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महिला आजादी,बराबरी और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भागीदारी का परचम बुलंद करने वाले महिला दिवस के दिन इस हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि दुनिया भर की करीब 2.4 अरब महिलाओं को पुरूषों जैसे आर्थिक अधिकार हासिल नहीं हैं
Faisal Anurag
महिला आजादी,बराबरी और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भागीदारी का परचम बुलंद करने वाले महिला दिवस के दिन इस हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि दुनिया भर की करीब 2.4 अरब महिलाओं को पुरूषों जैसे आर्थिक अधिकार हासिल नहीं हैं. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का दावा है कि आर्थिक हिस्से पर अधिकार के मामले में 2.4 अरब महिलाओं का अधिकारहीन होना आधुनिक वैश्विक विकास के लिए एक बड़ी चुनौती है. विश्व बैंक रिपोर्ट कहती है कि हालांकि पिछले कुछ सालों में अनेक देशों में महिलाओं के समावेश विकास की प्रक्रिया में हिस्सेदारी बढ़ी है, बावजूद पुरूषों की तुलना में फासला अभी भी बहुत ज्यादा है. महिला दिवस के उत्सव में अक्सर इस बुनियादी पहलू को विस्मृत कर दिया जाता है कि दुनिया की वास्तविक आर्थिक उन्नति तभी संभव है, जब आधी आबादी की बराबरी,अधिकार और हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाएगी. दुनिया के अनेक हिस्सों में महिलाओं की पूरी जिंदगी ऐसे श्रम में गुजर जाती है, जिसे आर्थिक मानकों में मान्यता नहीं दी जाती है. गैर-उत्पादकता का एक बदनुमा ठप्पा लगाकर आर्थिक योगदान को खारिज कर देते हैं. इसका एक गहरा संबंध तो सामाजिक मान्यताओं और रूढ़ियों से भी है, जो महिलाओं के निर्णय के अधिकार के खिलाफ पूरी ताकत से उठ खड़ा होता है. हालांकि महिलाओं के संघर्ष के लंबे इतिहास ने कई पुरानी मान्यताओं को अप्रासंगिक कर दिया है. लेकिन अब भी कई त्रासद सामाजिक परंपराएं हैं, जिनका सर्वाधिक कोप महिलाओं को ही झेलना पड़ता है.
डीटीई में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कामकाजी उम्र की करीब 2.4 अरब महिलाओं को समान आर्थिक मौके नहीं मिलते हैं और 178 देशों में ऐसी कानूनी अड़चने हैं जो महिलाओं को अपना पूरा आर्थिक योगदान देने से रोकती हैं. वर्ल्ड बैंक की विमेन, बिजनेस एंड द लॉ 2022 रिपोर्ट का यह सारांश है. 86 देशों में महिलाओं को नौकरी में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है और 95 देशों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर आय नहीं मिलती है. विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है, ' वैश्विक तौर पर महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में सिर्फ तीन-चौथाई कानूनी अधिकार हैं. हालांकि वैश्विक महामारी के दौर में महिलाओं की जिंदगी और रोजीरोटी पर पड़ने वाले प्रभावों के बावजूद 23 देशों ने 2021 में अपने कानूनों में बदलाव किया, ताकि महिलाओं के आर्थिक समावेश को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाया जा सके. यह एक सकारात्मक पहल है लेकिन यह अभी भी नाकाफी है. 'वर्ल्ड बैंक मैनेजिंग डायरेक्टर ऑफ डेवलपमेंट पॉलिसी एंड पार्टनरशिप मारी पान्गेस्तू के अनुसार – इस दिशा में काफी तरक्की होने के बावजूद अब भी महिलाओं और पुरुषों की जिंदगीभर की अपेक्षित सालाना आय के बीच 172 लाख करोड़ डॉलर का फर्क है. यह दुनिया के सालाना जीडीपी से दो गुना ज्यादा है.
Rani Sahu
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