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- छोटे बाबू, बड़े बाबू
आनंद फिल्म के मशहूर डायलॉग 'बाबूमोशाय, जि़ंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है…उसे न आप बदल सकते हैं, न मैं!' सुनते ही मुझे हर विभाग के अधीक्षक यानी बड़े बाबू और लाट साहिब माने उससे भी बड़े अर्थात् विराट बाबू, जो बाबूशाही की परिभाषा को सही मायनों में यथार्थ में बदलते हैं और जिनकी छत्रछाया में कुछ भी फलता-फूलता नहीं, की बरबस याद आ जाती है। अक्सर इन छोटे-बड़े बाबुओं को यह कहते सुना जा सकता है कि हम ऐसे लोगों की तक़दीर, जो हमारे जूते में पाँव डाल कर, घिसट कर नहीं चलते, कुछ इस तरह लिख देते हैं कि ऊपर वाला भी उसे सिर्फ अगले जनम में ही बदल सकता है। यह बात दीगर है कि हाई या सुप्रीम कोर्ट में उनका लिखा अक्सर बदल जाता है। पर तब तक व्यक्ति वास्तव में अगला जनम लेने की कगार तक पहुँच चुका होता है। पर जिन लोगों का वास्ता छोटे-बड़े बाबुओं से पड़ा है, उन्हें एहसास है कि एक होशियार बाबू की हैसियत और असर, अपने से बड़े अफ़सर या नेता से कहीं से अधिक होता है। होशियार बाबू के सामने अफ़सर या नेता की औक़ात जोरू के ग़ुलाम की तरह होती है। मंझा हुआ बाबू अपने त्रिया चरित्र से अफ़सर को अपनी लेखनी से उसी तरह बाँध लेता है जैसे एक त्रिया चरित्र भोदूँ पति को अपने पल्लू से बाँध लेती है। अथश्री बाबू पुराण की जो कथाएं प्रसिद्ध हैं, उनमें असली बाबू बनने के विशिष्ट गुण शामिल नहीं हैं। हाल ही में सम्पन्न शोध के आधार पर ये गुण इस प्रकार हो सकते हैंः भले ही उस तक पहुँचना उतना कठिन न हो जैसे बारह देशों की पुलिस का डॉन तक, लेकिन बिना नेग या उपहार के उसे ढूँढ़ा न जा सके।
सोर्स- divyahimachal