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इधर अबके मानसून तबाही मचाता आया तो बारहों महीने हाहाकार करने वाली जनता एक और हाहाकार कर उठी। जनता की हाहाकार सुन उनका मन एक बार फिर खुशी से पसीजा। तब उनकी आंखों में मानसून के प्रति वो गुस्सा दिखा कि पूछो ही मत। उन्होंने रुटीनन अपनी प्रेस कान्फ्रेंस के माध्यम से मानसून को धमकी दी। उन्होंने अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में मानसून से साफ कहा कि जो वह उनके वोटरों को सताना नहीं छोड़ेगा तो वे उसे कोर्ट में खुली चुनौती देंगे। उस पर उनकी जनता को परेशान करने की पुलिस थाने में एफआईआर लिखवाएंगे। जनता एक बार फिर उनका अपने प्रति स्नेह देख द्रवीभूत हो उठी। पर मानसून नहीं माना तो नहीं माना। इस बात का उन्हें भी पता था कि जब उनके कहने से उनकी बीवी तक नहीं मानती तो मानसून कहां मानेगा। पर यह अपने हित में करना पड़ा। करना पड़ता है। जनता का अपने ऊपर विश्वास बनाए रखने के लिए। लोकतंत्र दिखावे का ही तो तंत्र है। बहकावे का ही तो तंत्र है। जो पब्लिक को सब्जबाग दिखाए वही सफल नेता। जो पब्लिक को जितना बहकाए, वह उतना ही लोकप्रिय नेता।
सच बोलने वाले न राजनीति में चलते हैं न घर में। वे सडक़ से संसद तक हर जगह बहिष्कृत होते हैं। कदम कदम पर उनकी फजीहत होती है। इसलिए सच बोलने वालों का समाज के विनाश के लिए बहिष्कार होना बहुत जरूरी होता है। अचानक उनके माइंड में आइडिया आया कि क्यों न तबाही मचाते मानसून से बात करने के बदले उसके मालिक से ही सीधी बात कर ली जाए और इंद्रलोक का जनहित में सरकारी टूअर हो जाए। वैसे भी चुनावी साल चला है। लगे हाथ सौ पचास शिलान्यास और बचे लोक हो जाएं तो… पता नहीं चुनाव के बाद फिर… इंद्र लोक के एक से एक रंगीन, नमकीन किस्से उन्होंने स्कूल टाइम में स्कूली किताबों की जगह खूब पढ़े थे। इस बहाने इंद्रलोक की अप्सराओं से भी फेस टू फेस मुलाकात हो जाएगी और इंद्र से संबंध भी बन जाएंगे। हर जरा से भी समझदार को ऊंचे लोगों से पद पर रहते नि:संकोच मधुर संबंध बना लेने चाहिएं।
कुर्सी से उतरने के बाद ये संबंध बड़े काम आते हैं। जैसे ही उनकी बीवी के कानों में यह खबर पड़ी कि अबके वे जनहित में मानसून की बदतमीजी को इंद्र के दरबार में चुनौती देने के बहाने इंद्रलोक की सैर करने जा रहे हैं तो उनकी बीवी उनके साथ जाने को उनके लाख मना करने के बाद भी उनसे पहले तैयार हो गई। वे कम से कम इंद्र लोक में अपने पति को अकेला नहीं भेजना चाहती थीं। उनकी रग रग से वाकिफ जो थीं। पर वे तो इंद्रलोक के ट्रिप पर अपने साथ केवल अपनी पीए को ले जाना चाहते थे। इंद्रलोक में मंत्री के साथ मंत्री की बीवी का क्या काम! वे तो मृत्युलोक तक की मीटिंगों में अपनी बीवी को अपने साथ ले जाने के पक्ष में नहीं होते। और वे अपनी पीए को साथ ले इंद्र से शिष्टाचार भेंट हेतु सरकारी विमान में रंगीनियों का माल भर अप्सराओं के निजी सपने लेते इंद्रलोक को हवा हो गए। जाते जाते एयरपोर्ट पर उन्होंने प्रेस को संबोधित करते कहा, ‘मित्रो! हम जनहित में इंद्रलोक जा रहे हैं। इंद्र से बात करने कि वह हमारे सब्र का और इम्तिहान न ले। हम जनता के हित के लिए किसी भी लोक तक खा सॉरी जा सकते हैं। देखते हैं, हमें इंद्र लोक में जाने से विपक्ष कैसे रोकता है। हमारे वहां पहुंचने से पहले इंद्र तक मीडिया वाले हमारा वहां जाने का मकसद पहुंचा दें कि अगर हमें वहां गुस्सा आ गया तो…हमारे पास बात करने के सारे विकल्प खुले हैं और खुले रहेंगे। अपनी जनता के हितों की रक्षा के लिए तो हम नरक में भी जा सकते हैं। यमराज से भी दो दो हाथ कर सकते हैं। भगवान हमें लोकतंत्र की रक्षा करने की शक्ति बख्शता रहे बस!’ और उनका विमान इंद्रलोक की ओर रवाना हो गया। देखते हैं, अब वे वहां क्या गुल खिलाकर आते हैं।
अशोक गौतम
By: divyahimachal
Rani Sahu
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