सम्पादकीय

मंडी का चुनावी इश्तिहार

Rani Sahu
6 Oct 2021 7:02 PM GMT
मंडी का चुनावी इश्तिहार
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प्रदेश की सियासत अपना रास्ता बदल रही है और मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव यह साबित कर सकता है

प्रदेश की सियासत अपना रास्ता बदल रही है और मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव यह साबित कर सकता है कि सारे ऊंट किसकी करवट बैैठेंगे। वर्तमान सरकार का सबसे बड़ा व महत्त्वपूर्ण इश्तिहार मंडी में लगने जा रहा है। यह इसलिए क्योंकि उम्मीदवारों की फेहरिस्त में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही बनने जा रहे हैं। यह मिशन रिपीट का पूर्वाभ्यास हो सकता है और सरकार के मानकों में भाजपा का इतिहास बन सकता है, लेकिन इतने बड़े लक्ष्य का अवतार ढूंढने में पार्टी की भीतरी सतह पर अनिश्चितता का हाव भाव दिखाई दिया। यह कहने में गुरेज नहीं कि कांग्रेस पार्टी ने अपने किंतु-परंतु से बाहर निकलते हुए प्रतिभा सिंह समेत भवानी सिंह, रोहित ठाकुर व संजय अवस्थी पर दांव खेला है। अर्की विधानसभा से अपनी चुनौतियों के भीतर भाजपा की मुसीबत जाहिर हो रही थी, लेकिन कांगेस के घाव भी रिसने लगे हैं। संजय अवस्थी को मिले पार्टी टिकट पर चस्पां कई नेताओं के इस्तीफे स्व. वीरभद्र सिंह की विरासत को तोड़ने-मरोड़ने में लगे हैं। यह दीगर है कि कहीं मंडी संसदीय क्षेत्र में राजा की विरासत का मतदाता से सौदा भी हो रहा है। वीरभद्र सिंह के नाम का सिक्का सीधे-सीधे जयराम ठाकुर की सत्ता के सामने उछाला जा रहा है। चुनाव में वीरभद्र सिंह के संस्मरण या श्रद्धांजलि को कई नेताओं की विरासत से जोड़कर देखा जा सकता है और यह भी कि उनके परिवार के नाम मंडी उपचुनाव की वसीहत किस-किस को रास आती है।

बेशक वीरभद्र सिंह के समर्थकों का एक टोला कांगे्रस के भीतर और कांग्रेस के बराबर खड़ा रहता है। इसके साथ गुणात्मक इतिहास है, तो बनते-बिगड़ते समीकरणों की कई कहानियां भी हैं। फिर एक मुआयना अर्की विधानसभा क्षेत्र में बता रहा है कि किसकी पलकों पर कौन सवार या किसकी पलकों के नीचे आंसुओं का अंबार लगा है। इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस ने एक साथ फतेहपुर, जुब्बल-कोटखाई व मंडी के उपचुनाव में तुरुप के पत्तों के साथ अपना परिवार सजा दिया है और इसके सामने भाजपा की महत्त्वकांक्षा में पलते नेताओं का कुनबा अपने-अपने अधिकारों की पात्रता मांग रहा है। जाहिर है केंद्र की डिबिया में पार्टी का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए भाजपा टिकटार्थियों की कवायद बदल गई है। भाजपा के लिए चुनाव एक पटकथा लिखने की मशक्कत है, जहां पूरी फिल्म को 'ब्लॉक बस्टर' की तरह पेश किया जाता है। दरअसल दोनों पार्टियों की पेशकश में यही अंतर है कि भाजपा अपने विजयी मुहूर्त को जीतने की तड़प से देखती है, जबकि कांग्रेस की विनेविलिटी का रिश्ता आज भी राजनीति के वट वृक्षों के नीचे आसरा पाने जैसा है।
यही आसरा मंडी के उपचुनाव में वीरभद्र सिंह की धरोहर में उगे वट वृक्ष के नीचे यह कहने को मजबूर कर रहा है कि हर वोट, श्रद्धांजलि के तौर पर दिया जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्व. वीरभद्र की याद के कलश पूरे प्रदेश में भरे हैं और यह भी कि मंडी संसदीय क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा उनकी राजनीतिक यात्रा का पथिक रहा, लेकिन अब मंडी यथास्थिति से भविष्य की स्थिति तक भिन्न दिखाई दे सकती है। मंडी के फलक पर वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह का दारोमदार, हर तरह से भाजपा के गणित और गठजोड़ को बुलंद करने का मूलमंत्र साबित होगा, तो इस लड़ी में गोविंद सिंह ठाकुर व रामलाल मार्कंडेय को मिली सत्ता के उपहार की राजनीतिक राशि भी सामने आएगी। यानी सरकार के तीन मंत्री व स्वयं मुख्यमंत्री के सामने दिवंगत वीरभद्र सिंह की छवि एवं प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। मंडी का चुनाव पहले ही सुखराम परिवार के अस्तबल को खाली होता देख रहा है। आश्रय शर्मा के लिए दादा की हांक कमजोर पड़ गई, तो मुख्यमंत्री की अदालत में विधायक अनिल शर्मा की याचिका अब याचना सरीखी हो गई। देखने में मुख्यमंत्री के पास पूरी बिग्रेड है और वह अपने दौर की सियासत को अपनी तरह से लिखने में सक्षम नजर आते हैं, फिर भी मतदान में कितने पुष्प आदरांजलि या श्रद्धांजलि के निकलते हैं, इसके ऊपर काफी कुछ निर्भर करेगा।

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