सम्पादकीय

श्रीलंका के हालात देखिये और अपने देश की नीतियों से इसकी तुलना करिये

Rani Sahu
10 May 2022 10:38 AM GMT
श्रीलंका के हालात देखिये और अपने देश की नीतियों से इसकी तुलना करिये
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श्रीलंका में प्रधानमंत्री अपना झोला उठा कर निकल लिए हैं

Girish Malviya

श्रीलंका में प्रधानमंत्री अपना झोला उठा कर निकल लिए हैं. वहां के हालात से आप अच्छी तरह से वाकिफ हैं. इसलिए उस पर बात नहीं करते हुए सीधे मुद्दे पर आते हैं कि पिछले दशक में श्रीलंका की राजनीति में किस तरह का परिवर्तन आया. जिससे आज वह आर्थिक बदहाली के जाल में फंस गया है और भारत से उसकी कितनी समानता है!
आप को जानकर आश्चर्य होगा कि श्रीलंका ने वर्ष 2012 में नौ फीसदी की उच्च विकास दर दर्ज की थी. उसके बाद से वह निरंतर गिरने लगी. आज विकास दर वहां माइनस में है. भारत में भी वर्ष 2015 में 8 फीसदी की दर से जीडीपी बढ़ रही थी और पिछले साल यहां भी माइनस में जा चुकी है.
भारत का लोन जीडीपी अनुपात 90 प्रतिशत के पार पहुंच चुका है, जो वर्ष 2014 में लगभग 67 फीसदी था. श्रीलंका का लोन जीडीपी अनुपात 100 के पार है. अब उसने बाहरी देनदारी चुकाने से इंकार कर दिया है. भारत का लोन जीडीपी अनुपात खतरे के निशान के ऊपर है. और लगातार बढ़ रहा है. आज ही खबर आई है कि डॉलर की कीमत अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है.
मोदी देश को विश्व गुरु बनाने का सपना दिखा कर सत्ता से आए थे. ऐसे ही गोताबाये राजपक्षे भी श्रीलंका को सिंगापुर बनाने का सपना दिखा रहे थे. मोदी और राजपक्षे अपने चुनाव अभियान में "अच्छे दिन आने वाले है" की बात करते थे. आज दोनों देशों की जनता अपने दुर्दिन भुगत रही है.
राजपक्षे भी जबरदस्त ध्रुवीकरण कर सत्ता पाए थे. बहुसंख्यक वोटों की लामबंदी से उन्होंने चुनाव जीता था. अपने भाषणों में राजपक्षे "धर्म के गौरव" की ही बात करते थे. भारत में यही नीति किस दल ने अपना रखी है, यह सब जानते हैं.
मोदी सरकार ने जीरो बजट खेती का शगूफा जैसे वर्ष 2018-19 में छोड़ा था. उसी तर्ज पर राजपक्षे ने मई 2021 में श्रीलंका को पूर्ण ऑर्गेनिक खेती वाला देश घोषित करते हुए रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खर-पतवारनाशकों व कवकनाशकों के आयात पर लोग लगा दी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने इस काम के लिए राजपक्षे को बधाई संदेश भी भेजा था.
भारत में भी इसी दौरान मोदी सरकार कृषि के क्षेत्र में तीन काले कानूनों को लागू करने में पूरे दमखम से लगी रही. वो तो शुक्र मनाइए किसान आंदोलन का जो हमलोग बच गए.
श्रीलंका में भी पिछले कुछ सालों से विकास की झूठी कहानी गढ़ी जाती रही और उस दौरान वहां का मीडिया भी हमारे मीडिया की तरह उनका सहयोगी बना रहा.
Rani Sahu

Rani Sahu

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