सम्पादकीय

श्रीलंका के आर्थिक संकट से सबक

Rani Sahu
10 April 2022 7:02 PM GMT
श्रीलंका के आर्थिक संकट से सबक
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इतना ही नहीं, श्रीलंका के द्वारा मौजूदा विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में मदद करने के लिए भारत से आर्थिक राहत पैकेज का आग्रह किया गया है

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों की बैठक में शामिल उच्च अधिकारियों ने देश में कई राज्यों द्वारा घोषित अति लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारी मुफ्त रियायतों पर चिंताएं जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी योजनाएं और रियायतें आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं। ये लोकलुभावन योजनाएं और रियायतें कई राज्यों को श्रीलंका की तरह आर्थिक मुश्किलों के रास्ते पर ले जा सकती हैं। गौरतलब है कि श्रीलंका में पिछले कुछ समय से लागू की गई लोकलुभावन योजनाओं, करों में भारी कटौती और बढ़ते कर्ज ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया है। 2018 में वैट की दर 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी की गई और विभिन्न वर्गों को दी गई अभूतपूर्व सुविधाओं व छूटों के कारण श्रीलंका दर्दनाक मंदी और चीन के ऋण जाल में फंस गया है। श्रीलंका में इस साल महंगाई दर एक दशक में अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। आर्थिक तंगी के खिलाफ तेज होते विरोध प्रदर्शनों के बीच सरकार ने एक अप्रैल को श्रीलंका में आपातकाल लागू किया है। श्रीलंका की विपक्षी पार्टियों के द्वारा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और राष्ट्रपति पर महाभियोग की तैयारी की घोषणा की गई है।

