सम्पादकीय

मध्य प्रदेश: पंचायत चुनाव में ओबीसी को निर्धारित से कम आरक्षण मिलने पर राजनीतिक दलों ने क्यों साध रखी है चुप्पी

Rani Sahu
30 May 2022 12:53 PM GMT
मध्य प्रदेश: पंचायत चुनाव में ओबीसी को निर्धारित से कम आरक्षण मिलने पर राजनीतिक दलों ने क्यों साध रखी है चुप्पी
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मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (Madhya Pradesh local body elections) की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है

दिनेश गुप्ता |

मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (Madhya Pradesh local body elections) की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. नगरीय निकायों के लिए अधिसूचना इसी सप्ताह जारी हो जाएगी. पिछले साल निकाय चुनाव निरस्त होने की सबसे बड़ी वजह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)का आरक्षण (OBC RESERVATION) बना था. ओबीसी को चुनाव में चौदह प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. इसके बाद भी उसे पंचायतों में पिछले चुनाव की तुलना में निर्धारित प्रतिशत से कम सीटें मिल रही हैं. इस पर न तो सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी ही चिंतित दिखाई दे रही और न ही कांग्रेस विपक्षी दल के तौर पर आक्रामक मुद्रा में है. राजनीतिक दलों की चुप्पी से चुनाव टलने का खतरा साफ दिखाई दे रहा है.
पिछले साल ओबीसी आरक्षण के कारण ही बीच में निरस्त हुए थे चुनाव
मध्यप्रदेश में पंचायत के चुनाव तीन चरणों में कराए जा रहे हैं. निर्वाचन की प्रक्रिया पंद्रह जुलाई तक पूरी हो जाएगी,. राज्य में 363726 पंच, 2291 सरपंच, 6771 जनपद सदस्य और 875 जिला पंचायत सदस्यों का निर्वाचन किया जाना है. राज्य का यह सबसे बड़ा चुनाव है. चुनाव गैर दलीय आधार पर कराए जाते हैं. इसके बाद भी राजनीतिक दल चुनाव में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं. मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष वी.डी शर्मा कहते हैं कि चुनाव में भाजपा को एकतरफा जीत मिलने जा रही है. चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इस बात को हवा दे रही है कि चौदह प्रतिशत आरक्षण उसकी सरकार के प्रयासों से मिल सका है.
पिछले साल पहले दौर की प्रक्रिया के बीच में ही ओबीसी आरक्षण के कारण राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव निरस्त कर दिए थे. पिछली बार भी जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी,उस वक्त भी आरक्षण और रोस्टर को लेकर विसंगति सामने आई थी. हाईकोर्ट ने मामले में दखल देने से इंकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने के लिए कहा था. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार बिना आरक्षण के चुनाव कराने को तैयार नहीं थी. सरकार ने चुनाव टालने के लिए परिसीमन को ही निरस्त कर दिया. मजबूरी में आयोग को चुनाव टालना पड़े थे. ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला अभी आना है. लेकिन,राज्य सरकार की पुनरीक्षण याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर स्वीकार कर लिया कि आरक्षण पचास प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होगा.
सरकारी नौकरियों में भी नहीं मिल पाया 27 प्रतिशत आरक्षण
मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग को बीस प्रतिशत और अनुसूचित जाति को सोलह प्रतिशत आरक्षण निर्धारित है. ओबीसी का आरक्षण चौदह प्रतिशत की सीमा में रखना हर हाल में सरकार की मजबूरी है. सरकारी नौकरियों में सत्ताइस प्रतिशत आरक्षण पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रोक लगाई हुई है. इसके बाद भी निकाय चुनाव में सरकार 27 प्रतिशत आरक्षण देने की कोशिश कर रही है. सरकार द्वारा ओबीसी आबादी के जो आंकड़े विभिन्न स्तर पर उपलब्ध कराए गए हैं,उनमें भी अंतर है. सरकार 48 प्रतिशत ओबीसी होने का दावा कर रही है. इस आबादी के आर्थिक,सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े होने का विश्वसनीय आंकड़े सरकार ने अब तक सार्वजनिक नहीं किया है. स्थिति के अध्ययन के लिए बनाया गए पिछड़ा वर्ग के विशेष आयोग की रिपोर्ट जरूर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश की है. इस रिपोर्ट को भी अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. सरकार ने इसी रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी के लिए पैंतीस प्रतिशत आरक्षण की वकालत की थी.
ढाई दशक से दिया जा रहा है ओबीसी को चौदह प्रतिशत आरक्षण
मध्यप्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी को चौदह प्रतिशत आरक्षण पिछले ढाई दशक से दिया जा रहा है. इस पर कानूनी विवाद की स्थिति पहली बार बनी है. विवाद की वजह आरक्षण की सीमा बढ़ाना है. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने पर सहमत हैं. मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जाने माने अधिवक्ता विवेक तन्खा कहते हैं कि सरकारी वकील सुप्रीम कोर्ट को उनके जजमेंट पर किए गए सवालों का जवाब नहीं दे पाए. इस कारण आरक्षण बढ़ाने का मामला लटक गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं कि उनके अदालत में जाने से आरक्षण की सीमा नहीं बढ़ाई जा सकी. जबकि राज्यसभा सदस्य तन्खा कह रहे हैं कि वे सीमांकन के खिलाफ कोर्ट गए थे. याचिका में आरक्षण का बिंदु नहीं था.
निकाय चुनाव में पचास प्रतिशत से कम सीटें आरक्षित हैं?
आरोप-प्रत्यारोप और कानूनी लड़ाई में हार-जीत के दावों के बाद भी ओबीसी को निकाय चुनाव के लिए हुए आरक्षण में उतनी सीटें नहीं मिली,जितनी वर्ष 2015 के चुनाव में मिली थीं. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का आरोप है कि ओबीसी को सिर्फ नौ से लेकर तेरह प्रतिशत तक ही सीटें ही आरक्षण में मिली हैं. कमलनाथ ने दावा किया कि जिला पंचायत सदस्य के लिए प्रदेश में कुल 11.2 प्रतिशत आरक्षण मिला है. जबकि जनपद पंचायत अध्यक्ष में 9.5 प्रतिशत , जनपद पंचायत सदस्य में 11.5 फीसदी और सरपंचों के पदों को सिर्फ 12.5 फ़ीसदी आरक्षण मिला है. कमलनाथ के इस दावे पर भाजपा अथवा सरकार की ओर से कोई सफाई अब तक नहीं आई है. राज्य में पिछले चुनाव में 32 जिलों में जिला पंचायत के लिए 114 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित थीं.
आरक्षण पर संकट से कैसे उबरेगा शिवराज सिंह चौहान का ओबीसी चेहरा
इस बार यह संख्या घटकर 45 रह गई हैं. इसके विपरीत कई नगरीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ गई है. भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि आबादी के हिस्सा कई निकायों में ओबीसी का आरक्षण पहले से कई गुना बढ़ा है. आरक्षण के इस पूरे विवाद में सीटों का बढ़ना घटना चौंकाने वाला है. कारण पिछले चुनाव में भी आरक्षण चौदह प्रतिशत था और इस बार भी चौदह प्रतिशत ही है. जानकार इस आशंका को भी खारिज नहीं कर रहे हैं कि चूक आबादी के आंकड़ों के कारण हो सकती है? यदि पंचायत चुनाव में ओबीसी का आरक्षण चौदह प्रतिशत की निर्धारित सीमा से कम दिया गया है तो संभव है कि कुल आरक्षण पचास प्रतिशत भी पूरा न हो पाया हो? राज्य के 32 जिलों में ही ओबीसी आबादी बहुसंख्यक है. राज्य में कुल 52 जिले हैं. कई जिले आदिवासी बाहुल्य हैं.

सोर्स- tv9hindi.com

Rani Sahu

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