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समझदार गमगीन भी लतीफों की जुगाली कर लेता है। इसका मतलब है दुखी से दुखी व्यक्ति भी यदि समझदार है
पं. विजयशंकर मेहता। समझदार गमगीन भी लतीफों की जुगाली कर लेता है। इसका मतलब है दुखी से दुखी व्यक्ति भी यदि समझदार है, तो थोड़ी-बहुत खुशी अपने आसपास रख सकता है। महामारी ने कई प्रियजनों को हमसे छीन लिया। इन दिनों जिन भी लोगों से मेरा मिलना हो रहा है, अधिकांश का कहना यही है कि बाकी दुख तो हमने सह लिए, पर अपनों की मृत्यु भुलाए नहीं भूलती।
ऐसे में क्या किया जाए? मृत्यु अपने पीछे जो संताप छोड़ जाती है, उससे मुक्त होने का सबसे आसान तरीका है आत्मा को जानना। असल में जब किसी की मृत्यु होती है तो हम संवेदना में कहते हैं दिवंगत की आत्मा को शांति मिले। इस संवाद में संशोधन करना चाहिए। आत्मा मूल रूप से ही शांत होती है। यहां शांति का अर्थ होना चाहिए विश्राम। आत्मा सतत सक्रिय है, तो उसे जल्दी विश्राम मिले।
यानी जब वह एक शरीर से दूसरे शरीर में जाए तो विश्राम की मुद्रा में आ जाए। वैसे तो मृत्यु एक बहुत बड़ा रहस्य है, लेकिन हिंदू धर्म ने पुनर्जन्म की धारणा से इसको थोड़ा सरल बना दिया है। कानून की भाषा में कहते हैं जानकारी सबूत तब बनती है, जब गवाह हो। तो हमें मृत्यु की जानकारी और सबूत दोनों को समझना है और उसकी गवाह है आत्मा। जितना आत्मा को जानेंगे, मृत्यु उतनी समझ में आ जाएगी, अशांति से उतनी जल्दी मुक्ति मिल जाएगी।
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