इतना ही नहीं, श्रीलंका के द्वारा मौजूदा विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में मदद करने के लिए भारत से आर्थिक राहत पैकेज का आग्रह किया गया है। निःसंदेह विभिन्न लोकलुभावन योजनाओं और विभिन्न कर छूटों के कारण श्रीलंका आर्थिक बर्बादी का सामना कर रहा है, ऐसे में हमारे देश में उन विभिन्न राज्यों की सरकारों के द्वारा श्रीलंका के उदाहरण को सामने रखना होगा, जिन राज्यों ने लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारे प्रलोभन और छूटों का ढेर लगा दिया है और उससे उन प्रदेशों की अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रही हैं। इतना ही नहीं, विभिन्न वर्गों के लिए मुफ्त यात्रा, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी या फिर नाम मात्र की दर पर ढेर सारी सुविधाएं देने वाले विभिन्न राज्यों में लोगों की कार्यशीलता और उद्यमिता में भी कमी आई है। साथ ही ऐसे प्रदेश चुनौतीपूर्ण राजकोषीय घाटे की स्थिति में आ गए हैं और वहां बुनियादी ढांचा और विकास बहुत पीछे हो गया है। इन राज्यों में पंजाब, केरल, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ के नाम प्रमुख हैं। यदि हम देश में राजकोषीय घाटे के दलदल में पहुंच चुके विभिन्न राज्यों के द्वारा अपनाई गई मुफ्त सुविधाओं और लोकलुभावन योजनाओं के साथ केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा अपनाई गई कल्याणकारी योजनाओं की तुलना करें तो कुछ बड़े अंतर उभरकर दिखाई देते हैं। मोदी सरकार ने जो कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं, उनसे लोगों का आर्थिक सशक्तिकरण हो रहा है।
परिणामस्वरूप गरीब वर्ग की कार्यक्षमता बढ़ने के साथ उनकी आमदनी में वृद्धि हो रही है। साथ ही मोदी सरकार ने विकास के लिए कठोर फैसलों की भी रणनीति अपनाई हुई है, उससे आर्थिक मुश्किलों का सामना करते हुए देश विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि केंद्र सरकार ने कोविड-19 के बाद अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बढ़ती महंगाई के मद्देनजर जहां आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण से संबंधित योजनाओं से लोगों की आर्थिक मुश्किलें कम करके उनके सशक्तिकरण का लक्ष्य रखा है, वहीं सरकार जीएसटी और आयकर में भारी रियायतों से दूर रही है। परिणामस्वरूप कोविड-19 के बाद लगातार टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है और देश आर्थिक पुनरुद्धार की डगर पर आगे बढ़ रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कोरोना काल की तरह यूक्रेन संकट से बढ़ती महंगाई के बीच एक बार फिर देश में केंद्र सरकार के द्वारा लागू आर्थिक-सामाजिक कल्याणकारी योजनाएं राहतदायी दिखाई दे रही हैं। विगत 26 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने यूक्रेन संकट की वजह से महंगाई को देखते हुए इस साल सितंबर 2022 तक 80 करोड़ आबादी को मुफ्त में राशन देने का फैसला किया है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) की शुरुआत की थी। गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत लाभार्थी को उसके सामान्य कोटे के अलावा प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि देश में जनधन, आधार और मोबाइल (जैम) के कारण आम आदमी डिजिटल दुनिया से जुड़ गया है।
एकीकृत बुनियादी डिजिटल ढांचा विकसित हुआ है, वह आम आदमी की आर्थिक-सामाजिक मुस्कुराहट का आधार बन गया है। देश में सरकार के द्वारा आम आदमी के आर्थिक कल्याण के लिए शुरू की गई जनधन योजना, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी), सार्वजनिक वितरण प्रणाली का डिजिटल होना विभिन्न योजनाओं का सही व सरल क्रियान्वयन का आधार बन गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को शुरू से आखिर तक डिजिटल करने का दोतरफा फायदा मिल रहा है। यदि हम केंद्र सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का मूल्यांकन करें, तो पाते हैं कि अधिकांश योजनाएं राजकोषीय घाटा बढ़ाने का कारण नहीं बन रही हैं। वे आर्थिक-सामाजिक सशक्तिकरण का बेमिसाल काम कर रही हैं। ऐसी योजनाओं में एलपीजी गैस सब्सिडी, शौचालय निर्माण, घरेलू गैस में सब्सिडी, ग्रामीण विद्युतीकरण, नल जल कनेक्शन, महामारी के दौरान निःशुल्क अनाज वितरण, निशुल्क कोरोना टीकाकरण, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, पोषण कार्यक्रम, ई-रूपी, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, स्टैंड अप इंडिया और अटल पेंशन आदिश शामिल हैं। किसानों के लिए लागू कल्याणकारी योजनाओं ने कृषि क्षेत्र को नई मुस्कुराहट दी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक अब तक 11.37 करोड़ से अधिक किसानों को 1.82 लाख करोड़ रुपए दिए जाने, फसल बीमा योजना में सुधार, कृषि बजट के पांच गुना किए जाने तथा किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य मिलने से करोड़ों किसान लाभान्वित हो रहे हैं।
जिस तरह कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत के तहत कल्याणकारी योजनाओं के कारण आम आदमी की मुश्किलें कम हुई और देश की अर्थव्यवस्था को गतिशीलता मिली, उसी प्रकार अब रूस-यूक्रेन युद्ध के संकट के कारण बढ़ती महंगाई से आम आदमी को राहत दिलाने में देश की कल्याणकारी योजनाएं अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रही हैं तथा देश को आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़ाया जा रहा है। साथ ही सरकार उपयुक्त रणनीति के साथ राजस्व में भी वृद्धि कर रही है। देश में सरकारी तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों के आधार पर पेट्रोल व डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि की नीति पर चल रही हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में आर्थिक और सामाजिक कल्याण की विशाल योजनाओं के लागू होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़े आर्थिक पुनरुद्धार के मुहाने पर है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह मार्च 2022 में 1.42 लाख करोड़ रुपए रहा, जो रिकॉर्ड है। हम उम्मीद करें कि हमारे ऐसे राज्य जो लोकलुभावन योजनाओं व ढेर सारी रियायतों के प्रतीक बन गए हैं, वे सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे श्रीलंका से सबक लेंगे। हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार भी किसी नई लोकलुभावन व मुफ्त की सौगातों की योजनाओं पर ध्यान नहीं देगी। साथ ही केंद्र सरकार आर्थिक-सामाजिक कल्याण की योजनाओं के साथ-साथ विकास की वर्तमान रणनीति पर तेजी से आगे बढ़ेगी।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री


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