- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- जनता के मूड में हार
हिमाचल के उपचुनावों में प्रत्याशित और अप्रत्याशित नतीजों के कई निष्कर्ष और सदमे हैं। सत्तारूढ़ दल यहां मात्र तीन विधानसभा या एक लोकसभा क्षेत्र ही नहीं हार रहा, बल्कि यह जनता के मूड में चुनावी खुन्नस भी है। इन उपचुनावों में भाजपा को चार के मुकाबले शून्य करने की वकालत कांग्रेस से कहीं अधिक जनता ने की है, तो यह हिमाचल की राजनीतिक परंपराओं का निर्वहन और अगले आम चुनाव की परिपाटी को बटोरने का सबब हो सकता है। इस जीत के कई बाहुबली हो सकते हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारों के आंतरिक विरोध सत्तारूढ़ दल के लिए भारी पड़े। जुब्बल-कोटखाई में चेतन बरागटा भाजपा की संगत में पला हुआ प्रत्याशी था, तो उसका रास्ता रोकने की यह सजा क्यों न मानी जाए। क्यों न माना जाए कि अर्की तथा फतेहपुर विधानसभा क्षेत्रों में सही उम्मीदवार उतारने की कसौटी में भाजपा खुद ही घायल हो गई या कहीं संगठनात्मक ताकत का क्षरण होने लगा है। क्या सत्ता की आंखें महंगाई को देखकर भी नहीं खुलीं या सरकार के मानदंड यह हिसाब नहीं कर पाए कि आम जनता वर्तमान हालात में व्यथित है। चुनावी हार के कारणों की तफतीश में महीनों नहीं लगेंगे और यह जरूरी है कि भाजपा सरकार और संगठन अपने विरुद्ध आए जनता के फैसले की तामील में गंभीरता से विचार करें।
divyahimachal