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सम्पादकीय
दक्षिण भारत में परिवार के भीतर शादी, अभी भी एक बड़ी चुनौती है
Gulabi Jagat
21 May 2022 8:42 AM GMT
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विवाह हमारे जीवन और रिश्तों की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है
डॉ. डी ए नागदेव:- विवाह हमारे जीवन और रिश्तों की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है. Consanguinity एक संज्ञा है, जिसका अर्थ है रक्त संबंध. Consanguineous (अंतर-पारिवारिक) शब्द दो लैटिन शब्दों, "con", (साझा) और "sanguis" (रक्त), से मिलकर बना है. Consanguineous का मतलब, एक ही परिवार में, होता है. इसमें, ऐसी महिला और पुरुष के बीच विवाह होता है जिनके खून के रिश्ते एक होते हैं और उनके पूर्वज भी एक ही होते हैं.
अंतर-पारिवारिक विवाह का प्रचलन मुख्य रूप सगे चचेरे/ममेरे भाई (फर्स्ट कजिन) से शादी करना है. दक्षिण भारत में कुछ हिंदू समुदायों में चचेरा भाई, मामा और भतीजी के बीच विवाह बहुत आम बात है. जीवनसाथी के लिए चचेरा भाई/मामा सबसे पसंदीदा विकल्प हैं. दक्षिण भारत के कई समाजों में पारंपरिक रीति-रिवाजों, विश्वासों और परिवार में ही संपत्ति को बनाए रखने के लिए आम तौर पर यह विवाह अभी भी काफी प्रचलित है.
अंतर-पारिवारिक विवाहों में दक्षिण भारतीय राज्य आगे क्यों हैं
अंतर-पारिवारिक विवाह वे होते हैं जहां महिलाओं का अपने पति के साथ पहले से ही खून का रिश्ता होता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों से पता चला है कि भारत में अंतर-पारिवारिक विवाहों में 1992-93 के 9.9 फीसदी से 2019-21 में 10.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि 15-49 आयु वर्ग में 8 फीसदी महिलाओं ने अपने सगे चचेरे/ममेरे भाई से शादी की (अपने माता-पिता के दोनों ओर से 4-4 फीसदी). अन्य संबंधों में, 1.6 फीसदी महिलाओं ने ऐसे पुरुषों से शादी की जिनसे उनका पहले से कोई रक्त संबंध नहीं था. एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में कुल मिलाकर 10.8 फीसदी महिलाओं ने अपने रक्त संबंधियों से शादी की.
रक्त संबंधियों के बीच अंतर-पारिवारिक विवाह में तमिलनाडु पहले और कर्नाटक दूसरे स्थान पर है. तमिलनाडु और कर्नाटक में करीब चार में से एक महिला की शादी अपने रक्त संबंधी से की जाती है. दक्षिण भारत के कई समाजों में अंतर-पारिवारिक विवाह अभी भी एक पसंदीदा विकल्प है. 2019-2021 के बीच किए गए नवीनतम NFHS-5 से पता चलता है कि, तमिलनाडु में सबसे अधिक संख्या में अंतर-पारिवारिक विवाह (28 फीसदी) हुए हैं, इसके बाद कर्नाटक (27 फीसदी) का नंबर आता है हैं. दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, राष्ट्रीय औसत (11 फीसदी) की तुलना में कई ज्यादा अंतर-पारिवारिक विवाह हो रहे हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 5 के आंकड़ों से पता चला कि तमिलनाडु में अंतर-पारिवारिक विवाहों में कमी आई है. यहां 1985 से पहले ऐसी शादी करने वालों की संख्या 32.6 फीसदी थी, जबकि 20192021 में ऐसे लोगों की संख्या 28 फीसदी रह गई. कम उम्र की महिलाओं में अपने रक्त संबंधियों से शादी करने की संभावना अधिक होती है. अंतर-पारिवारिक विवाहों का अधिक प्रचलन, यह दर्शाता है कि हाल के सामाजिक-जनसांख्यिकीय (सोशियो-डेमोग्राफिक) बदलाव, जैसे विवाह की उम्र में देरी, पार्टनरों के बीच उम्र का कम अंतर, शिक्षा के स्तर में वृद्धि, आदि से अंतर-पारिवारिक विवाह पर किसी तरह का असर नहीं पड़ा है.
सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों के बीच अंतर-पारिवारिक विवाह का प्रचलन अधिक है
अंतर-पारिवारिक विवाह की अधिक दर, पिता और माता दोनों की ओर से फर्स्ट कजिन में देखा जाता है, जो केरल को छोड़कर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक के दक्षिणी राज्यों में ज्यादा प्रचलित है. अन्य पिछड़ा वर्ग, मध्यम, अमीर वर्ग और कम शिक्षित आबादी के बीच दक्षिण भारत के हिंदुओं में इस विवाह की प्रथा अधिक है. दक्षिण भारत में इस विवाह के लिए जाति, सामाजिक-आर्थिक कारण और विरासत वगैरह महत्वपूर्ण फैक्टर हैं. ऐसे विवाहों में समयुग्मजता (homozygosity) शामिल होती है, जिसका नतीजा यह होता है कि परिवार और जनसंख्या में आनुवंशिक विकारों का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है.
इसका परिणाम समयुग्मजी (homozygous) रोग ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या में बढ़ोतरी है, इस बीमारी में मेटिंग की संभावना कम होती है और जीवित रहने की संभावना भी कम हो जाती है, इसलिए आने वाली पीढ़ियों तक बीमारी के संचरण को क्रमिक रूप से सीमित कर दिया जाता है और इससे नई पीढ़ी में इसके उन्मूलन को प्रोत्साहन मिलता है. अंतर-पारिवारिक विवाह से संबंधित प्रजनन स्वास्थ्य मानदंड बताते हैं कि गैर-सजातीय विवाहों के विपरीत, फर्स्ट कजिन से शादी में, प्रजनन क्षमता और गर्भपात दर और शिशु मृत्यु दर थोड़ी अधिक होती है और नवजात शिशुओं में जन्मजात दोषों की संभावना अधिक होती है. इसके अलावा, अंतर-पारिवारिक विवाह जोड़ियों के कारण ऑटोसोमल रिसेसिव विकार ज्यादा होते हैं. एक ही पूर्वज से विरासत में मिली ऑटोसोमल रिसेसिव जीन में म्यूटेशन के कारण ऐसे जोड़ों की संतानों में रिसेसिव विकारों का खतरा बढ़ सकता है.
माता-पिता के बीच जैविक संबंध जितने करीब होंगे, उतनी ही अधिक संभावना होगी कि उनकी संतानों को एक या अधिक हानिकारक जीनों की समान कॉपियां विरासत में मिलेंगी. दक्षिण भारत में और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों के बीच अंतर-पारिवारिक विवाह का प्रचलन अधिक है. हालांकि, ऑटोसोमल रिसेसिव एक दुर्लभ बीमारी है, ऐसा लगता है कि भारत जैसे देश और तमिलनाडु जैसे राज्य में इसे ज्यादा मान्यता मिली हुई है. तमिलनाडु में अंतर-पारिवारिक विवाह का चलन 28 फीसदी है. केरल में ऐसे विवाह कम होते हैं जबकि दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों में यह अधिक है.
इस विवाह से जुड़े जोखिम?
अंतर-पारिवारिक विवाह, कई स्वास्थ्य संबंधी और सामाजिक रूप से प्रतिकूल परिणामों का कारण बनता है. इस विवाह में जन्मजात विकृतियों और ऑटोसोमल रिसेसिव जैसे रोगों के जोखिम जुड़े होते हैं, जिसके कारण प्रसव के बाद मृत्यु दर और मानसिक मंदता, जन्म से पहले की ऊंची मृत्यु दर, जन्म के समय कम वजन और फर्स्ट कजिन वाले जोड़ों की संतानों में जन्म के बाद ऊंची मृत्यु दर की संभावना अधिक होती है. ऐसे विवाह से सैंकड़ों तरह की अनुवांशिक विकारों का संबंध है. ऐसे जोड़ों को विरासत में विभिन्न तरह की बीमारियां मिलती हैं और ये जोड़ियां ऐसे बीमारियों के प्रति संवेदनशील होते हैं. हालांकि, consanguinity को रिसेसिव रोगों में योगदान करने के लिए जाना जाता है, खासकर पैथॉफिजियोलॉजी रोग में आनुवंशिकी और एनवायर्नमेंटल/एपीजेनेटिक फैक्टर शामिल हो सकते हैं.
