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- खतरे में सेवाग्राम की...
गांधी को बंदूक की गोलियों से मारने वाले और उनके आका परेशान हैं। शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी गांधी अपनी गतिविधियों के चलते कैसे जीवित हैं? साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) को सैर-सपाटे में तब्दील करने के बाद गांधी और उनकी खादी को मारने की एक नई जुगत बैठाई जा रही है। 25 मार्च 2022 को सेवाग्राम आश्रम (वर्धा) को भारत सरकार के खादी विभाग के निदेशक का एक पत्र मिला है जिसमें मंत्रालय के खादी मार्क रेगुलेशन का संदर्भ देते हुए बताया गया है कि बिना प्रमाणपत्र खादी नाम का उपयोग कर सेवाग्राम आश्रम से अप्रमाणित खादी वस्त्रों की अवैध/अनधिकृत बिक्री हो रही है। यदि इसे तुरंत प्रभाव से बंद नहीं किया जाता है तो आपके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसका अर्थ है कि गांधी जी के समय से इस आश्रम में जो कताई-बुनाई की जा रही थी, वह बंद करवा दी जाएगी और अन्य खादी संस्थाओं से खादी वस्त्र लेकर जो बिक्री की जा रही है, उसे भी रोक दिया जाएगा। गांधी जी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जो आश्रम पूरे देश में खादी के माध्यम से लोगों को स्वावलंबी बनाकर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध खड़ा करने के लिए कार्य कर रहा है, उसे आजाद भारत में एक दिन अपनी ही सरकार द्वारा कटघरे में खड़ा कर दिया जाएगा। यहां लाखों की संख्या में लोग बापू कुटी देखने आते हैं। चरखे की तान पर प्रत्यक्ष कताई, बुनाई देख मंत्रमुग्ध होते हैं और वहीं से 'देश की आजादी का चोला' खादी वस्त्र भी खरीद लेते हैं। इतने पवित्र, शुद्ध और आस्था के मंदिर से ख़रीदे गए खादी वस्त्र को सरकार का खादी मार्क क्या शुद्ध करेगा? कोई भी मार्क वस्तुओं की गुणवत्ता के प्रतीक स्वरूप होता है, ताकि ग्राहकों की संतुष्टि हो सके। वूलमार्क, सिल्कमार्क, हैंडलूम मार्क, होलोग्राम आदि ग्राहकों और उत्पादनकर्ताओं पर थोपे गए हैं। खादी मार्क जबरन थोपा गया कानून है। खादी मार्क रेगुलेशन-2013 खादी के हेरिटेज स्वरूप को समाप्त कर व्यक्तिगत व्यवसायियों, फर्म, कंपनियों के हाथ में मुनाफा कमाने वाली कमोडिटी के रूप में चला गया है। यह महात्मा गांधी के ट्र्रस्टीशिप सिद्धांत एवं 'ना लाभ ना हानि' की पद्धति पर आधारित खादी कार्यक्रमों की मूल अवधारणा के विपरीत है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि इसके काफी पहले खादी की गुणवत्ता और शुद्धता जांचने के लिए नियम बनाए गए थे। खादी की गुणवत्ता और शुद्धता के लिए प्रमाणपत्र समिति पहले स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करती थी। उसके बाद इसका भी सरकारीकरण हो गया और 2013 में खादी मार्क रेगुलेशन आने के बाद वह खादी ग्रामोद्योग आयोग के एक विभाग के रूप में काम करने लगी।