सम्पादकीय

खतरे में सेवाग्राम की खादी

Rani Sahu
10 May 2022 9:27 AM GMT
खतरे में सेवाग्राम की खादी
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गांधी को बंदूक की गोलियों से मारने वाले और उनके आका परेशान हैं

गांधी को बंदूक की गोलियों से मारने वाले और उनके आका परेशान हैं। शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी गांधी अपनी गतिविधियों के चलते कैसे जीवित हैं? साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) को सैर-सपाटे में तब्दील करने के बाद गांधी और उनकी खादी को मारने की एक नई जुगत बैठाई जा रही है। 25 मार्च 2022 को सेवाग्राम आश्रम (वर्धा) को भारत सरकार के खादी विभाग के निदेशक का एक पत्र मिला है जिसमें मंत्रालय के खादी मार्क रेगुलेशन का संदर्भ देते हुए बताया गया है कि बिना प्रमाणपत्र खादी नाम का उपयोग कर सेवाग्राम आश्रम से अप्रमाणित खादी वस्त्रों की अवैध/अनधिकृत बिक्री हो रही है। यदि इसे तुरंत प्रभाव से बंद नहीं किया जाता है तो आपके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसका अर्थ है कि गांधी जी के समय से इस आश्रम में जो कताई-बुनाई की जा रही थी, वह बंद करवा दी जाएगी और अन्य खादी संस्थाओं से खादी वस्त्र लेकर जो बिक्री की जा रही है, उसे भी रोक दिया जाएगा। गांधी जी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जो आश्रम पूरे देश में खादी के माध्यम से लोगों को स्वावलंबी बनाकर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध खड़ा करने के लिए कार्य कर रहा है, उसे आजाद भारत में एक दिन अपनी ही सरकार द्वारा कटघरे में खड़ा कर दिया जाएगा। यहां लाखों की संख्या में लोग बापू कुटी देखने आते हैं। चरखे की तान पर प्रत्यक्ष कताई, बुनाई देख मंत्रमुग्ध होते हैं और वहीं से 'देश की आजादी का चोला' खादी वस्त्र भी खरीद लेते हैं। इतने पवित्र, शुद्ध और आस्था के मंदिर से ख़रीदे गए खादी वस्त्र को सरकार का खादी मार्क क्या शुद्ध करेगा? कोई भी मार्क वस्तुओं की गुणवत्ता के प्रतीक स्वरूप होता है, ताकि ग्राहकों की संतुष्टि हो सके। वूलमार्क, सिल्कमार्क, हैंडलूम मार्क, होलोग्राम आदि ग्राहकों और उत्पादनकर्ताओं पर थोपे गए हैं। खादी मार्क जबरन थोपा गया कानून है। खादी मार्क रेगुलेशन-2013 खादी के हेरिटेज स्वरूप को समाप्त कर व्यक्तिगत व्यवसायियों, फर्म, कंपनियों के हाथ में मुनाफा कमाने वाली कमोडिटी के रूप में चला गया है। यह महात्मा गांधी के ट्र्रस्टीशिप सिद्धांत एवं 'ना लाभ ना हानि' की पद्धति पर आधारित खादी कार्यक्रमों की मूल अवधारणा के विपरीत है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि इसके काफी पहले खादी की गुणवत्ता और शुद्धता जांचने के लिए नियम बनाए गए थे। खादी की गुणवत्ता और शुद्धता के लिए प्रमाणपत्र समिति पहले स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करती थी। उसके बाद इसका भी सरकारीकरण हो गया और 2013 में खादी मार्क रेगुलेशन आने के बाद वह खादी ग्रामोद्योग आयोग के एक विभाग के रूप में काम करने लगी।

