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झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में मंगलवार को पुलिस का मुखबिर होने के संदेह में माओवादियों ने एक ग्रामीण की गोली मारकर हत्या कर दी
मनोज सिंह
सोर्स- अमर उजाला
भारत की राजनीति में यह पहला मौक़ा नहीं है जब किसी पार्टी का 'होस्टाइल टेकओवर' करने की कोशिश की गई हो। 1969-70 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस के टेकओवर की कोशिश एक तरह से नाकाम रही, मगर लगता है शिवसेना पहली पार्टी होगी जिसका 'शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण' सफ़ल हो जाएगा।
मुंबई में कुछ लोग कहते हैं-
उद्धव ठाकरे ने अपनी साझा सरकार ही नहीं बल्कि शिवसेना पार्टी के फ़ैसले भी 'आउटसोर्स' कर दिए थे। दरअसल, एनसीपी चीफ़ शरद पवार ही असली सुप्रीमो बन गए थे। तो क्या यह एक तरह से शिवसेना पार्टी की ही आउटसोर्सिंग की कोशिश थी?
राजनीति और सत्ता के कम अनुभवी उद्धव ठाकरे के लिए यह आरामदेह स्थिति थी। ख़ासकर तब जबकि उनकी टक्कर राजनीति की ख़ूंख़ार पार्टी बीजेपी से हो गई थी। पवार और ठाकरे परिवार की नज़दीकियों की कुछ और वजहें भी बताई जाती हैं मगर वह निजी बातें हैं।
दरअसल, शुरू में सत्ता का सुख सभी को अच्छा लगा, मगर धीरे-धीरे शिवसेना के स्थानीय मगर मज़बूत नेताओं को लगने लगा कि सुप्रीमो उद्धव नहीं पवार हैं। ऐसी तमाम बातें शिवसेना बाग़ी विधायक कह चुके हैं
शिवसेना का डीएनए और वारिस के गुण
शिवसेना को महज़ एक परिवार की पार्टी मान लेने वाले बड़ी भूल करते हैं। ज़मीन पर शिवसेना परिवार से ज़्यादा विचारधारा की पार्टी है। इसकी जड़ें मुंबई की शिवसेना शाखाओं में है जिसे बाल ठाकरे ने अपने विचारों से बनाया।
बाल ठाकरे का वचन और उनकी विचारधारा में कभी कोई मतभेद नज़र नहीं आया, इसलिए शिवसैनिकों के लिए बाल ठाकरे महज़ एक चेहरा नहीं आकाशवाणी थे। शिवसेना में पहले भी छगन भुजबल और नारायण राणे जैसे बाग़ी हुए हैं - लेकिन 2022 की बग़ावत सत्ता ही नहीं बल्कि पूरी शिवसेना पार्टी हथियाने के लिए हुई है।
पार्टी के अधिग्रहण से आएगी सत्ता
साल 2019 में बीजेपी ने एनसीपी के बाग़ी अजीत पवार के साथ महाराष्ट्र की सत्ता पाने की नाकाम कोशिश की। अजीत, चाचा शरद पवार के पास पहुंच गए। बीजेपी से घबराए उद्धव ठाकरे और ग़ुस्साए शरद पवार ने समझदारी से सत्ता क़ायम कर ली, तब से लेकर आज तक बीजेपी ने कई तरह के दांव लगाए जिससे महाराष्ट्र में ठाकरे की साझा सरकार गिर जाए और शिवसेना के पास घर वापसी के अलावा कोई चारा न बचे।
इस बीच मध्य-प्रदेश मॉडल से लेकर गोवा-मणिपुर-मेघालय मॉडल तक की चर्चा और कोशिशें हुईं, मगर फिर आइडिया के स्टाक मार्केट से 'टेकओवर' का विचार प्रकट हुआ।
'टेकओवर' के बाद ठाकरे मार्का
हालांकि बस चर्चा है - मगर इसके दो पहलू हैं। अगर एकनाथ शिंदे ग्रुप शिवसेना पार्टी पर क़ाबिज़ हो पाता है या अगर वो दूसरी शिवसेना भी खड़ी करते हैं तो उन्हें एक ठाकरे चेहरा चाहिए। राज ठाकरे वो चेहरा हैं जो नई शिवसेना को वैधता दे सकते हैं, तो क्या शिवसेना पार्टी के अधिग्रहण के बाद राज ठाकरे अपनी पार्टी MNS का विलय कर देंगे? या फिर शिवसेना के बाग़ी विधायक राज ठाकरे की पार्टी में शामिल हो जाएंगे?
क्या राज ठाकरे का चेहरा उद्धव ठाकरे की शिवसेना का स्ट्रीट पावर ख़त्म कर सकता है? मगर क्या बीजेपी के ज़्यादा मज़बूत और अख्खड़ राज ठाकरे को पावरफुल बनाने का रिस्क लेगी? वैसे लोहे को लोहा ही काटता है और फिर उस लोहे को काटने के लिए एक नया लोहा लाया जा सकता है।
Rani Sahu
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