सम्पादकीय

काफिले की राह में कई खामियां

Rani Sahu
6 Jan 2022 6:05 PM GMT
काफिले की राह में कई खामियां
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तब उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार पर ही होती है

अरुण भगत जब प्रधानमंत्री यात्रा पर होते हैं, तब उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार पर ही होती है। आसपास की सुरक्षा एसपीजी मुहैया कराती है। प्रधानमंत्री देश में कहीं यात्रा पर रहें या विदेश में व्यवस्था यही रहती है। जहां तक सुरक्षा योजना का सवाल है, तो यह काम एसपीजी दूसरी एजेंसियों जैसे आईबी, राज्य पुलिस और राज्य सीआईडी के साथ मिलकर करती है। अनेक स्रोतों से सूचनाएं जुटाई जाती हैं, तमाम तरह के खतरों या आशंकाओं को परखा जाता है। एक दफा जब निर्णय हो जाए कि कहां जाना है, तो फिर यह तय किया जाता है कि कैसे जाना है, कब जाना है, कितनी तैयारी से जाना है। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तमाम छोटी-छोटी बातों पर गौर किया जाता है। सुरक्षा के प्रत्यक्ष व परोक्ष हर प्रकार के पहलू देखकर सुरक्षा योजना बनाई जाती है। कैसे पहुंचेंगे, कहां हवाई जहाज का इस्तेमाल होगा, कहां हेलीकॉप्टर, रेल, बोट, सड़क मार्ग का सहारा लिया जाएगा, सब कुछ पहले से तय रहता है।