इस कानून का दुष्प्रभाव यह हुआ कि बाजार में खादी के नाम पर मिल का कपड़ा भी बिकने लगा। इस प्रकार इस समिति की स्वतंत्रता समाप्त की गई। भारत सरकार और खादी ग्रामोद्योग आयोग ने राष्ट्रपिता के विश्व प्रसिद्ध सेवाग्राम आश्रम, जहां वे चरखा कातते थे, को फैब इंडिया जैसी कंपनी के समकक्ष खड़ा कर दिया है, जिस पर उसने खादी मार्क नहीं लेने के कारण मुकदमा दायर कर 500 करोड़ रुपयों का हर्जाना मांगा है। जब यह कानून लागू किया जा रहा था, तब देश की लगभग सभी खादी संस्थाओं ने आचार्य विनोबा भावे द्वारा गठित खादी मिशन के माध्यम से इसका विरोध किया था। मंत्रालय के इशारे पर खादी ग्रामोद्योग आयोग ने संस्थाओं पर दबाव बनाकर उन्हें विज्ञान भवन में एकत्रित किया और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को गुमराह कर उनके माध्यम से इस अप्रिय कानून और खादी मार्क का आरंभ करवाया। वर्ष 1953 से पूर्व खादी से संबंधित सभी विषय गांधी जी द्वारा स्थापित अखिल भारत चरखा संघ (सर्व सेवा संघ) देख रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खादी के विकास और रोजगार के लिए सरकार की मदद करने की बात कही थी। तब विनोबा जी ने कहा कि जब सरकार खादी के उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है तो चरखा संघ का काम है उसको मदद करना, क्योंकि उसे इसका अनुभव है। दूसरी बात विनोबा जी ने कही कि जो गांव या शख्स अपने लिए कपड़ा बनाना चाहे उसकी बुनाई की मजदूरी सरकार देगी। यह योजना काफी दिनों तक लागू रही, फिर सरकार ने इसे बंद कर दिया। खादी संस्था और खादी ग्रामोद्योग आयोग का आपसी संबंध जो भाई-भाई का था, वह मालिक और गुलामों में परिवर्तित हो गया। आज खादी संस्थाओं को खादी कार्य करने के लिए काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। गांधी जी ने चरखे और खादी को आधार मानकर ग्राम स्वावलंबन और स्वदेशी अपनाने पर बल देते हुए देश को आजादी दिलाई थी। साबरमती आश्रम के बाद वर्ष 1936 से सेवाग्राम आश्रम गांधी जी की मृत्युपर्यंत प्रयोग भूमि रही। गांधी जी प्रतिदिन वहां चरखा कातते थे। खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से गांव को स्वावलंबी कैसे कर सकते हैं इसके लिए गांधी जी ने 1929 में एक कमेटी बनाई थी जिसके अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उसमें अर्थशास्त्री जेसी कुमारप्पा और वैज्ञानिक सीवी रमन जैसे लोग सदस्य थे।
नोबल पुरस्कार से नवाजे गए सीवी रमन जैसे व्यक्ति को उस कमेटी में रखना गांधी ही सोच सकते थे। जाहिर है गांधी की वृत्ति आध्यात्मिक थी, लेकिन दृष्टि वैज्ञानिक थी। एक जमाने में सेवाग्राम आश्रम कताई-बुनाई का देश का सबसे बड़ा केंद्र था। आज भारत सरकार का खादी ग्रामोद्योग आयोग गांधीजी के इसी सेवाग्राम आश्रम में खादी के प्रयोग को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी कर रहा है। वह भी एक ऐसे कानून के द्वारा जिसका देश की सभी खादी संस्थाओं ने विरोध किया था और जिसे सरकार ने जबरदस्ती उन पर थोपा था। खादी ग्रामोद्योग आयोग जिस तरीके से खादी को चला रहा है वह विनाशकारी है तथा गांधी और खादी की मूल भावना के विपरीत है। ऐसा नहीं है कि खादी संस्थाएं ही केवल खादी ग्रामोद्योग आयोग और सरकार की नीतियों का विरोध कर रही हैं। संसद की स्थायी समिति ने भी सरकार की नीतियों का विरोध कर वास्तविकता से सबको अवगत कराया है। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जिस उद्देश्य से आयोग का निर्माण किया गया था वह अब नहीं रहा। यानी इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। स्थायी समिति ने आगे कहा है, खादी ग्रामोद्योग आयोग ने वास्तव में खादी संस्थाओं को गुलाम बना दिया है और उनको कई प्रकार से सताया जा रहा है। सेवाग्राम आश्रम ने खादी ग्रामोद्योग आयोग के पत्र से असहमति जताते हुए खादी मार्क रेगुलेशन को मानने से इंकार कर दिया है। एक अप्रैल 2002 के अपने जवाब में उसका कहना है कि खादी कताई, बुनाई आदि की जो प्रवृत्ति गांधीजी के समय से आश्रम में चली आ रही है वह अनवरत जारी रहेगी।
आश्रम आयोग के किसी दबाव के आगे नहीं झुकेगा। हो सकता है सरकार सेवाग्राम आश्रम के इस नजरिए से असहमत हो। ऐसे में खादी की अस्मिता बचाने के लिए सत्याग्रह करना पड़े तो उसके लिए भी सेवाग्राम आश्रम को तैयार रहना होगा। आश्रम को वर्ष 2010 से चलाए जा रहे खादी रक्षा अभियान को सक्रियता पूर्वक सहयोग करना चाहिए। दूसरी तरफ भारत सरकार को चाहिए कि खादी मार्क रेगुलेशन को अनिवार्य की बजाय स्वैछिक बनाए, जैसी कि वूलमार्क, सिल्कमार्क, होलोग्राम आदि के बारे में प्रचलित व्यवस्था है। यदि सरकार और आयोग अपनी नीतियों में सुधार नहीं करते हैं तो खादी मिशन, खादी समिति (सर्व सेवा संघ), सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान और गांधी स्मारक निधि आदि संस्थाओं को मिलकर भारत सरकार की खादी विरोधी नीतियों के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करना चाहिए। केंद्र सरकार 12 सौ करोड़ रुपए खर्च करके बापू के साबरमती आश्रम की पुरातनता को नेस्तनाबूद करने पर तुली हुई है। इस आश्रम को पर्यटन स्थल में परिवर्तित करने का जो कार्यक्रम चल रहा है उसका विरोध करने के लिए सेवाग्राम आश्रम से एक यात्रा साबरमती आश्रम तक निकाली गई थी। साबरमती आश्रम की भांति प्रत्यक्ष रूप से सेवाग्राम आश्रम में कोई हस्तक्षेप तो नहीं किया जा रहा, पर ऐसा लगता है कि साबरमती आश्रम में भारत सरकार की योजना का विरोध करने के लिए सेवाग्राम आश्रम की खादी को निशाना बनाया जा रहा है।
अशोक शरण
स्वतंत्र लेखक
-(सप्रेस)


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