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- सोशल मीडिया पर...
भारत में भी सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म्स से जुड़े नए नियम जारी कर दिए गए हैं। लालकिला पर हिंसा के बाद से केन्द्र सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में ठन गई थी। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए कुछ न कुछ नियम लागू करने पर मंथन चल रहा था। स्वस्थ लोकतंत्र में वैचारिक सहमति और असहमति को अभिव्यक्त करने की आजादी एक अधिकार के रूप में स्वीकार्य है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी निरंकुश नहीं है। जैसे-जैसे साेशल मीडिया का विस्तार हुआ, उस पर अपनी राय जाहिर करने की सुविधा लोगों तक पहुंची। लोगों को स्वस्थ विचार अभियक्त करने के लिए अनेक मंच िमल गए। लेकिन बहुत से तत्व इन मंचों का इस्तेमाल अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए करने लगे। लोगों को अपने विचार अभिव्यक्त करने के लिए आकाश तो मिला लेकिन कुछ लोग इस आकाश को विषाक्त करने में जुट गए। इसलिए यह जरूरी भी था कि सोशल मीडिया के लिए कोई न कोई लक्ष्मण रेखा खींची जाए। अंततः सरकार ने दिशा-निर्देश जारी कर सीमाएं खींच दी हैं। इन दिशा-निर्देशों को लेकर बहस जरूर होगी और होनी भी चाहिए। लेकिन इस बात पर भी गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए कि क्या किसान आंदोलन के दौरान 'किसान नरसंहार' जैसे हैशटैग, ट्रेडिंग के कारण ट्विटर पर भारत के विरुद्ध मुहिम छेड़ना, हिंसा को बढ़ावा देना, भ्रम का मायाजाल बुनकर देश के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देना क्या स्वीकार किया जा सकता है? यह भारत ही क्यों किसी भी देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता। हाल ही की घटनाओं ने भारत की एकता और अखंडता के संबंध में सोशल मीडिया कम्पनियों के दिग्गजों की भूमिका भी ईमानदार नहीं रही। सोशल मीडिया कम्पनियों के साथ अनैतिक काम करने वाले मुद्दों का एक लम्बा इतिहास जुड़ा है।