंड तय कर दिया था। वह लगातार 90 मीटर और अधिक दूरी तक भाला फेंक रहे हैं, लेकिन नीरज ने दो मौकों पर पीटर्स को भी पराजित किया है। बहरहाल नीरज ऐसे भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्होंने एक खेल को अकेले ही परिभाषित किया है। जब वह ओलिंपिक स्वर्ण जीत कर लौटे थे और प्रधानमंत्री मोदी ने मुलाकात का न्यौता दिया था, तो प्रधानमंत्री ने उनके भाले को छू-छू कर महसूस करने की कोशिश की थी कि भाला इतना करिश्माई क्यों है? आज नीरज की उपलब्धियों की पीठ थपथपाने का दिन तो है, लेकिन उन्होंने अकेले ही पूरे बाज़ार को अपने पीछे कर लिया है। औद्योगिक घराने भाला फेंक के आयोजनों को प्रायोजित करने को तैयार हैं। नीरज जिन कंपनियों के उत्पादों के विज्ञापन कर रहे हैं, वे भी करोड़ों में पारिश्रमिक का भुगतान करती हैं। यह है आजकल के विश्व विख्यात खिलाड़ी का बाज़ार और सार्वजनिक मूल्य…! हरियाणा के पानीपत के गांव में नीरज के घर और पड़ोस में उत्सव और जश्न का माहौल है। बुजुर्ग मां के पांव भी थिरक रहे हैं। पिता बार-बार भावुक हो रहे हैं। लोग आशीर्वचन बोलते हुए आश्चर्य कर रहे हैं-भगवान नै के छोरा दिया सै!' ऐसे खिलाडिय़ों पर टिप्पणी करना हमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है, क्योंकि ऐसे छोरे-छोरियां हमारे देश में अभी गिनती के हैं-पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत, लक्ष्य सेन, प्रणय, चिराग-साईंराज की विश्व विख्यात जोड़ी, हॉकी और क्रिकेट के कुछ पल ही हमारी उपलब्धियों के उदाहरण हैं। निकहत जऱीन जैसी पहलवान छोरियों की भी विश्व स्तरीय उपलब्धियों को हम नहीं भूल सकते। फिलहाल सभी को मुबारक और नीरज के भाले को खास सलाम…! नीरज का यह प्रदर्शन अन्य खिलाडिय़ों को भी प्रेरणा देता है।
Rani Sahu
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