अपने एक ही पूर्वजों के कारण, ऐसे जोड़े से अपनी संतानों को घातक जीन विरासत दे सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रसवपूर्व या नवजात स्थित में बाल रोग हो सकते हैं या फिर मृत्यु हो सकती है. Consanguinity के कारण कई जन्मजात दोष और मेटाबोलिज्म से संबंधित दोष होते हैं. नवजात बच्चों में वंशानुगत आनुवंशिक विकार अधिक होते हैं. कुछ अध्ययनों ने consanguinity और कुछ आनुवंशिक विकारों के बीच संबंध दिखाया गया है. इन विकारों में इम्युनोडेफिशिएंसी विकार, बीटा-थैलेसीमिया, बच्चों का उच्च रक्तचाप, प्रोटीन-सी और प्रोटीन-एस की कमी, फेनिलकीटोन्यूरिया और जन्म के समय कम वजन वगैरह शामिल हैं. साथ ही इसके साथ गर्भपात, बचपन में मृत्यु, मेडिटरेनीयन फीवर और सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारियां भी जुड़ी हुई होती हैं.
consanguinity में मानसिक मंदता, कम सुनाई देना, और कमजोर दृष्टि जैसी समस्य़ाएं पाई गई हैं. इसके कारण सिस्टिक फाइब्रोसिस, गंभीर संयुक्त इम्युनोडेफिशिएंसी (एससीआईडी), टे-सैक्स, सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया, ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, बेकर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और ब्लूम सिंड्रोम जैसे विकार होने की संभावना रहती है. मनुष्यों में तपेदिक और हेपेटाइटिस जैसे संक्रामक एजेंटों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता के कारण consanguinity में Low genetic heterozygosity (कम आनुवंशिक विषमयुग्मजीता) देखी गई है. ऐसे जोड़ों से उत्पन्न संतानों में उच्च रक्तचाप, अस्थमा, मधुमेह, कैंसर, रक्त विकार, मानसिक विकार, कई प्रकार के हृदय रोग, जठरांत्र संबंधी विकार, श्रवण दोष, ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोजनेज (G6PD) की कमी, और सामान्य नेत्र रोग हो सकते हैं.
कजन से शादी करने वाले परिवार रोगों से घिरे रहते हैं
कजन से शादी किए परिवारों में मिर्गी जैसी बीमारी की भी संभावना अधिक होती है. Consanguinity के कारण कम उम्र में सिज़ोफ्रेनिया की शुरुआत से भी जोड़ा गया है. कई वैज्ञानिक अध्ययनों ने संकेत दिए हैं कि इससे IQ के स्तर में गिरावट आती है और मानसिक मंदता की तीव्रता बढ़ जाती है. वयस्कता के जटिल मल्टी फैक्टोरियल डिसऑर्डर पर किए गए विभिन्न अध्ययन, इन विकारों के साथ consanguinity के संबंध को दिखाते हैं. कई वैज्ञानिक रिपोर्ट, हृदय रोगों, बांझपन और स्तन कैंसर के जोखिम के साथ consanguinity के संबंध को प्रकट करती हैं. consanguinity सैकड़ों आनुवंशिक विकारों को जन्म देती है, जो समाज पर आनुवंशिक, सामाजिक और आर्थिक बोझ डालते हैं. इसके कारण बच्चों में जन्मजात हृदय रोग (सीएचडी) की समस्या देखी गई है.
