सम्पादकीय

जड़ों की तलाश

Subhi
12 March 2022 3:53 AM GMT
जड़ों की तलाश
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इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अगर किसी को सबसे अधिक दुर्गति झेलनी पड़ी है, तो कांग्रेस को। न सिर्फ वह उन राज्यों में भी अपने दिग्गज नेताओं तक को चुनाव नहीं जिता पाई जहां उसकी पहले से सरकार थी

Written by जनसत्ता: इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अगर किसी को सबसे अधिक दुर्गति झेलनी पड़ी है, तो कांग्रेस को। न सिर्फ वह उन राज्यों में भी अपने दिग्गज नेताओं तक को चुनाव नहीं जिता पाई जहां उसकी पहले से सरकार थी या वह मुख्य विपक्षी दल के रूप में थी, बल्कि राष्ट्रीय पार्टी होते हुए भी उसे छोटे क्षेत्रीय दलों से भी नीचे के पायदान पर पहुंच कर सब्र करना पड़ा। उत्तर प्रदेश में जिस तरह प्रियंका गांधी ने अपनी ताकत झोंकी और हर चुनाव क्षेत्र में पहुंच कर जनसंपर्क किया था, महिलाओं, किसानों और बेरोजगार नौजवानों के भविष्य को लेकर रणनीति बनाई थी, उससे लगा था कि कांग्रेस इस बार अपनी जड़ें फिर से रोपने में कामयाब हो पाएगी।

मगर सारे कयास, सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। इसलिए स्वाभाविक ही कुछ लोग पूछने लगे हैं कि भाजपा ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था, क्या वह उसमें सफल हो गई है। हालांकि इन चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस निराश नहीं दिख रही है। उसने नया हौसला भरते हुए इन नतीजों की समीक्षा करने, अपनी कमियों पर मंथन करने की घोषणा की है। जल्दी ही कार्यकारिणी की बैठक बुलाने और उसमें आगे की रणनीति पर विचार करने का दम भरा है। मगर वह इसमें कितनी कामयाब हो पाएगी, देखने की बात होगी।

इन चुनाव नतीजों से बहुत सारे लोग हतप्रभ हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा हुआ कैसे। कुछ लोग मान रहे हैं कि मतदाता को मुफ्त राशन और गुंडाराज से मुक्ति के भरोसे ने भाजपा के साथ जोड़े रखा। मगर इस हकीकत से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अब पुराने ढंग के चुनाव नहीं रह गए हैं। मतदाता जागरूक हो गया है और वह प्रतिनिधियों के कार्य-व्यवहार को बहुत अच्छी तरह जानता-समझता है। ऐसे में जिन राजनीतिक दलों के नेता लगातार उसके सुख-दुख में साथ रहे, उन्हें लोगों ने अपना समर्थन दिया। जो लोग केवल सैद्धांतिक बातें करते हुए चुनाव के समय रथ पर सवार होकर उनके पास आए, उन्हें बहुत तवज्जो नहीं दी।

ऐसा भी नहीं कि भाजपा के शासन में लोगों को तकलीफें नहीं उठानी पड़ीं, प्रशासन की तरफ से गलतियां और लापरवाहियां नहीं हुर्इं, पर हकीकत यह भी है कि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता लगातार उनके संपर्क में रहे। हर गांव, हर मुहल्ले में भाजपा के कार्यकर्ता सक्रिय हैं और वे लोगों की मदद के लिए तत्पर दिखते हैं। सपा, बसपा, कांग्रेस या अन्य किसी दल के कार्यकर्ता इस तरह दिखते तक नहीं।

कांग्रेस दरअसल, अपनी दलगत जमीन काफी पहले खो चुकी है। पहले ब्लाक, गांव पंचायत स्तर पर उसके कार्यकर्ता हुआ करते थे, जो स्थानीय लोगों की मदद के लिए तत्पर रहते थे। अब वे कहीं नहीं दिखते। गांव की तो बात क्या, जिला मुख्यालय के स्तर पर भी इक्का-दुक्का लोग ही नजर आते हैं। फिर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के काम करने का तरीका दिल्ली के वातानुकूलित कमरों में बैठ कर सैद्धांतिक रणनीति तैयार करने का है। ऐसे वरिष्ठ नेताओं का तादाद कांग्रेस में बड़ी है, जो कभी जमीनी स्तर पर काम करने नहीं उतरे।

भाजपा इस मामले में ज्यादा लोकतांत्रिक दिखती है। उसकी केंद्रीय कमान के बड़े नेता भी जमीन पर उतर कर अपने मुहल्ला स्तर के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते रहते हैं। अगर कांग्रेस को अपनी खोई जमीन पानी और भाजपा के टक्कर में खुद को खड़ा करना है, तो उसे भाजपा की कार्य संस्कृति अपनानी पड़ेगी।


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