सम्पादकीय

हारने वाला भी…!

Rani Sahu
8 April 2022 6:52 PM GMT
हारने वाला भी…!
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वे दहाडें मारकर रो रहे थे। रोते हुए ही आए थे मेरे घर पर

वे दहाडें मारकर रो रहे थे। रोते हुए ही आए थे मेरे घर पर। बोले-'मैं बरबाद हो गया शर्मा, मुझे बचा लो।' मैं बोला-'आखिर हुआ क्या है बलराम जी?' वे और जोर से रोने लगे। रोते-रोते ही बोले-'मैं चुनाव हार गया। अब क्या होगा?' मैंने कहा-'देखिए चुनाव में एक ही जीतता है। दूसरों को तो हारना ही होता है। आप द्यैर्य रखें, आगे चुनाव और होंगे। मौके खत्म थोडे़ ही हुए हैं। आप तो आराम से चाय पीजिए, सब ठीक हो जाएगा।' 'मैंने सब कुछ दांव पर लगा दिया शर्मा। मैं कंगाल हो गया। जीप वाला, ढाबे वाला, माइकवाला और उधारी मांगने वाले मुझे ढंूढ रहे हैं। मैं करूं तो क्या करूं?' वे बोले। उन्हें कहो कि पार्टी से पैसा मिलेगा, तब चुका दूंगा उधारी। कोई ज्यादा ही दादागिरी करे तो आप भी गुंडई पर उतर आएं। मांगना भूल जाएगा।' मैंने कहा। 'मुझे कहीं छिपा दो शर्मा। मैं किस मुंह से जनता के सामने जाऊं। मैंने सब्जबागों के वादे किए थे, लेकिन वोटर ने मेरी जमानत जब्त करा दी।' बलराम जी बोले। 'राजनेता होकर कैसी कायरों वाली बातें कर रहे हो?

थोड़ा तो नेतागिरी का हौसला पैदा करो और सबको धत्ता बता दो। आप तो जब प्रधान थे तो मनरेगा में लाखों का घोटाला कर चुके हैं। घबराने की क्या बात है।' मैंने कहा तो वे बोले-'सब डूब गया। मेरी काली कमाई सब निकल गई। सोचा था, चुनाव बाद कई गुना कमाकर घर भर लूंगा। शर्मा मेरे सपनों पर पानी फिर गया। जीतने वाला चांदी काटेगा।' 'आपको निराश होने की जरूरत नहीं है बलराम जी, दिन आपके भी फिरेंगे। देखना मध्यावधि चुनाव होंगे। ये गठबंधन चलने वाला नहीं है। हिम्मत से काम लें। अब हार गए तो हार गए। रंज करने की क्या बात है?' मैंने कहा तो उन्होंने अपनी रोनी सूरत को शांत किया और बोले-'आपको पक्का विश्वास है कि मध्यावधि होंगे! सच मजा आ जाएगा। अबकी बार मैं सारे पैंतरे काम में ले लूंगा। देखना जनता को मूर्ख बनाने में मैं कोई कमी नहीं छोडूंगा।
दरअसल सामने वाले ने खुलकर नोट बांटे थे और मैं पार्टी से मिला पैसा बचाने में मारा गया। वैसे शराब का तो मयखाना मैंने भी वोटर के लिए खोल दिया था। लेकिन भाई आजकल नोट के बदले वोट का जमाना है। महंगाई के मारे वोटरों को नकद चाहिए।' 'वह सब तो ठीक है, लेकिन मध्यावधि चुनाव में मान लो पार्टी ने आपको टिकट नहीं दिया तो क्या करोगे?' मैंने पूछा तो वे हौसले से बोले- 'निर्दलीय लड़ पड़ूंगा। आजकल निर्दलीयों की भी चांदी है। सत्तारूढ़ होने के लिए पार्टियां एक-एक से संपर्क करती फिरती हैं। देखना मैं निर्दलीय भी अच्छा कमा खाऊंगा।' 'आइडिया तो बुरा नहीं है बलराम जी। लेकिन चुनाव जीतना जरूरी है, इस तरह माल मारने के लिए।' मैंने कहा तो वे उछल पडे़-'चिंता मत करो शर्मा। खजाना खोल दूंगा। अभी मैं जो रो रहा था न, वे तो मेरे घडि़याली आंसू थे। चिंता की बात नहीं है, देखना मध्यावधि चुनाव में मैं क्या गुल खिलाता हूं।' यह कहकर वे चल दिए। मैंने राहत की सांस ली कि आई बला टली। वरना ये तो हार गए थे, पता नहीं क्या कर लेते। नेता का दिल वाकई बहुत पक्का होता है। वह रोता भी है तो उसका कोई मकसद होता है। इनकी माया ये ही जानें। हारने वाला भी उम्मीद पर जिंदा है।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक


Rani Sahu

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