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- नई जिंदगी की तलाश
मुर्दा होंठों पर थोड़ी सी जि़न्दगी के लक्षण, थोड़ी सी फडफ़ड़ाहट अभी दिखाई नहीं दी। कैसे दिन गुजर गए। अकल्पनीय, दुख और क्षोभ के हर सीमान्त से परे। इस देश के लोगों को आज तक बड़बोले बायोस्कोप दिखाए गए हैं। इस बायोस्कोप में से दादी मां के जादुई पिटारे सा ऐसा शब्दजाल निकाल कर महामना रचते रहे कि लोगों को हमेशा लगता रहा कि सच उनके वोटों से रचा हुआ उनका सुनहरा संसार अभी निकल कर सामने आया कि आया। अच्छे दिन उनकी जेब में रखे किसी विदेशी कीमती पेन की तरह चमक रहे हैं। अब कोई हाथ बेकार नहीं रहा, नौकरियां उनके पीछे-पीछे चलेंगी और भूखे पेट पर तबला बजाओ। अब ऐसा किसी गाने, किसी नाटक के संवाद में भी कहा या बोला गया तो सबको गलत लगेगा। गन्दी बस्तियां महानगरों का पिछवाड़ा होती हैं। यह सच हम भूल जाएंगे। न मक्खी रहेगी न मच्छर, न कूड़ा रहेगा और न कर्कट।
By: divyahimachal