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- 'लो खत्म हुआ संसद...
आदित्य चोपड़ा | संसद का वर्षाकालीन सत्र पूरे देश को 'नम' करने के साथ ही समूची संसदीय प्रणाली को नियमों की अवमानना के आंसुओं से भिगो कर जा रहा है। स्वतन्त्र भारत के इतिहास में हालांकि यह ऐसा पहला सत्र कहा जायेगा जिसमें संसद चलने के नाम पर 'हिली' नहीं (लोकसभा व राज्य सभा में केवल एक दिन के कुछ घंटों को छोड़ कर) और इसकी कुल 19 बैठकों में विधेयक पर विधेयक भारी शोरगुल और हंगामे में पारित हो गये। इसके साथ ही राज्यसभा में मंगलवार को जो हंगामा बरपा और कृषि क्षेत्र की समस्या को लेकर होने वाली चर्चा को लेकर सदन के नियमों के बारे में जो विवाद पैदा हुआ और उसका परिणाम सदन में महासचिव की मेज पर कांग्रेस के सांसद श्री प्रताप सिंह बाजवा के चढ़ने और नियम पुस्तिका को आसन की तरफ फेंकने से हुआ, उससे यही नतीजा निकाला जा सकता है कि संसद में विधायिका अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने की मुद्रा में है उससे कहीं न कहीं संसदीय प्रणाली की पवित्रता और शुचिता संशय के घेरे में आ रही है।