सीएचडी, शिशु मृत्यु दर, दीर्घकालिक रोग और विकलांगता का एक महत्वपूर्ण कारण है. सीएचडी से जुड़े कई जोखिम हैं. अंतर-पारिवारिक विवाह बाइपोलर डिसऑर्डर के लिए जिम्मेदार होते हैं, साथ ही इससे हाइड्रोसेफ़लस, पोस्टएक्सियल हैंड पॉलीडैक्टली और बाईलेटरल क्लेफ्ट लिप क्लेफ्ट पैलेट, बाइपोलर विकार, अवसाद, डिस्फेरलिनोपैथी, प्रजनन संबंधी विकार, बांझपन, शिशु मृत्यु दर, बाल मृत्यु, गर्भपात और मृत जन्म आदि बीमारियां होती हैं.
इसके अलावा, ऐसी रिपोर्ट भी सामने आईं हैं जो consanguinity और Down सिंड्रोम के बीच संबंध के दिखाती हैं. साथ ही इसकी वजह से वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (वीएसडी), एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (एएसडी), एट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (एवीएसडी), पलमोनरी स्टेनोसिस (पीएस) और पल्मोनरी एट्रेसिया (पीए) जैसे रोग पैदा हो सकते हैं. कुछ अध्ययनों ने consanguinity और कुछ आनुवंशिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच संबंध पाया गया है. इन समस्याओं में फेनिलकीटोन्यूरिया (पीकेयू), इम्यूनोडिफिशिएंसी विकार, बच्चों के उच्च रक्तचाप, बीटा-थैलेसीमिया, प्रोटीन-सी और प्रोटीन-एस की कमी, जन्म के समय कम वजन और डाउन सिंड्रोम वगैरह शामिल हैं. ये सभी विकार विश्व अर्थव्यवस्था और उत्पादकता में खासा प्रभाव डालते हैं और डॉक्टर बिरादरी पर एक बड़ा बोझ बन जाते हैं. ऐसे जोड़ों की महिलाओं में गर्भपात और मिसकैरेज की संभावना अधिक होती है. दक्षिण भारत में ऐसे विवाह के कारण प्रेगनेंसी से जुड़ी कई तरह की समस्याएं देखने को मिलती हैं.
जागरूकता की आवश्यकता
भारत में विवाह को एक पारिवारिक निर्णय के रूप में माना जाता है, न कि व्यक्तिगत निर्णय के रूप में. हालांकि हाल के वर्षों में महिलाओं की बढ़ती शिक्षा के कारण "अरेंज मैरिज" की संख्या में गिरावट आई है. कई शादियों को, चाहे वह अंतर-पारिवारिक हो या अंतरजातीय हो, कुछ समुदायों में अरेंज मैरिज माना जाता है. संतानों में जन्मजात और अनुवांशिक विकारों की रोकथाम के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण ऐसे जोड़ों (अंतर-पारिवारिक विवाह करने वाले) की संख्या में वृद्धि हो रही है जो विवाह और प्रजनन के बारे में परामर्श ले रहे हैं.
प्राथमिक हेल्थकेयर सेवा देने वालों के पास अंतर-पारिवारिक विवाह करने वाले ऐसे बहुत जोड़े पहुंच रहे हैं जो अपनी संतानों के स्वास्थ्य जोखिमों पर परामर्श ले रहे हैं. ऐसे समुदाय जहां इस तरह के विवाह ज्यादा होते हैं वहां हेथ्य केयर सेवा देने वालों की ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि वे ऐसे जोड़ों को विवाह पूर्व परामर्श दे सकें. वास्तव में, ब्लड डिसऑर्डर (थैलेसीमिया, सिकल रोग और हीमोग्लोबिन ई) को नियंत्रित करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती, डायग्नोसिस या ट्रीटमेंट से संबंधित नहीं है, बल्कि दक्षिण भारत में अंतर-पारिवारिक विवाह को नियंत्रित करने से है.
