सम्पादकीय

जनता के मूड में हार

Rani Sahu
2 Nov 2021 7:04 PM GMT
जनता के मूड में हार
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हिमाचल के उपचुनावों में प्रत्याशित और अप्रत्याशित नतीजों के कई निष्कर्ष और सदमे हैं

हिमाचल के उपचुनावों में प्रत्याशित और अप्रत्याशित नतीजों के कई निष्कर्ष और सदमे हैं। सत्तारूढ़ दल यहां मात्र तीन विधानसभा या एक लोकसभा क्षेत्र ही नहीं हार रहा, बल्कि यह जनता के मूड में चुनावी खुन्नस भी है। इन उपचुनावों में भाजपा को चार के मुकाबले शून्य करने की वकालत कांग्रेस से कहीं अधिक जनता ने की है, तो यह हिमाचल की राजनीतिक परंपराओं का निर्वहन और अगले आम चुनाव की परिपाटी को बटोरने का सबब हो सकता है। इस जीत के कई बाहुबली हो सकते हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारों के आंतरिक विरोध सत्तारूढ़ दल के लिए भारी पड़े। जुब्बल-कोटखाई में चेतन बरागटा भाजपा की संगत में पला हुआ प्रत्याशी था, तो उसका रास्ता रोकने की यह सजा क्यों न मानी जाए। क्यों न माना जाए कि अर्की तथा फतेहपुर विधानसभा क्षेत्रों में सही उम्मीदवार उतारने की कसौटी में भाजपा खुद ही घायल हो गई या कहीं संगठनात्मक ताकत का क्षरण होने लगा है। क्या सत्ता की आंखें महंगाई को देखकर भी नहीं खुलीं या सरकार के मानदंड यह हिसाब नहीं कर पाए कि आम जनता वर्तमान हालात में व्यथित है। चुनावी हार के कारणों की तफतीश में महीनों नहीं लगेंगे और यह जरूरी है कि भाजपा सरकार और संगठन अपने विरुद्ध आए जनता के फैसले की तामील में गंभीरता से विचार करें।

भाजपा के राज्य प्रमुख के अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के लिए हार के संकेत केंद्र सरकार के मंतव्यों पर प्रश्न उठाते हैं। पहला यह कि हिमाचल से एक संसदीय क्षेत्र को बचाने के लिए नड्डा प्रदेश में नहीं आते, तो यह जमीन उनके खाते को खोखला कर देती है। दूसरे हिमाचल के जागरूक मतदाता अपने मनोबल से राज्य और केंद्र सरकारों के खिलाफ इश्तिहार टांग देते हैं। इस इश्तिहार में पेट्रोल कीमतों की बेशर्मी, रसोई गैस की गर्मी और बढ़ती बेरोजगारी की हठधर्मिता का जिक्र जिस तरह हुआ है, उसके कारण संसद में कांग्रेस का एक सांसद बढ़ रहा है। जाहिर है यह चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर नहीं हुआ, लेकिन महंगाई का ठीकरा फूटा तो सीधा नुकसान केंद्र सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों तथा जनता के प्रति असंवेदनशीलता के खिलाफ सबसे बड़ा संदेश है। प्रदेश सरकार, सत्तारूढ़ दल के विधायकों, मंत्रियों और स्वयं मुख्यमंत्री के लिए ये उपचुनाव अपने भीतर घातक मकसद लेकर आए थे और अब पराजित युद्ध क्षेत्र में सत्ता का डंका बजाना आगामी विधानसभा चुनाव की रूपरेखा को प्रभावित करेगा। फतेहपुर, अर्की या जुब्बल-कोटखाई की हार से कहीं बड़ी शिकस्त अगर मंडी संसदीय क्षेत्र में मिली है, तो इसके संदर्भ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए नसीहत सरीखे हैं। चुनावी प्रचार में यह स्पष्ट हो गया था कि मंडी की अस्मिता के प्रश्न पर जयराम ठाकुर मैदान पर हैं।
सत्ता की तमाम खिड़कियों से झांकता मंडी का विकास क्यों दगा दे गया, यह प्रश्न सरकार को सालता रहेगा। क्या हम मान लें कि इन चुनावों में सरकार का चरित्र हारा या कहीं आत्मविश्वास व किसी प्रकार के अहंकार ने लुटिया डुबो दी। भाजपा के प्रबंधक अपने गुरूर के मंच पर उस ताप को नहीं छू पाए, जो चुनावी सतह को तपा चुका है या कई प्रकार की जुंडलियां वर्तमान सत्ता पर हावी हो चुकी हैं। जो भी हो, अभी तो कांगड़ा की सिर्फ एक सिसकी फतेहपुर में मिली है। अभी तो केवल अर्की या जुब्बल-कोटखाई सिसक रहे हैं, लेकिन आगे जब पूरा हिमाचल चुनाव की भट्ठी पर मुद्दों को हवा देगा, तब क्या होगा। अभी कई वर्ग, कई समूह, कई जातियां और कई विभाजक रेखाएं सामने नहीं आई हैं, लेकिन कल गढ़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे और विक्षुब्ध सामने आएंगे, तो क्या होगा। वर्तमान सरकार के चाल, चरित्र और चेहरा इन उपचुनावों में प्रश्नांकित तो हुआ ही है। इसलिए शेष कार्यकाल में सरकार की पद्धति, संगठन की मति और सुशासन की गति बदलनी पड़ेगी। सत्ता को शिमला की मुलायम हकीकत में चारों तरफ हरियाली हमेशा से दिखाई जाती रही है, लेकिन जब कभी फतेहपुर के अंगारे, जुब्बल-कोटखाई के कांटे और अर्की की गर्मी सामने आएगी, तो इसी तरह पसीना पोंछने की नौबत आएगी। मंडी संसदीय क्षेत्र की हार में मिला सदमा चीख-चीख कर भाजपा को अपनी दुर्दशा बता रहा है।

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