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- पुल के मायने…
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सामान्य भाषा में पुल शब्द को ऐसी संरचना के रूप में प्रयोग किया जाता है जो लोगों को पानी, खाई या किसी अन्य स्थान को पार करने की सुविधा प्रदान करता है। भले दुनिया के सभी हिस्सों में आदमी के बनाए पुल गिरते रहें, पर इस्लामी मान्यताओं में पुल को कर्मों के साथ जोड़ा गया है। सिरात अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है रास्ता या सीधा मार्ग। पुल से जोडऩे पर सिरात का शाब्दिक अर्थ बनता है वह पुल, जिससे हश्र के दिन सभी को गुजऱना होगा। इसे नर्क के आरपार बाल से भी पतले और तलवार की धार से भी तेज़ पुल के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस पुल के नीचे आग जलती रहती है। हदीस के मुताबिक कयामत के दिन सभी इन्सानों को इस पुल से होकर गुजरना होगा। धर्मात्मा इस पुल से तेज़ी से गुजर कर ज़न्नत तक पहुंचेंगे, जबकि पापी कट-कट कर नीचे ज़हन्नुम की आग में गिरते चले जाएंगे। जब ऊपर वाले ने मरने के बाद लोगों को पहले ही यह सुविधा प्रदान की है तो पता नहीं लोग दुनिया में ऐसे पुल क्यों बनाते हैं, जो निर्माण के समय या समय से पहले ही टूट कर, गुजऱते हुए जि़न्दा आदमियों को स्वर्ग या नर्क में पहुंचा देते हैं। हो सकता है सरकार या अधिकारी टेंडर में अन्य शर्तों के साथ यह प्रावधान भी रखते हों।
आजकल हिमाचल के कांगड़ा में पिछले छ: सालों से निर्माणाधीन एक पुल के गिरने पर बड़ा शोरगुल हो रहा है। भला यह भी कोई बात हुई कि पुल गिरने की जांच की जाएगी। जब इन्सान गिर सकते हैं तो उसका बनाया पुल क्यों गिर सकता? फिर यह पहला पुल तो था नहीं जो गिरा। नेताओं के चरित्र का पुल तो आए दिन गिरता रहता है। कांगड़ा का एक और पुल गिरने की बजाय बनने की वजह से बदनाम है। राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर बनने वाला यह पुल दस साल में पूरा हुआ और उसे तीन सरकारों के धन्य नामों से रूबरू होने का एजाज़ हासिल हुआ। पर उस पुराने पुल को दोनों हाथों से सलाम, जो सौ साला होने पर भी गिरा नहीं। यह भी संभव है कि कुछ साल बाद नया और पुराना पुल दोनों साथ ही गिरें। पुलों को जोडऩे का ज़रिया माना जाता है। धर्मशाला नगर निगम ने स्मार्ट शहर में लोहे के ऐसे दो स्मार्ट पुल बनाए हैं, जो अपनी अनुपयोगिता की वजह से चर्चा का विषय बने हुए हैं। फिर भी यह पुल शायद उन पुलों से बेहतर हैं, जो केवल कागज़़ों में बनते हैं।
कम से कम नजऱ तो आ रहे हैं। शहर के ऊपरी हिस्से में बनाया गया पहला पुल सडक़ के आरपार बने ऐसे दो पार्कों को जोड़ता है, जिनमें से एक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और दूसरे में भारत के पहले प्रधानमंत्री की मूर्तियां स्थापित हैं। लोग कहते हैं कि नगर निगम ने यह पुल शहर में बेतहाशा ट्रैफिक बढऩे के बाद महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के मिलन के लिए बनाया है। इसे प्यार से मिलन सेतु भी कहा जाता है। पर सच्चाई यह है कि यह दोनों बाग़ शराबियों की मिलन वाटिकाएं हैं। ऐसा ही दूसरा पुल उपायुक्त और जि़ला कोतवाल की नाक के नीचे बना है। सडक़ के एक छोर पर लोक निर्माण विभाग की कालोनी और दूसरे छोर पर जि़लाधीश परिसर में खुलने वाले इस लौह पुल पर हर आगंतुक की आंखें गड़ जाती हैं। पर अपने बनने के बाद से ये दोनों पुल उस सच्चे ज़रूरतमंद की राह जोत रहे हैं, जिसे वास्तव में इस पुल से गुजऱने की ज़रूरत हो। लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि धर्मशाला जैसे स्मार्ट सिटी के स्मार्ट नगर निगम ने अपने विजऩ में हश्र या कय़ामत को ध्यान में रखते हुए लोहे के ये दो पुल, पुल सिरात के विकल्प के रूप में उपलब्ध करवाए हों ताकि सारी उम्र तंग गलियों और सडक़ों पर बेकाबू ट्रैफिक के ज़हन्नुम से गुजऱने के बाद लोगों को ज़न्नत का रास्ता तय करने में दिक्कत न हो।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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