प्रधानमंत्री की यात्राओं से पहले आम तौर पर चार-पांच दिन पहले एक बैठक होती है, जिसमें एसपीजी के साथ राज्य सरकार के संबंधित आला अधिकारी मौजूद होते हैं। बैठक में राज्य की खुफिया एजेंसी, प्रभारी डीआईजी के साथ-साथ उन जिलों के डीएम और एसपी भी होते हैं, जहां से होकर प्रधानमंत्री को गुजरना है या जहां प्रधानमंत्री को जाना है। विस्तार से सब अधिकारी मिलकर कार्यक्रम बनाते हैं। तमाम आशंकाओं को देखते हैं कि क्या-क्या चुनौती आ सकती है? कहां-कहां कैसी-कैसी रुकावट आ सकती है? क्या किसी राजनीतिक आंदोलन या प्रदर्शन से कोई खतरा है या किसी तरह का व्यक्तिगत जोखिम है? स्थानीय हालात को देखते हुए पूरा अध्ययन किया जाता है। अगर प्रधानमंत्री को किसी सीमा के करीब या किसी उपद्रवग्रस्त इलाके में जाना है, तो वहां पहले से ही सक्रिय उग्र या आतंकी संगठनों पर कड़ी निगाह रखी जाती है। ऐसी बैठकों के मिनट्स रिकॉर्ड किए जाते हैं और जितने भी अधिकारी वहां होते हैं, उनकी मौजूदगी व मत को दर्ज किया जाता है। रिकॉर्ड की कॉपी वहां मौजूद तमाम एजेंसियों को सौंपी जाती है। यह बड़ी आजमाई हुई चाक-चौबंद व्यवस्था है।
अभी पंजाब में जो हुआ है, कोई शक ही नहीं है कि यह राज्य सरकार की लापरवाही ही नहीं, व्यापक लापरवाही है। प्रधानमंत्री को कहीं जाना होता है, तो उनका वैकल्पिक रूट या पथ भी पहले से बन जाता है। मौसम संबंधी जानकारी भी पहले ही मिल जाती है। अगर प्रधानमंत्री अचानक हवाई मार्ग से नहीं जाएंगे, तो फिर यह पहले से ही तय रहता है कि किन सड़कों से होकर गुजरेंगे। 'पहले से पता नहीं था' जैसी कोई गुंजाइश यात्रा योजना में नहीं होती। मौसम खराब होगा, हेलीकॉप्टर नहीं जा पाएगा, तो किस सड़क से काफिले को ले जाना है, यह सब योजना में शामिल होता है। वैकल्पिक यात्रा पथ तो बनाना ही पड़ता है, यह अनिवार्य है, इसमें किसी की इच्छा या चयन का तो सवाल ही नहीं उठता। भले ही प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से नहीं जाना हो, लेकिन उस मार्ग पर सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाते हैं। उस क्षेत्र में कहां ऊंची इमारत है, कहां जोखिम है, ये सब सुनिश्चित करने और सुरक्षा देने की राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है।
काफिला जब निकलता है, तो वायरलेस संवाद तो लगातार बना रहता है। अधिकारियों को आगे रूट के बारे में लगातार पता चलता रहता है। स्थितियां बदलती हैं, तो उसकी भी तत्काल रिपोर्ट आती है। काफिले के साथ पंजाब पुलिस की गाड़ियां भी होंगी, उनके खुफिया अधिकारी भी होंगे, उन्हें निश्चित रूप से खबरें मिल रही होंगी। सुरक्षा प्रभारियों के पास दो-दो मिनट या पांच-पांच मिनट पर सूचना आती है। काफिले से पहले ही दो-तीन एडवांस पायलट वाहन गुजरते हैं, सुरक्षा के स्थानीय जिम्मेदार अधिकारी भी गस्त करते हैं और सूचना देते रहते हैं। इनको आखिर कब सूचना मिली? आगे अवरोध है, इसकी सूचना काफिले को कब मिली? क्या फ्लाईओवर पर पहुंचने के बाद अवरोध की सूचना मिली? क्या काफिले ने जब प्रत्यक्ष रूप से सामने अवरोध देखा, तब पता चला कि आगे जाना मुश्किल है? यदि सूचनाएं पहले मिल गई थीं, तो अवरोध को दूर करने के लिए क्या किया गया? सवाल बहुत से खड़े हो गए हैं, जिनके जवाब अभी स्पष्ट नहीं हैं। अगर रास्ते में हजार लोग जुट गए थे, तो उन्हें जुटने में कितना समय लगा? क्या यह सूचना दी गई थी कि भीड़ को सड़क से हटा दिया जाएगा? दरअसल, यहां खामियों या लापरवाहियों की पूरी शृंखला है।
वह इलाका तो देश की सीमा के पास पड़ता है, दुश्मन एजेंसियां भी वहां सक्रिय होंगी। पूर्व मुख्यमंत्री ने भी सुरक्षा को लेकर चेताया था। यह रूट करीब चालीस-पैंतालीस किलोमीटर का था, तो कम से कम चार-पांच गजेटेड ऑफिसर रास्ते में ही तैनात होंगे, लेकिन प्रधानमंत्री का काफिला जब फ्लाईओवर पर खड़ा था, तब कोई पुलिस अधिकारी वहां नजर नहीं आया। यह व्यापक लापरवाही है। आजकल तो एक से एक अत्याधुनिक हथियार हैं, ड्रोन हैं, जिनका इस्तेमाल जगजाहिर है, ऐसे में, कहीं अति विशिष्ट काफिले का ठहर जाना बहुत गंभीर बात है।
सुरक्षा में फिर ऐसा न हो, इसके लिए नया क्या कहा जा सकता है? पहले से ही सुस्थापित प्रक्रिया है, जिसके लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण मिला हुआ है, तभी उन्हें तैनात किया जाता है। अधिकारियों को सब पता है कि उन्हें क्या करना चाहिए, उन्हें अपना काम करने देना चाहिए। यह लापरवाही ही नहीं है, इसके पीछे कुछ और भी हो सकता है। यह महज संयोग नहीं है। यहां तो खामियों-गलतियों की पुनरावृत्ति साफ दिखती है।
अब जो राजनीति दिख रही है, उससे भी बड़ी चिंता होती है। अधिकारियों की निष्ठा अपने काम के प्रति होनी चाहिए। सुस्थापित परंपराओं, प्रक्रियाओं व सुशासन के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए, इसका कम होना बड़ा खतरा है। अगर अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे, तो कैसे चलेगा? क्या हम अब पहले जैसे योग्य अधिकारियों का चयन नहीं कर पा रहे हैं? अभी जो हुआ है, उसके लिए कोई एक अधिकारी नहीं, बल्कि व्यवस्था से जुड़ा हर आदमी जिम्मेदार है। वैसे पुख्ता तौर पर जिम्मेदारी तय करने में समय लगेगा, क्योंकि जांच के लिए समिति बन गई है। विवाद भी काफी बढ़ गया है, लेकिन यह समय है, जब देश में शपथ, सेवा और अपने कर्तव्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता समग्रता में बढ़नी चाहिए।
Rani Sahu

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