सम्पादकीय

जीवन अनुशासन चाहता है; हम जितने अनुशासित होंगे, जिंदगी दोस्ती करने के लिए उतनी ही बेताब रहेगी

Rani Sahu
15 Dec 2021 10:10 AM GMT
जीवन अनुशासन चाहता है; हम जितने अनुशासित होंगे, जिंदगी दोस्ती करने के लिए उतनी ही बेताब रहेगी
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जिंदगी से कुछ शिकायत तो सभी को होती है

पं. विजयशंकर मेहताजिंदगी से कुछ शिकायत तो सभी को होती है। समझदार लोग शिकायत का मुंह मोड़ देते हैं और नासमझ उसे लेकर उलझ जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि जब उनसे मिलते हैं तो हमें अपने ही जीवन के प्रति प्रेम पैदा हो जाता है, लगाव जाग जाता है। जिसे अपने जीवन से प्रेम है, उसके लिए तो फिर बिना घुंघरू ही पायल बजती है। बात गहरी, पर समझने की है।

आज हम लोगों के जीवन में गति तो है, पकड़ नहीं है। प्रबंधन की भाषा में इसे कहेंगे जिंदगी में पेस आ गया, ग्रिप चली गई। यदि आप बहुत अधिक गतिशील हो गए हैं तो इसका मतलब है जीवन से लड़ रहे हैं, और यदि जीवन पर पकड़ बना ली, तो इसे कहेंगे जिंदगी से दोस्ती। जीवन से लड़ेंगे तो फल कच्चा रह जाएगा, दोस्ती कर लेंगे तो फल पक जाएगा। कभी किसी खूबसूरत फूल या रसदार फल को देखिएगा।
अंदाज लग जाएगा कि इसके जन्म की प्रक्रिया में बदबूदार खाद भी काम आई थी। बदबू को खुशबू में बदलने, बदसूरत को खूबसूरत बनाने में जिस प्रक्रिया से गुजरा जाता है, उसी को जिंदगी से दोस्ती करना कहते हैं। हम तो जीवन से दोस्ती करने के लिए फिर भी तैयार हो जाते हैं, लेकिन जीवन हमसे मित्रता करना चाहता है या नहीं? इसका एक ही मापदंड है- अनुशासन। जीवन अनुशासन चाहता है। हम जितने अनुशासित होंगे, जिंदगी दोस्ती करने के लिए उतनी ही बेताब रहेगी।


Rani Sahu

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