हेल्थकेयर सेवा देने वाले और जेनेटिक्स के विशेषज्ञों को अंतर-पारिवारिक विवाह के सामाजिक-आर्थिक फायदों के बजाए, संतानों पर इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में विचार करना चाहिए. भारत में प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले नुकसान या बीमारियों से बचने के लिए इस विवाह के विपरीत प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना बेहद जरूरी है. ऐसे समाज जहां अंतर-पारिवारिक विवाह का प्रचलन अधिक होता है वहां आनुवंशिकी परामर्श व विवाह पूर्व परामर्श को हेल्थकेयर सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण उपकरणों में से एक माना जाता है. जहां ऐसे विवाह ज्यादा होते हैं और भ्रूण का चयनात्मक गर्भपात संभव नहीं है और/या स्वीकार्य नहीं है, वहां विवाह पूर्व परामर्श की मांग ज्यादा है.
प्रीमैरिटल स्क्रीनिंग ने आनुवंशिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की है
अंतर-पारिवारिक विवाह और वंशानुगत रक्त विकारों वाली आबादी में थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसे हीमोग्लोबिन पैथी के वाहकों का पता लगाने के लिए, विवाह पूर्व जांच के लिए सामुदायिक कार्यक्रमों की आवश्यकता है. कुछ आबादी में जन्मजात विकारों के प्रसार को कम करने में कैरियर डिटेक्शन और आनुवंशिकी परामर्श कार्यक्रम बहुत सफल रहे हैं. ये कार्यक्रम सबसे सफल तब होते हैं जब वे संबंधित आबादी की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के प्रति संवेदनशील होते हैं. शादी से पहले अच्छी तरह से प्रीमैरिटल स्क्रीनिंग कराने की बहुत जरूरत है. सेकेंडरी स्कूल के दौरान इसकी शुरुआत करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
अपने प्राथमिक लक्ष्यों के अलावा, कुछ समुदायों में प्रीमैरिटल स्क्रीनिंग ने आनुवंशिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की है. साथ ही इससे संभावित बीमारियों से बचने में मदद मिली है और लोगों को अंतर-पारिवारिक विवाह से जुड़े रिसेसिव डिसऑर्डर के जोखिमों के बारे में पता चला है. इस वजह से ऐसे लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है जो अंतर-पारिवारिक विवाह को लेकर प्रीमैरिटल काउंसलिंग ले रहे हैं. आनुवांशिक बीमारियों के इतिहास वाले सभी जोड़ों के लिए और अंतर-पारिवारिक विवाह के मामलों में हीमोग्लोबिनोपैथी के लिए विवाह पूर्व जेनेटिक काउंसिंलिंग और प्रीकांसेप्शन करियर स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है. यदि पारिवारिक इतिहास, आनुवंशिक रोग की ओर इशारा करता है, तो प्रायमरी हेल्थकेयर सेवा देने वाले, लोगों को एक विशेष जेनेटिक्स काउंसलिंग क्लिनिक भेज सकते हैं.
जब भी ऐसी परीक्षण संभव होते हैं, यह संतानों के जोखिमों का अनुमान लगाने और परिवार में मौजूद ऑटोसोमल रिसेसिव विकारों के लिए उनकी कैरियर की स्थिति का पता लगाने में मदद करता है. जन्मजात विकारों के उपायों के बारे में बढ़ती जागरूकता ने गर्भधारण से पहले और विवाह पूर्व परामर्श प्राप्त करने वाले जोड़ों की संख्या में वृद्धि की है. अंतर-पारिवारिक विवाह के साथ जन्मजात विकृतियां और ऑटोसोमल रिसेसिव रोग के जोखिम जुड़े होते हैं, इस परिणाम यह हुआ है कि फर्स्ट कजिन जोड़ों की संतानों में प्रसवोत्तर मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में डेमोग्राफिक और सोशियो इकनॉमिक कन्फ्यूडर को अच्छी तरह से नियंत्रित करने की आवश्यकता है.
