सम्पादकीय

श्रीकृष्ण के जीवन से सीखिए मैनेजमेंट के गुर

Rani Sahu
20 Aug 2022 3:09 PM GMT
श्रीकृष्ण के जीवन से सीखिए मैनेजमेंट के गुर
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कृष्ण के कई रूप हैं. उनके व्यक्तित्व के कई पक्ष हैं. सभी बिल्कुल ही अलग. इस लिहाज से कृष्ण को किसी एक सांचे में प्रस्तुत करना असंभव है
by Lagatar News
Dr. Pramod Pathak
कृष्ण के कई रूप हैं. उनके व्यक्तित्व के कई पक्ष हैं. सभी बिल्कुल ही अलग. इस लिहाज से कृष्ण को किसी एक सांचे में प्रस्तुत करना असंभव है. उनकी बाल काल की लीलाएं, गोपिकाओं के साथ अठखेलियां, उनका मित्र के साथ व्यवहार, उनका राधा के साथ प्रेम, सभी के मायने अलग है, संदेश अलग है. किंतु इन सबसे अलग कृष्ण के एक स्वरूप की व्याख्या बड़ी आवश्यक है. वह है मैनेजमेंट गुरु के रूप में उनका व्यक्तित्व. इस व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मैनेजमेंट यानी प्रबंधन, जो आज के सबसे लोकप्रिय पाठ्यक्रमों में से एक है और जिसे पढ़ने के लिए सभी लालायित रहते हैं, उसमें पढ़ाये जाने वाले सिद्धांत और कौशल को कृष्ण के व्यवहार और आचरण के जरिए बड़े सहज और स्पष्ट ढंग से समझा जा सकता है.
नेतृत्व कौशल का कृष्ण से बढ़कर कोई उदाहरण नहीं
महाभारत युद्ध में जिस तरह से कृष्ण ने धर्म की विजय को सुनिश्चित किया और पांडवों के विजय का मार्ग प्रशस्त किया, उससे बढ़िया कुशल प्रबंधन की केस स्टडी का ग्रंथ नहीं हो सकता. नेतृत्व कौशल का शायद ही कृष्ण से बढ़कर कोई उदाहरण हो सकता है. दुनिया भर के उत्कृष्ट से उत्कृष्ट प्रबंधन के संस्थानों में प्रबंध विज्ञान के व्यवहार और कला को सीखने के लिए जो पुस्तकें पढ़ी जाती है, जो उदाहरण और केस स्टडी सिखाए जाते हैं, वे सारे आयाम महाभारत और गीता में पाए जा सकते हैं. कुशल प्रबंधन के लिए जो मूल गुण एक प्रबंधक में होने चाहिए, वह नेतृत्व कौशल, कुशल संप्रेषण की कला और सफल रणनीति बनाने की क्षमता माने जाते हैं. इन गुणों और कलाओं का एक जीवंत उदाहरण है कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका व्यवहार. अक्सर प्रबंधन गुरु लोगों को प्रेरित करने की क्षमता को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं. गीता से बढ़िया इसका उदाहरण नहीं हो सकता. अर्जुन की दुविधा, अर्जुन की हताशा और उनके युद्ध न करने की सोच को जिस तरह से कृष्ण ने बदला और उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया, वह अपने आप में प्रेरणा के सिद्धांत के व्यवहार का सर्वोच्च उदाहरण हो सकता है.
कृष्ण के संप्रेषण की अद्भुत कला
आज जब हम यूट्यूब से लेकर लोकप्रिय मीडिया और जन संचार के माध्यमों में मोटिवेशनल गुरु के व्याख्यान देखते और सुनते हैं, तो बहुत प्रभावित होते हैं. लेकिन गीता के माध्यम से जिस ढंग से कृष्ण ने अर्जुन को प्रेरित किया, वह अनुपम था. कुशल प्रबंधन के लिए रणनीति बड़ी महत्वपूर्ण होती है. कौरवों के बड़े-बड़े रणनीतिकारों और योद्धाओं को जिस ढंग से कृष्ण ने अपनी रणनीतियों से मात दी, उस से बेहतर कोई रणनीति हो सकती है क्या? थी. उनके संप्रेषण में जो प्रभाव था, जो गंभीरता थी वह प्रबंधन की आज की पुस्तकों को पढ़कर नहीं सीखा जा सकता. यह एक विडंबना ही है कि हम अपने प्रबंधन के संस्थानों में गीता जैसी पुस्तक न पढ़ा कर विदेशी लेखकों और विचारकों की रचनाएं पढ़ाते हैं.
स्थितप्रज्ञ मन:स्थिति के सबसे बड़े उदाहरण
शास्त्रीय प्रबंधन में यह माना जाता है कि कुशल प्रबंधन के लिए तीन आवश्यक क्षमता होनी चाहिए. इन्हीं क्षमताओं को सीखने के लिए कुशल प्रबंधक बनने की आकांक्षा रखने वाले लोग फीस के रूप में मोटी-मोटी रकम चुका कर प्रबंधन संस्थानों में दाखिला लेते हैं. यह तीन क्षमताएं हैं – बौद्धिक क्षमता, भावनात्मक क्षमता और नैतिक क्षमता. प्रबंधन नेतृत्व की कुशलता के यह बुनियादी आधार हैं. इन तीनों क्षमताओं का जितना संतुलन कृष्ण के व्यवहार में दिखता है, वह अन्यत्र संभव नहीं है. इन्हीं तीन क्षमताओं के संतुलन को हम विवेक कहते हैं. रोचक तथ्य यह है कि विवेक का कोई सटीक अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द नहीं है. प्राचीन काल के प्रख्यात विचारक व यूनानी लेखक प्लेटो ने कहा था – राजा को दार्शनिक होना चाहिए. इसका सीधा मतलब था तटस्थ एवं यथार्थवादी. इसी को गीता में स्थितप्रज्ञ कहा गया है. इस स्थितप्रज्ञ मन:स्थिति के सबसे बड़े उदाहरण के रूप में कृष्ण को देखा जा सकता है.
कृष्ण को योगेश्वर इसलिए कहते हैं
इसीलिए कृष्ण को योगेश्वर भी कहते हैं. जीवन की सफलता, नेतृत्व की सफलता, व्यापार की सफलता एवं व्यक्ति की सफलता सबका सार कर्म योग है. इसी कर्म योग को सीखना और समझना एक कुशल प्रबंधक के लिए जरूरी होता है. प्रबंधन के सबसे बड़े विचारकों में से एक पीटर ड्रकर ने कहा था कि प्रबंधन का मतलब है सही काम करना. इन तीन शब्दों की व्याख्या ही पूरे प्रबंधन के पाठ्यक्रम का सार है. कृष्ण की सारी सीख इसी के इर्द-गिर्द घूमती रही. कर्म, भाव और विचार यह तीन शक्तियां मनुष्य के पास है और इन्हीं का सही इस्तेमाल करना कुशल प्रबंधन है. कृष्ण के जीवन से कुशल प्रबंधन की कला को सहज ही सीखा जा सकता है. [लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और आई आई टी -आइएसएम के मैनेजमेंट के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं ]
Rani Sahu

Rani Sahu

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