सम्पादकीय

जीवन को सावधानी से आगे बढ़ाएं, यह हमारा कर्तव्य है, मजबूरी नहीं

Rani Sahu
10 Dec 2021 6:31 PM GMT
जीवन को सावधानी से आगे बढ़ाएं, यह हमारा कर्तव्य है, मजबूरी नहीं
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हमारे यहां साहित्यकारों ने कहा है शब्द के भीतर कुछ ऐसे अर्थ होते हैं

पं. विजयशंकर मेहताहमारे यहां साहित्यकारों ने कहा है शब्द के भीतर कुछ ऐसे अर्थ होते हैं, जो सतह पर नजर नहीं आते। हर शब्द के गर्भ में एक अनूठा अर्थ छिपा होता है और उसे ठीक से पढ़ना, समझना पड़ता है। ऐसे ही हर दृश्य के भीतर कुछ ऐसे दृश्य होते हैं जिन्हें बड़ी अलग दृष्टि से देखना होता है।

महाभारत के युद्ध में जब दोनों सेनाएं बिलकुल तैयार थीं, उसी समय युधिष्ठिर अपने शस्त्र रखकर कौरव सेना की ओर चले तो उनके भाइयों को लगा लगता है बड़े भाई युद्ध से पहले ही समर्पण करने जा रहे हैं। कौरव सेना के लोग तो आपस में बात ही करने लग गए कि युधिष्ठिर ने पराजय स्वीकार कर ली है। लेकिन, दो लोग जानते थे कि वे करने क्या जा रहे हैं। एक, स्वयं युधिष्ठिर और दूसरे कृष्ण। जैसे ही युधिष्ठिर ने भीष्म के आगे घुटने टेके, कौरव सेना प्रसन्न हो गई कि युद्ध शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गया।
तभी प्रणाम करते हुए युधिष्ठिर बोले-पितामह, मुझे युद्ध की आज्ञा दीजिए। यह था दृश्य के भीतर का दृश्य। आज हमारे जीवन के युद्ध क्षेत्र में भी दृश्य के भीतर कई दृश्य ऐसे हैं जिन्हें हमें बहुत समझदारी से देखना है। महामारी का नया वैरिएंट आ चुका है। ऐसे में आसपास घट रहे दृश्यों के भीतर कोई अनहोनी न हो जाए, इसे लेकर बहुत सतर्क रहना होगा। जीवन को बड़ी सावधानी के साथ आगे बढ़ाना है। यह हमारा कर्तव्य है, मजबूरी नहीं।


Rani Sahu

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