हमें सिर्फ सही दिशा में ध्यान देने की जरूरत है
गर्भपात और प्रजनन क्षमता जैसे प्रजनन मापदंडों के साथ प्रतिकूल संबंध दर्ज नहीं किया गया है. आनुवंशिकी सेवाओं को मानक बनाने के लिए और ऐसे जोड़ों व उनकी संतानों की जांच के लिए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है. लोगों और समुदायों में सामान्य ऑटोसोमल रिसेसिव स्थितियों के आधार पर स्क्रीनिंग पर विचार किया जा सकता है. अंतर-पारिवारिक विवाह के मामले में, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा देने वाले कर्मियों द्वारा प्रीकनसेप्शन और प्रीमैरिटल काउंसलिंग और निदान के साथ व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है. लंबे समय से चली आ रही ऐसी परंपरा वाली आबादी में अंतर-पारिवारिक विवाह को हतोत्साहित करने के बजाय, प्रीकनसेप्शन और प्रीमैरिटल काउंसलिंग सेवाओं बेहतर करना अच्छा तरीका है. संभव है कि इसे सामुदायिक स्वीकृति प्राप्त हो और यह स्वास्थ्य को बनाए रखने और सुधारने में सफल हो.
अंतर-पारिवारिक विवाह से संबंधित सभी स्वास्थ्य और सामाजिक मुद्दों पर, प्राइमरी हेल्थ केयर सेवा प्रदाताओं को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण देकर जागरूकता में वृद्धि की जा सकती है. हालांकि, विकासवादी दृष्टिकोण से, अंतर-पारिवारिक विवाह जनसंख्या के स्तर पर फायदेमंद है, लेकिन यह अगली पीढ़ी में बीमारियों के जोखिम को बढ़ा देता है. वर्तमान में, अधिकांश आनुवंशिक विकारों का कोई इलाज नहीं है, हम दीर्घकालिक लाभों के लिए ऐसे विवाह के विकल्प को नहीं चुन सकते. अंतर-पारिवारिक विवाह एक बेहतर रणनीति नहीं है. चिकित्सा प्रगति, साक्षरता दर और शहरीकरण के बावजूद, अभी भी इन परिवार से जुड़ी परंपराओं को नहीं तोड़ा जा सकता. हाल के दिनों में शहरी क्षेत्रों में स्थिति बेहतर हुई है. उच्च इनब्रीडिंग वाली आबादी में मल्टी-अप्रोच रणनीति के साथ एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम तैयार करना, (जिसमें संभावित आनुवंशिक परिणामों, प्रसव पूर्व निदान, नवजात जांच और आनुवंशिकी परामर्श के बारे में शिक्षा शामिल है) एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है.
कानून कहता है कि अगर किसी महिला के जीवन में खतरा हो या अगर इस बात का सबूत है कि बच्चा घातक विकृतियों के साथ पैदा होगा और जीवित नहीं रहेगा तो वह महिला गर्भपात करा सकती है. ऐसा गर्भावस्था के 17वें सप्ताह से पहले या उसके दौरान कर देना चाहिए. इसलिए, प्री इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (पीजीडी) बेहतर है लेकिन हमें सुविधाओं को मजबूत करने की जरूरत है. हमें अत्याधुनिक आनुवंशिकी निदान सुविधाओं में निवेश और निर्माण करने की आवश्यकता है. जबाव, स्थानीय आबादी में विवाह परंपराओं को बदलने की कोशिश करने के बजाय एडवांस साइंस में निहित है. भले ही आप लोगों को विज्ञान सिखाते रहें, वे अभी भी अपने चचेरे/ममरे भाइयों से शादी कर रहे हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि शादी करने से वे आगे आ रहे हैं, खासकर अगर उन्हें अनुवांशिक बीमारियां हैं, तो ऐसे में उनकी मदद करने के तरीके हैं. एक स्वस्थ बच्चा पैदा करने के लिए, लोग विज्ञान का जितना उपयोग करेंगे, आनुवंशिक रोग उतने ही कम होंगे. यह कम जरूर होगा, लेकिन इसे मिटाना मुश्किल है क्योंकि हमेशा नए मामले सामने आते रहेंगे. हमें सिर्फ सही दिशा में ध्यान देने की जरूरत है.
(लेखक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज में प्रजनन और सामाजिक जनसांख्यिकी विभाग के प्रोफेसर और हेड हैं. लेख में व्यक्त उनके विचार और तथ्य जनता से रिश्ता के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करते.)
Gulabi Jagat
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