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- मेरा हाकिम सो रहा है
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रेडियो पर पुरानी फिल्म ‘किस्मत’ का गाना मधुर आवाज़ में बज रहा था, ‘धीरे-धीरे बादल आ रे धीरे, शोरगुल न मचा, मेरा बुलबुल सो रहा है बंद कर के आँखें।’ कुछ सोचते हुए उनकी नजऱ अख़बार में छपी उस ख़बर पर गड़ गई जिसमें बताया गया था कि उत्तर-पूर्व के एक राज्य में एक महीने से जारी जातीय हिंसा में सौ से ऊपर लोग मारे जा चुके थे, सामूहिक बलात्कार हो रहे थे, घर, दुकानें, स्कूल, मन्दिर और चर्च जलाए जा रहे थे, हज़ारों बेघर लोग विस्थापित हो चुके थे और उपद्रवी सरकारी हथियारों को ऐसे लूट रहे थे मानो राम और ईसा के नामों की लूट मची हो। उन्हें लगा मानो लूटना ज़रूरी था वरना क्या पता कबीर के शब्दों में अन्त समय में पछताना पड़ता। कहीं राम स्वर्ग में और ईसा हैवन में जगह देने से मना कर दें तो। उनकी नजऱ दूसरी बड़ी ख़बर पर पड़ी। हाकिम ने अपने हाथ में कथित राजदंड लेकर राष्ट्रपति या विपक्ष के बग़ैर संसद के नए भवन का उद्घाटन अकेले ही कर डाला था। इन बॉक्स उन महिला पहलवानों की ख़बर थी, जो एक माननीय सत्ताधीश पर शारीरिक शोषण के आरोपों के बाद उसकी गिरफ़्तारी की माँग कर रही थीं। पर इस माननीय सत्ताधीश ने बाज़ार हो चुके लोकतंत्र के दलदल में पहलवानों को सत्ताई धोबी पाट से चित्त कर दिया था।
भारतीय पुलिस ने अपने जगत विख्यात आचरण के तहत पाँच महीनों से धरने-प्रदर्शन कर रही पहलवानों को सडक़ पर घसीटने के बाद उन्हीं पर केस दायर कर दिए थे। अन्दर के पन्ने पलटे तो महिलाओं के साथ अत्याचारों, अपहरण, चोरी वग़ैरह के समाचारों के अलावा भारत को विश्वगुरू और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ इकॉनमी बनाने के दावे थे। दु:खी होकर उन्होंने पड़ोसी से उधार लिया अख़बार एक तरफ रख दिया। सरकारी होता तो शायद ग़ुस्से में पटक देते या फाड़ देते। वह सोचते रहे कि लोग वही बातें क्यों बोलते हैं जो हाकिम को अच्छी लगती हैं। जबकि बकरीवाद का प्रणेता हाकिम जब भी बोलता है, मैं-मैं ही करता है। लोगों को सपने तो बेचता है पर देश की समस्याओं पर कभी नहीं बोलता। राग बकरी, राग मोडानी, राग सत्ता, राग स्वयम्भू या राग सर्वज्ञाता के अलावा हाकिम कभी राग जगत कल्याण क्यों नहीं गाता या बजाता। गाना खत्म होने पर उद्घोषक ने घोषणा करते हुए बताया कि हाकिम 11 बजे देशवासियों से अपने मन की बात करेंगे। उन्होंने सोचा कि क्या हाकिम सत्ता के नशे में आत्ममुग्ध होकर धनानन्द ही बने रहेंगे या कभी देशवासियों के मन की बात भी सुनेंगे। वह सोचने लगे कि हर युग में अगर हाकिम सोया न होता तो विशाखदत्त ‘मुद्रा राक्षस’, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ‘चौपट नगरी’ और जॉर्ज ऑरवेल ‘बिग ब्रदर’ न घड़ते। रेडियो पर अगला गीत बजने लगा था, ‘नशा शराब में होता तो नाचती बोतल, नशे में कौन नहीं है बताओ तो जऱा।’ वह सोचने लगे कि नशा तो शराब में ही होता है।
बोतल तो जड़ होती है नहीं तो शराब पीने के बाद आदमी हैवान न बनता। ऐसा ही नशा सत्ता में भी है। उन्हें लगा कि ताउम्र देश सेवा के लिए समर्पित जिनपिंग और पुतिन की तरह हाकिम अगले चुनावों से पहले कुछ इसी तरह का बंदोबस्त अपने लिए भी कर सकते हैं। रेडियो पर ‘मन की बात’ के आरम्भ होने की उद्घोषणा के बाद उन्होंने सोचा कि बेरोजग़ार, भूखी-नंगी और मुसीबतों की मारी जनता को किस बात का नशा है। हाकिम का पहला वाक्य था, ‘मेरे प्यारे देशवासियों! बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार नई कार्य योजना लेकर आई है। 21वीं सदी के भारत को तेज़ विकास के लिए महिलाओं का तेज़ विकास और सशक्तिकरण करना उतना ही ज़रूरी है। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे बहिनों, माताओं और बेटियों की इतनी सेवा करने का इतना बड़ा अवसर मिला है।’ यह सुनते ही उनके मुँह से स्वत: बोल फूट पड़े, ‘धीरे-धीरे बादल आ रे धीरे, शोरगुल न मचा, मेरा हाकिम सो रहा है बंद कर के आँखें।’
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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