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- दिलीप कुमार की यादें:...
कलाकार कभी भी किरदार से बड़ा नहीं होता। न हो सकता है। जब भी कलाकार के पास उसके बड़ा होने का एहसास होता है, तब तक वह किरदार को जी नहीं पाता। जब वह किरदार को अपने से अधिक महत्व देने लगता है, उसका अहंकार कम होने लगता है। लोग उसके किरदार की तारीफ करने लगते हैं। किरदार को निभाने के बाद जब वह अपने वजूद में वापस लौटता है, तो उसे अपना वजूद ढूंढ़ना पड़ता है। अपने वजूद में लौटने के दरमियान जब वह कुछ नहीं होता, वह ईश्वर के सबसे करीब होता है।' फिल्म मधुमती की शूट के दौरान बिमल रॉय से बातचीत के बीच एकाएक यह बात दिलीप कुमार को सूझी थी और उनमें नई ऊर्जा भर आई थी। उन्होंने इस ओर बिमल दा का ध्यान खींचा और कहा, अचानक मुझे लगा कि कलाकार तो कभी किरदार से बड़ा हो ही नहीं सकता, और ये बात कभी मुझे पहले क्यों नही सूझी! आपको क्या लगता है बिमल दा! बिमल दा ने उसी पल उन्हें बाहों में भर लिया था।