- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सबक का समय
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के समापन की आशा बलवती हो गई है। प्रधानमंत्री के ये शब्द खास मायने रखते हैं कि 'मैं देश की जनता से सच्चे और नेक दिल से माफी मांगता हूं। हम किसानों को नहीं समझा पाए। हमारे प्रयासों में कुछ कमी रही होगी कि हम कुछ किसानों को मना नहीं पाए।' यह एक निर्णायक घोषणा है, जिसके प्रभाव-दुष्प्रभाव आने वाले समय की राजनीति पर साफ तौर पर दिखाई पड़ सकते हैं। भारत में एकाधिक कानूनों को वापस लेने के लिए चला यह सबसे लंबा सक्रिय आंदोलन है, जिसे आने वाले दशकों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। जिसकी चर्चा खेत से लेकर संसद तक चलती रहेगी। कौन सही-कौन गलत का फैसला हर कोई अपनी-अपनी दृष्टि से करेगा। तमाम तरह की वैचारिक विविधता से भरे इस देश में शायद हमने नए तरह से लंबे जमीनी आंदोलन चलाने का तरीका सीख लिया है। इस आंदोलन को भले ही कुछ राज्यों में ज्यादा समर्थन मिल रहा है, लेकिन इसका असर तमाम राज्यों पर पड़ेगा।
हिन्दुस्तान