सम्पादकीय

चुनावी दहलीज पर खड़े दर्पण

Gulabi
16 Oct 2021 4:29 AM GMT
चुनावी दहलीज पर खड़े दर्पण
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उपचुनावों का सत्ता पक्ष कितना निर्णायक होगा यह जुब्बल-कोटखाई के बागी तेवर बताएंगे

दिव्याहिमाचल.

उपचुनावों का सत्ता पक्ष कितना निर्णायक होगा यह जुब्बल-कोटखाई के बागी तेवर बताएंगे या फतेहपुर से अर्की तक भाजपा की कतरब्यौंत काम आएगी। हिमाचल भाजपा अपने साहसिक अभियान के तहत चुनावी मजमून पढ़ रही है और इसके मुकाबले कांग्रेस दहलीज पर खड़ी आगमन की सूचना दे रही है। बावजूद इसके क्या ये उपचुनाव राजनीतिक गणित में पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमेंगे या अपने कोणीय प्रभाव से किसी व्यक्तित्व का अलंकरण करेंगे। अगर ऐसा होता है तो जुब्बल-कोटखाई में भाजपा छोड़कर निर्दलीय हो गए चेतन बरागटा के हाथ में आया 'सेब रूपी' चुनाव चिन्ह का वजन महसूस किया जाएगा। जाहिर है इस विद्रोह की चर्चा और इसकी फांस में भाजपा की तैयारियों का क्षरण भी होगा। यहां मसला सेब की अस्मिता के साथ-साथ बरागटा परिवार से जुड़ी संवेदना को खुद में समाहित कर लेता है, तो कांग्रेस के समीकरण भी उलझ सकते हैं। यानी इस खींचतान में पार्टियों का नुकसान अप्रत्याशित नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि दोनों प्रमुख पार्टियों के सामने कोणीय मुकाबले का अर्थ किसी एक की संभावना बढ़ा रहा है या किसी को सीधे चोट पहुंचा रहा है, लेकिन मतदाता के रूठने से राजनीतिक परेशानियां बढ़ेंगी। पार्टियों से अलग मतदाता के सामने अपने गुस्से का इजहार करना सभी का अमन चैन लूट सकता है। फतेहपुर में डा.राजन सुशांत अगर कुछ हासिल करते हैं, तो किसकी चुनावी खेती को नुकसान होगा, कहा नहीं जा सकता, फिर भी उनकी मेहनत से चुनाव के हाल परेशान कर सकते हैं।


जुब्बल-कोटखाई में चेतन बरागटा बिलकुल भाजपा के सामने हैं, तो इसके मायने सत्ता के नकाबपोश उद्देश्यों के विपरीत भी जा सकते हैं, लेकिन इस विरोध में कांग्रेस के मन में फूट रहे लड्डुओं की मिठास बढ़ा देगा, कहा नहीं जा सकता। जाहिर तौर पर जुब्बल-कोटखाई का चुनाव अपने कद से बड़ा ही साबित होगा। भले ही विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव मुद्दाविहीन होते नजर आ रहे हों, लेकिन मंडी संसदीय क्षेत्र अपने परिणाम के लिए मुद्दों की तपिश महसूस कर रहा है। यहां वर्तमान सत्ता का विकास सीधे वीरभद्र सिंह के विकास से मुकाबला करेगा। यहां भाजपा का भविष्य मंडी से अरदास करेगा। यहां वर्तमान मुख्यमंत्री का मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री के प्रति जनसंवेदना से है, तो हार- जीत के आंकड़े प्रदेश की सियासत बदल देंगे। यहां मुख्यमंत्री स्वयं एक मौखिक मुद्दा हंै और अगर वह इसे भुना पाए तो सरकार की परिपक्वता का श्रेय स्वयं जयराम ठाकुर को मिलेगा। दूसरा श्रेय मंडी बनाम शिमला व कबायली क्षेत्रों के लिए जीत पर निर्भर करेगा। तीसरा चुनावी जीत का रणनीतिक लाभ जयराम सरकार के वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह के करिश्मे को बढ़ा देगा। जीवन की सबसे बड़ी बाजी चेतन बरागटा व डा. राजन सुशांत लगा रहे हैं, क्योंकि अबकि बार खारिज हुए या पूरी तरह ठुकरा दिए गए, तो ऐसी परिस्थितियों से आने वाले समय में कोई भी नेता जुर्रत नहीं करेगा। इन चुनावों में 'गुदड़ी के लाल' को खोजना आसान इसलिए भी नहीं कि अगर सारा माहौल कांग्रेस बनाम भाजपा हो जाता है, तो सत्तारूढ़ की चुनावी शक्ति हर हथियार को भांजने की स्थिति में पूरी तरह सक्षम है।


मतदाता किसी उपचुनाव में अपने मत को गटर में फेंकने के बजाय सीधी बाजी में लगाना चाहती है, तो सवाल यही कि निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए ये सीधी चुनौती बनेंगे। उपचुनावी सट्टे का सबसे बड़ा प्रश्न यही होगा कि क्या भाजपा छोड़ कर चेतन बरागटा अपना कद बता पाएंगे। राजनीतिक सट्टे का सबसे खोटा सवाल फतेहपुर में डा. राजन सुशांत से पूछ रहा है कि क्या वह अपना वजूद दिखा पाएंगे। उपचुनावों का अचंभित करने वाला भ्रम यही कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों का करिश्मा इस बार ही पूरी तरह दिखा पाएगी। उपचुनाव का सबसे आत्मविश्वासी व आत्मनिर्भर प्रश्न यह हो सकता है कि वर्तमान सरकार से पूरी तरह संतुष्ट मतदाता अपना सारा प्यार उंडेल देगा। जो भी हो, उपचुनाव का तराजू जिस नीले आसमान से लटका हुआ दिखाई दे रहा है, वहां किसी भी अनुमान की शून्यता स्पष्ट है और इसलिए चुनावी माहौल की शुरुआत हांफने से हो रही है। उपचुनावों की घोषणा से ऐन पहले जो प्रदेश अपने पूर्ण राज्यत्व के स्वर्णिम महोत्सव में शरीक था या जहां दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच अपने-अपने विकास के रथों का राजनीतिक जमीन पर दौड़ाने का प्रयास हो रहा था, वे मुद्दे कितने और कहां तक चल पाते हैं, यह भी देखा जाएगा।


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